Research: वैज्ञानिकों ने भारतीय बच्चों के खून को लेकर किया खतरनाक दावा

Monday, Oct 15, 2018 - 11:03 AM (IST)

मेलबर्न: ऑस्ट्रेलिया में मैकक्वेरी विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने भारतीय बच्चों के खून में शीशा के स्तर को लेकर खतरनाक व चौंकाने वाला दावा किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारतीय बच्चों के खून में शीशा की अत्यधिक मात्रा से उनकी बौद्धिक क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। इससे अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ सकता है। इस अध्ययन में पाया गया कि बीमारी का खतरा काफी बढ़ चुका है। 

 खून में शीशे अधिक मात्रा का बच्चों में बौद्धिक क्षमता पर नकरात्मक असर पड़ता है। मैकक्वेरी विश्वविद्यालय के ब्रेट एरिक्सन ने कहा कि भारत में  बच्चों में बौद्धिक क्षमता पर दुष्प्रभाव बहुत ज्यादा है, क्योंकि उनके खून में शीशे का स्तर करीब सात माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर है। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि भारतीयों के रक्त में शीशे के स्तर में वृद्धि के लिए बैट्री गलन क्रिया जिम्मेदार है। भारत में बैट्री रिसाइकिलिंग प्रक्रिया की व्यवस्था ठीक नहीं है।

एरिक्सन ने कहा, "भारत में काफी तादाद में लोग मोटरसाइकिल या कारें चलाते हैं और उसकी बैट्री का जीवन सिर्फ दो साल होता है। इस्तेमाल की गई लेड बैट्रियों की संख्या काफी है, जिन्हें हर साल रिसाइकिल किया जाता है। उन्होंने कहा कि इन्हें प्राय: अनौपचारिक रूप से बेहद कम या नगण्य प्रदूषण नियंत्रकों के साथ रिसाइकिल किया जाता है, जिनसे समूचे शहरी इलाकों की हवा में लेड मिल जाता है।" अनुसंधानकर्ताओं  के अनुसार आयुर्वेदिक औषधि, आइलाइनर, नूडल्स और मसाले सहित ऐसे अन्य पदार्थ भी हैं, जो बच्चों के खून में शीशा का स्तर बढ़ाते हैं। 

अनुसंधान के अनुसार, वर्ष 2010 से 2018 के बीच खून में शीशा के स्तर को बताने वाले आंकड़े से बौद्धिक क्षमता में कमी और रोगों के लिए जिम्मेदार डिसैबिलिटी एडजस्टेड लाइफ इयर्स (डीएएलवाइ) का पता चलता है। डीएएलवाइ से यह पता चलता है कि खराब स्वास्थ्य, अक्षमता और असमय मृत्यु के कारण हम कितने साल गंवा बैठे। पूर्व के अध्ययनों के अनुमान के अनुसार, शीशा के कारण डीएएलवाइ से 46 लाख लोग प्रभावित हुए और 165,000 लोगों की मौत हुई। नए अध्ययन में यह पता चला कि डीएएलवाइ के कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़कर 49 लाख तक हो सकती है। 
 

Tanuja

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