केरल में कांग्रेस-वाम दलों के बीच तल्खियां गुजरे दिनों की दिला रही याद

Monday, Apr 08, 2019 - 03:30 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के केरल में वायनाड से चुनाव लडऩे के फैसले से कम्युनिस्ट खेमे में व्याप्त बेचैनी से दोनों दलों के बीच पूर्व में कई मौकों पर विरोधाभाष और संबंधों में आयी तल्खियों की स्पष्ट पुनरावृत्ति दिख रही है। कांग्रेस-वामपंथी संंबंधों में यह तल्खियां 1959 के उस दौर की याद दिलाती है, जब तत्कालीन नेहरू सरकार ने विरोधाभाषों के चलते केरल की ईएमएस नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर दिया था। ऐसा ही एक उदाहरण 2008 में उस समय सामने आया, जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर डॉ. मनमोहन सिंह की गठबंधन सरकार में शामिल वाम दलों ने सरकार सेसमर्थन वापस ले लिया था।

संजय गांधी को नापसंद थी कम्युनिस्ट पार्टी 
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र तत्कालीन सांसद संजय गांधी की कम्युनिस्टों के प्रति नापसंदगी एक समय इतनी तीव्र हो गयी थी, जब वह केरल युवा कांग्रेस के नेता वायलार रवि और अन्य से यह कहने से भी नहीं चूके कि आप सभी कम्युनिस्टों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मानना है कि राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लडऩे से कांग्रेस और वाम दलों के बीच मतभेद की दरारें और बढ़ सकती हैं। उनके इस कदम से उनकी पार्टी, विशेषकर केरल प्रदेश इकाई में जहां‘आंतरिक कलह’को व्यक्त करता है, वहीं यह स्थिति माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) में प्रकाश करात और सीताराम येचुरी गुटों के बीच बढ़ते शीत युद्ध की पुष्टि भी करता है।

कम्युनिस्ट पार्टी की मदद से इंदिरा गांधी को मिली थी सत्ता
भाजपा के एक नेता ने कहा कि दिल्ली स्थित एक वामपंथी नेता ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष ने केरल में एक गुट विशेष के दबाव में आकर वायनाड से चुनाव लडऩे का फैसला लिया है। इसके अलावा उन्होंने उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश में अपने प्रति हिन्दुओं की नाराजगी को भांपकर एक सुरक्षित और अल्पसंख्यक बहुल निर्वाचन क्षेत्र की मांग की है। कुछ समाजवादी नेताओं का भी कहना है कि वाम दल, विशेषकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 1960 के दशक में कांग्रेस के दोफाड़ होने के समय इंदिरा गांधी को सिंडिकेट के जरिए सत्ता हासिल करने में सहायता की थी लेकिन बाद में वामदलों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया।

vasudha

Advertising