भारत-पाक के बीच तनाव का एक और कारण बन रहा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रॉजेक्ट

Sunday, Dec 17, 2017 - 08:23 PM (IST)

मुजफ्फराबादः पीओके में चल रहे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रॉजेक्ट भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का एक और कारण बनता जा रहा है। दोनों देश यहां नीलम या किशनगंगा नदी पर बड़े से बड़े पावर प्लांट्स स्थापित करने में जुटे हैं। लाइन ऑफ कंट्रोल के दोनों ओर दो प्रॉजेक्ट्स पूरे होने वाले हैं। पाकिस्तान को डर है कि भारत की पानी की बढ़ती जरूरतों के चलते उसके प्रॉजेक्ट्स प्रभावित होंगे।

दोनों देशों के बीच यह इलाका बीते 70 वर्षों से विवाद का कारण बना हुआ है। अब पानी को अपनी ओर मोड़ने की होड़ ने इस संघर्ष को और तेज कर दिया है। नीलम नदी पर दोनों देशों के बीच ताजे पानी को कब्जाने के लिए जंग चल रही है। दोनों ही देशों की तेजी से बढ़ती आबादी के चलते जल संसाधन सिमट रहे हैं और उन्हें कब्जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

नीलम नदी का जल अंतत: एशिया की सबसे लंबी नदी सिंधु में जाकर मिलता है, जो दोनों देशों की संवेदनशील सीमाओं को तय करने का काम करती है। किशनगंगा कही जाने वाली नीलम नदी तिब्बत से निकलती है और कश्मीर के रास्ते पाकिस्तान जाती है। पाकिस्तान के पंजाब सूबे समेत बड़े इलाके की 65 फीसदी पानी की जरूरत नीलम नदी के जल से ही पूरी होती है। भारत के इलाके से होकर ही नीलम नदी पाकिस्तान तक पहुंचती है।

दोनों देशों के बीच 1960 में वर्ल्ड बैंक की अगुआई में सिंधु जल समझौता हुआ था। दोनों देशों के कड़वे इतिहास को देखते हुए यह शांतिपूर्ण समझौता बेहद अहम माना जाता है। इस समझौते के तहत भारत के पास व्यास, रावी और सतलुज नदी के पानी का अधिकतम हिस्सा है, जबकि पाकिस्तान के पास सिंधु, चेनाब और झेलम नदी के पानी के इस्तेमाल का अधिकार है। 

नीलम और झेलम नदी के संगम पर पाकिस्तान की ओर से कंक्रीट और स्टील का अंडरग्राउंड कैथेड्रल तैयार किया जा रहा है। यहां 4 जेनरेटर लगातार काम कर रहे हैं और यहां ट्रांसफॉर्मर्स और नेटवर्क का इंतजार किया जा रहा है। यहां 28 किलोमीटर के दायरे में 6,000 पाकिस्तानी और चीनी वर्कर्स अंडरग्राउंड टनल की खुदाई में बिजी हैं। माना जा रहा है कि इस डैम का काम पूरा होने के बाद पाकिस्तान को 2018 के मध्य तक 969 मेगावॉट तक बिजली मिल सकेगी। 

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