गरीबी से जूझते हुए कश्मीर की तौहीदा ने महिलाओं के कारोबार करने के सपनों को किया साकार

punjabkesari.in Wednesday, Sep 06, 2023 - 05:55 PM (IST)

जम्मू (शीरीन बानो): जो लोग आर्थिक तंगी के बावजूद अपने लक्ष्य को सामने रखकर संघर्ष करने की क्षमता रखते हैं, ऐसे लोग हमेशा सफल होते हैं। सफलता उनसे कभी मुंह नहीं मोड़ती। कश्मीर कभी ऐसा हुआ करता था, जब वहां से गोलियों की आवाजें सुनाई देती थीं, लेकिन आज कश्मीर घाटी से कामयाबी की कहानी सामने आ रही है। हर दिन की हड़ताल और कश्मीर बंद अब बीते दिनों की बात हो गई है। अब वहां के लोगों को देश के साथ खड़े होने पर गर्व है। घाटी में शांति, प्रगति और खुशहाली जारी है।

कश्मीर के युवाओं के पास ज्यादा संसाधन नहीं हैं, फिर भी वह कारनामे अंजाम दे रहे हैं, चाहे वह अपने कैरियर में नई ऊंचाइयों को छूना हो या समाज के जरूरतमंदों की मदद करना और उनके सपनों को उड़ान देना हो। आने वाले दिनों में  देश के निर्माण में उनकी भूमिका भी कम नहीं होगी। ऐसी ही एक कहानी है घाटी के एक मजदूर की बेटी तोहिदा अख्तर की।

12वीं कक्षा के बाद छोड़ दी पढ़ाई 
तौहिदा अख्तर के पिता घरेलू नौकर के रूप में काम करके अपनी आजीविका कमाते थे, जिसके कारण उनके परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था। उनके घर में हमेशा पैसे की कमी रहती थी। यही कारण है कि तौहीदा को 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। वह अपने परिवार और भाई-बहनों के लिए कुछ करना चाहती थी। इसे याद करते हुए 30 वर्षीय ताहिदा कहती हैं, "मेरे पिता एक मजदूर थे और मुझे पढ़ाने का खर्च नहीं उठा सकते थे। हालांकि, मैंने घर पर खाली बैठने से इनकार कर दिया और बामिना इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (आईटीआई) में दाखिला लिया।

वह कहती हैं कि मैंने यहां बहुत मेहनत से पढ़ाई की और मेहनत का अच्छा फल मिला, मैं अपनी कक्षा में अव्वल रही। जिससे मुझे जीवन में नई चीजों को आजमाने का आत्मविश्वास मिला। लेकिन यह यात्रा मेरे लिए आसान नहीं थी, कई बार मेरे पास बस से सफर करने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं होते थे। हालांकि, कठिन समय ने मुझे अपने भाइयों और बहनों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए मजबूर किया। मुझे अपने सपने को आगे बढ़ाने और कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया।
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मैंने अपने हुनर से फायदा उठाया
तोहिदा के तीन बड़े भाई और एक छोटी बहन है। उन्हें पहली सफलता तब मिली जब उन्होंने ज़ैनब इंस्टीट्यूट, मासूमा द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लिया। वह कहती हैं, ''मैंने प्रतियोगिता जीती और पुरस्कार के रूप में एक नई सिलाई मशीन मिली, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। मैंने अपने हुनर से फायदा उठाया और सिलाई शुरू कर दी। इससे मुझे अच्छी आमदनी होने लगी। इसके बाद तौहीदा ने एक छोटा सा बुटीक खोला, जो अब एक सफल उद्यम है और इसमें लगभग 12 महिलाओं को रोजगार मिलता है।
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गरीब महिलाओं को सशक्त करने का फैसला 
लेकिन सिर्फ अपने और अपने परिवार के लिए अच्छा कमाना ही काफी नहीं था। इसलिए तौहीदा ने गरीब महिलाओं को सशक्त बनाने का फैसला किया और इस तरह लावापुरा में एक प्रशिक्षण केंद्र खोला। तोहिदा कहती हैं, मेरे बुटीक में 12 कर्मचारी हैं। मैं सिलाई और मेंहदी की कला सिखाती हूं। मैंने 1,150 से अधिक लड़कियों को प्रशिक्षित किया है और बहुत कम फीस लेती हूं। मैं गरीबों या अनाथों से फीस नहीं लेती। तोहिदा शाइनिंग स्टार नाम से एक सोसायटी भी चलाती हैं, जिसके जरिए वह अपने बुटीक या आईटीआई में महिलाओं को मुफ्त ट्रेनिंग देती हैं। हाल ही में उन्होंने 80 लड़कियों के लिए तीन महीने का मुफ्त फैशन डिजाइनिंग कोर्स और 15 लड़कियों और तीन लड़कों के लिए एक साल का आईटीआई कोर्स भी कायम  किया है।

कहां से मिली प्रेरणा 
तौहीदा को यह सब करने की प्रेरणा उनके मामा नजीर अहमद राथर ने दी। वह कहती हैं, सिलाई के बाद मैंने कढ़ाई, बुनाई और सिलाई सीखी। मैं हमेशा अपने छात्रों से कहती हूं कि कोई भी हुनर सीखने से उन्हें लाभकारी रोजगार खोजने में मदद मिलेगी, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और उनका जीवन अधिक आरामदायक हो जाएगा। तौहीदा का सफ़र एक बार फिर साबित करता  है कि यदि आप खुद पर विश्वास करते हैं, तो आप अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।


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Content Editor

rajesh kumar

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