गुुजरात में बनने लगा राज्यसभा चुनावों जैसे ‘सीन’

Monday, Oct 23, 2017 - 05:56 PM (IST)

जालंधर(पाहवा): कुछ समय पहले गुजरात में राज्यसभा चुनावों के लिए खूब उठा पटक हुई थी जिसमें पूरे देश ने तमाशा देखा कि किस तरह से सत्ता के लिए राजनेता किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। अब एक बार फिर से गुजात में वही राजनीतिक धमाचौकड़ी शुरू होने जा रही है। 

बीते शनिवार को पाटीदार आंदोलन के संयोजक हार्दिक पटेल और प्रदेश में ओ.बी.सी. वर्ग का चेहरा माने जाने वाले अल्पेश ठाकोर ने इन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ जाने की घोषणा की तो इसके कुछ घंटों के भीतर पाटीदार आंदोलन के ही दो अन्य प्रमुख चेहरों- वरुण पटेल और रेशमा पटेल द्वारा भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने की खबरें भी सामने आ गईं। जानकारों के मुताबिक पहले पाटीदार और फिर अल्पेश ठाकोर का समर्थन मिलने से गुजरात में कांग्रेस का पलड़ा एकदम से भारी हो गया था, ऐसे में वरुण और रेशमा को अपने साथ मिलाकर भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की कि प्रदेश में विरोधियों की किसी भी चाल का तोड़ निकालना आज भी उसके बाएं हाथ का खेल है। 

इस पूरे मामले में सभी कुछ भाजपा के पक्ष में नहीं है। जानकारों का कहना है कि  वरुण पटेल और रेशमा पटेल के साथ आने से भाजपा को फायदे की बजाय नुकसान हो सकता है। गुजरात में पाटीदार समाज भाजपा के चंगुल से प्रदेश को मुक्त करवाना चाहता है। पाटीदार अपने 14 लोगों की हत्या के लिए गुजरात सरकार को जि मेदार मानते हैं। ऐसे में वरूण व रेशमा के पासा पलटने का उन्हें आॢथक फायदा तो हो सकता है लेकिन राजनीतिक तौर पर न तो भाजपा तथा न ही वरूण व रेश्मा को कोई फायदा होता दिख रहा है। 

माहिर लोगों के अनुसार खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ओ.बी.सी. वर्ग से आने की वजह से इस वर्ग को अब तक भारतीय जनता पार्टी का प्रमुख वोटबैंक माना जाता था लेकिन अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस को समर्थन देने के बाद बड़ी सं या में ओ.बी.सी. मतदाताओं के भाजपा के हाथ से फिसलने की संभावना बनती नजर आ रही है। ऐसे में जानकारों के मुताबिक अंदरखाने पार्टी खुद भी जानती है कि रेशमा और वरुण को अल्पेश ठाकोर की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के तौर पर देखना एक प्रकार का टाईम पास ही है।

प्रदेश में भाजपा के पास पहले से पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल जैसे कई बड़े पाटीदार नेता मौजूद हैं लेकिन जब वे ही समुदाय के आक्रोश को शांत करने में अब तक नाकाम साबित रहे हैं तो नए चेहरों को साथ लाने से पार्टी को कुछ खास फायदा नहीं होने वाला। उल्टा इन दोनों नेताओं के प्रति जबरदस्त नाराजगी पैदा हो गई है जो सोशल मीडिया के बाद सड़कों पर भी सामने आ रही है।

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