कभी सड़क पर उतरकर की थी गिरफ्तारी की मांग, अब BJP के लिए साबित हो सकते हैं ''सकंटमोचक''

Friday, Oct 25, 2019 - 12:22 PM (IST)

नई दिल्ली: हरियाणा की सिरसा विधानसभा सीट से चुनाव जीते हरियाणा लोकहित पार्टी के नेता गोपाल कांडा एक बार फिर सुर्खियों में है। सूत्रों के अनुसार हरियाणा में भाजपा की सरकार बनवाने में गोपाल कांडा अहम भूमिका निभा सकते हैं। गुरुवार की रात ही वो एक चॉर्टड प्लेन से दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे। हरियाणा में बीजेपी जिन 6 निर्दलीय विधायकों के समर्थन के साथ सरकार बनाने की तैयारी कर रही है उसमें सिरसा के विधायक गोपाल कांडा भी शामिल हैं। गोपाल कांडा इस समय अपनी ही कंपनी की एक महिला कर्मचारी गीतिका शर्मा खुदकुशी केस में आरोपी हैं और उनके खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चल रहा है और वह इस समय जमानत पर बाहर हैं। एक वक्त वो भी था जब भारतीय जनता पार्टी ने सड़कों पर उतर कर गोपाल कांडा के खिलाफ प्रदर्शन किया था। आईए एक नजर डालते हैं गोपाल कांडा के सियासत से जेल तक के सफर के बारे में।



गोयल कांडा की थी रेडियो रिपेयर की एक छोटी-सी दुकान
हरियाणा के छोटे से शहर सिरसा में खराब रेडियो रिपेयर कर कुछ सौ रुपए महीना कमाने वाला, कब जूते बेचने लगा और फिर जूते बेचते-बेचते कब नेताओं के पांव की नाप लेकर अपने पांव हवाई जहाज में रख बैठा किसी को पता ही नहीं चला। गोपाल गोयल कांडा की रेडियो रिपेयर की एक छोटी-सी दुकान थी। ज्यूपिटर म्यूजिक होम नाम की दुकान से महीने में बमुश्किल कुछ सौ रुपए की ही उसे आमदनी होती थी पर कांडा की नजरें आसमान में हवाई जहाज पर गड़ गईं और शुरू हुआ उसका सियासी सफर।कांडा जानता था कि रेडियो रिपेयर करने की एक मामूली सी दुकान से वह हवाई सफऱ तय नहीं कर सकता था इसलिए उसने बिना देरी किए अपने ज्यूपिटर म्यूजिक होम पर ताला लगाया और अपने भाई गोविंद कांडा के साथ मिल कर एक नया धंधा शुरू किया। इस बार गोपाल गोयल कांडा ने जूते और चप्पल की दुकान खोली। गोपाल की कांडा शू कैंप नाम की दुकान चल पड़ी और फिर दोनों भाइयों ने बिजनेस बढ़ाते हुए खुद जूता बनाने की फैक्ट्री खोल ली। अब दोनों खुद जूता बनाते और अपनी दुकान पर बेचते। जूते बेचते-बेचते ही कांडा कई बिजनेसमैन, बिल्डर, दलाल और नेताओं के संपर्क में आ चुका था।



राजनीति के गलियारे में पहला कदम        
राजनीतिक की शुरुआत कांडा ने चौधरी बंसीलाल के बेटे से की। वह उनके करीब आया तो अचानक उसका रसूख बढ़ना शुरू हो गया लेकिन जैसे ही चौधरी बंसीलाल की सरकार गई तो कांडा ने बिना देर किए ओमप्रकाश चौटाला के बेटों के पांव नापने शुरू कर दिए। फिर क्या था गोपाल कांडा और उसके भाई गोविंद राजनीति में कूदने की रणनीति बनाने में जुट गए क्योंकि गोपाल के सिर पर राजनीति को कारोबार बनाने का जुनून सवार था।




आईएएस अफसर ने खोला कांडा की किस्मत का दरवाजा          
सुनने में आता है कि जब कांडा राजनीति में कूदने की जुगत लड़ा रहा था तभी एक आईएएस अफसर सिरसा में आया और उस अफसर की झोली भर-भर कर कांडा ने व्यापार का अपना दायरा और बढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद उस अफसर का ट्रांसफर गुड़गांव में हो गया। गुड़गांव की तस्वीर उन दिनों बदलने की पूरी तैयारी हो चुकी ती और यहां की जमीन सोने के भाव पर बिक रही थी। तब हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी हुडा गुड़गांव का सबसे बड़ा जमींदार बन चुका था और कांडा के करीबी आईएएस अफसर हुडा के बहुत बड़े अफसर बन चुके थे बसे यहीं से खुलने जा रहे थे कांडा की किस्मत के दरवाजे।


