हरिवंश ने कराई सरकार की किरकिरी

Friday, Aug 10, 2018 - 07:47 PM (IST)

नेशनल डेस्कः मानसून सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में सरकार के एक ऐसा मौका आया जब सरकार मुश्किल में फंसती नजर आई। इसकी वजह विपक्ष के नेता नहीं बल्कि राज्यसभा के नवनिर्वाचित उपसभापति हरिवंश सिंह बने। उनके एक फैसले से राज्य सभा में सरकार फंसती नजर आई और विपक्ष को मौका मिल गया सरकार पर निशाना साधने का।



राज्यसभा में आज प्राइवेट मेंबर कामकाज का दिन था और इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी के सांसद विशंभर प्रसाद ने देशभर में समान आरक्षण व्यवस्था लागू करने से जुड़ा एक प्रस्ताव पेश कर दिया। इस प्रस्ताव पर चर्चा हुई और तमाम दलों के सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन भी किया। लेकिन आखिर में जब आसन की ओर से सदस्य से प्रस्ताव वापस लेने के लिए कहा गया तो उन्होंने उपसभा से इस पर वोटिंग कराने की मांग कर दी और पीठासीन हरिवंश ने इस तुरंत ही मंजूर भी कर दिया।



कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने उपसभापति के फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सामान्य रूप से प्राइवेट मेंबर प्रस्ताव पर डिवीजन नहीं होता है। इसका मकसद सिर्फ सरकार को मुद्दे से अवगत कराना होता है। प्रस्ताव को पेश करने के बाद वापस ले लिया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव पर वोटिंग कराकर एक नई परंपरा डाली जा रही है। इसका समर्थन करते हुए सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि प्राइवेट बिल पर वोटिंग हो सकती है। लेकिन प्रस्ताव पर कभी वोटिंग नहीं हुई।



उपसभापति ने कहा कि नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एक बार कहने के बाद वोटिंग रोकी जा सके। इस पर केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि यह आदेश तो हम मानेंगे। लेकिन आगे इस नियम में आपको कुछ सुधार करना होगा। इस बीच बीजेपी सांसद अमित शाह अपने सांसदों से “नो का बटन” दबाने के लिए कहते भी सुनाई दिए।



हालांकि वोटिंग के बाद आरक्षण से जुड़ा प्रस्ताव सदन में गिर गया और सत्ताधारी दलों के सांसदों ने इस बिल का विरोध किया। प्रस्ताव के पक्ष में 32 और विरोध में 66 वोट पड़े। सदन में कुल 98 सदस्य मौजूद थे। प्रस्ताव के गिरते ही विपक्षी दल सदन में सरकार के खिलाफ दलित विरोधी होने के नारे लगाने लगे। इस पर उपसभापति ने उन्हें शांत कराया।



विपक्ष की नारेबाजी पर रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अच्छा होता कि यह लोग तीन तलाक पीड़ित बेटियों के पक्ष में खड़े होते। इनको बेटियों के पक्ष में खड़ा होना चाहिए, जिसका यह लोग विरोध कर रहे हैं। यह लोग उस विषय पर राजनीति कर रहे हैं और यह बात मैं सदन में कर रहा हूं।



आमतौर पर प्राइवेट मेंबर प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं कराई जाती है। लेकिन उपसभापति ने इसे स्वीकार कर लिया तो वह जरूरी हो जाती है। जब आरक्षण से जुड़ा यह प्रस्ताव गिराने पर सरकार की किरकिरी होना तय थी। यही वजह थी कि सरकार इस प्रस्ताव के वोटिंग के पक्ष में नहीं थी।   

Yaspal

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