जमीन की दलाली ने बनाया पैसेवाला
गुड़गांव की तरक्की सुन कांडा अपने स्कूटर से सीधे गुड़गांव पहुंच गया और वहां जमीन की दलाली शुरू कर वो कब पैसे वाला बन गया सब हैरान हो गए। साल 2007 में अचानक पूरे सिरसा को एक खबर ने चौंका दिया कि गोपाल कांडा ने अपने वकील पिता मुरलीधर लखराम के नाम पर एमडीएलआर नाम की एयरलाइंस कंपनी शुरू कर दी। 2 साल तक तो सब ठीक रहा लेकिन एयरलांस के बही-खाते में हिसाब इतने खराब थे कि कांडा के हवाई सपने एक बार फिर से हवा हो गए।

2009 में बने हरियाणा का गृहराज्य मंत्री
एयरलांस में भारी नुकसान के बाद कांडा ने होटल, कैसिनो, प्रापर्टी डीलिंग, स्कूल, कॉलेज और यहां तक कि लोकल न्यूज चैनल में भी अपना हाथ आजमाया और खूब कमाई की लेकिन इन सबके बीच कांडा के दिल में राजनीति में जाने का जो जुनून था वो और बढ़ता गया। आखिरकार 2009 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ही मैदान में उतरा और चुनाव जीत गया। 90 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 40 सीटें ही मिलीं। निर्दलीय विधायकों ने अपनी बोली लगाई और उसी में कांडा हरियाणा का गृहराज्य मंत्री बन गया।


शू कैंप का नाम बदल कर कैंप ऑफिस रखा
मंत्री बनने के बाद कांडा ने सिरसा के शू कैंप का नाम बदल कर कैंप ऑफिस कर दिया। एमडीएलआर की सेवा बंद हो चुकी थी पर कंपनी चल रही थी। इसके साथ करीब 40 दूसरी कंपनियां भी चल रही थीं। पैसा और पॉवर अपने साथ कांडा के लिए मुसीबते भी लेकर आईं। कांडा ने अपनी कंपनियों में लड़कियों को भर्ती करना शुरू कर दिया। छोटी उम्र में ही लड़कियों को बड़े-बड़े पद बांट दिए और इन्हीं में से एक लड़की थी दिल्ली की गीतिका।


तरक्की की सीढ़ियां जल्दी ही चढ़ गई गीतिका
2006 में हवाई कंपनी में एयरहोस्टेस और केबिन क्रू की भर्ती के लिए गुड़गांव में इंटरव्यू था। उसी इंटरव्यू में कांडा पहली बार गीतिका से मिला और इंटरव्यू खत्म होते ही उसे ट्रेनी केबिन क्रू का लेटर थमा दिया। 6 महीने बाद जैसे ही गीतिका 18 साल की हुई उसे एयरहोस्टेस बना दिया गया। बस फिर क्या था वक्त से भी तेज गीतिका तरक्की की सीढ़ियां चढ़ती गईं।


एक सुसाइड नोट और खुल गई कांडा की पोल
गीतिका तीन साल के अंदर ही ट्रेनी से कंपनी की डायरेक्टर की कुर्सी तक पहुंच गई और ये सब मेहरबानी थी कांडा की लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि गीतिका, कांडा और उसकी कंपनी दोनों से दूर चली गई। उसने दुबई में नौकरी कर ली। पर कांडा ने उसे दिल्ली वापस आने पर मजबूर कर दिया। दिल्ली आने के बाद भी कांडा ने गीतिका का पीछा नहीं छोड़ा। गीतिका कांडा की इस हरकत से इतनी परेशान हो गई कि उसने सुसाइड कर लिया। गीतिका के सुसाइड नोट ने एक बार फिर से कांडा की जिंदगी पलट कर रख दी और शुरू हुआ उसका जेल तक का सफर। इस घटना के बाद कुछ दिनों तक पुलिस से भागने के बाद उसे मजबूरन सरेंडर करना पड़ा। कहते हैं कि कांडा हमेशा अपनी कंपनियों में लड़कियों को सबसे आगे रखता। इसे कांडा की कमजोरी कहें या शौक लेकिन सच है कि उसकी दिलचस्पी लड़कियों में कुछ ज्यादा ही थी। अरुणा चड्ढा, नूपुर मेहता, अंकिता और गीतिका शर्मा, ये वो चंद नाम हैं जिन्हें गोपाल कांडा ने अपनी कंपनी में ऊंचे पद दे रखे थे।

Anil dev

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