गुजरात चुनाव: भाजपा को पहले चरण में 60 सीटों का भरोसा

Tuesday, Dec 12, 2017 - 10:46 AM (IST)

नई दिल्ली: पहले चरण के मतदान के बाद अब गुजरात में इसे लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस राउंड में भाजपा को फायदा होगा या नुकसान? सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में हुए पहले चरण के मतदान के बाद भाजपा को भरोसा है कि 60 से अधिक सीटें जीतने में सफल रहेगी। पहले चरण के मतदान के बाद मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने तो भरोसा जताया है कि उत्तरी गुजरात में भी उन्हें सफलता मिलेगी। उनका कहना है कि जब बाढ़ आई थी तो बनासकांठा के कांग्रेस विधायक इलाके से गायब रहे थे। इसके अलावा उनका मानना है कि कुछ सीटें तो कांग्रेस ने पिछली बार केवल 1000 वोटों के अंतर से ही जीती थी। पार्टी को गैर पाटीदार व गैर ठाकोर ओबीसी मतों पर भरोसा है। मध्य क्षेत्र की 38 सीटें भी दोनों दलों के लिए महत्वपूर्ण हैं। कांग्रेस यहां पारंपरिक रूप से आदिवासी व देहात के इलाके में आगे रहती है जबकि भाजपा शहरी इलाके में बढ़त बनाती है। विशेष रूप से वडोदरा जैसे इलाके तो उसका गढ़ हैं। एक भाजपा नेता का मानना है कि सौराष्ट्र पार्टी के लिए चुनौती था लेकिन पाटीदार वोटों में विभाजन और अन्य बिरादियों में भाजपा के प्रति एकजुटता ने भाजपा को फायदा पहुंचाया है। इसलिए इस इलाके में भाजपा की सीटें 60 से कम तो किसी हालत में नहीं हो सकती हैं। 2012 में भाजपा ने यहां 63 (89 में से) जीती थीं जबकि कांग्रेस ने 22 सीटें। 

नवसारी और मोरबी जिलों में 75 प्रतिशत से अधिक का मतदान हुआ है। जबकि भावनगर में कम से कम 60 प्रतिशत मतदान हुआ। 2012 में पहले चरण में 71 प्रतिशत तो 2007 में 60 प्रतिशत वोट पड़े थे। भाजपा का मानना है कि 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी से भाजपा के वोट बैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। दूसरी ओर, कांग्रेस खेमा मान रहा है कि पहले चरण में उसकी 40 से 45 सीटें कहीं नहीं गई। सूरत में तो कांग्रेस को विश्वास है कि वह भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रहेगी। अब भाजपा का फोकस उत्तरी गुजरात की 32 सीटों पर है। गांधीनगर, बनासकांठा, साबरकांठा, अरावली, मेहसाणा और पाटन समेत छह जिलों के इस इलाके में 2012 में भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर हुई थी और कांग्रेस ने 17 व भाजपा ने 15 सीटें जीती थीं।

दूसरे चरण में बढ़ सकता है मत प्रतिशत
गुजरात में पहले चरण में मतदान का प्रतिशत (लगभग 68 प्रतिशत) पिछली बार की तुलना में थोड़ा कम जरूर रहा लेकिन दूसरे चरण के मतदान के बाद यह आंकड़ा ऊपर जा सकता है। 182 में से 89, यानी लगभग 50 प्रतिशत सीटों के लिए ही मतदान हुआ है और उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में लिखी जा चुकी है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या दूसरे चरण के चुनाव के लिए मोदी के करिश्मे ने बीजेपी को सही गति और आत्मविश्वास दिया है या फिर हाॢदक पटेल से हाथ मिलाने का फायदा कांग्रेस को होगा, वह 27 सालों बाद गुजरात में सत्ता में लौटेगी?

शहरी इलाकों में बीजेपी मजबूत
इस बात के भी संकेत मिले हैं कि जीएसटी की दरों पर नए सिरे से विचार होने के बाद कपड़े और हीरे के व्यापारियों के कड़े तेवर में कुछ नरमी आई है और सरकार के ऊंचे पदों पर मौजूद बीजेपी के कुछ प्रभावशाली नेताओं के साथ व्यापारियों की कुछ गुपचुप बैठकें भी हुई हैं। एक बात और कही जा रही है और इसके कारण भी बीजेपी के खेमे में उत्साह का माहौल है, भले ही ऐसी खबरें आ रही हों कि परंपरागत रूप से बीजेपी के समर्थक रहे कुछ तबके और समूह इस बार उसके खिलाफ हैं। यह बात तो बिल्कुल जानी-पहचानी है कि शहरों इलाकों में बीजेपी मजबूत ही रही है। गुजरात एक ऐसा राज्य है जहां 45 फीसदी आबादी शहरी इलाकों में रहती है। सूबे में विधानसभा की 70 सीटें ऐसी हैं जहां ज्यादातर आबादी शहरी इलाके में रहती है। शहरी क्षेत्रों में बीजेपी की जीत का अन्तर बड़ा (10 हजार से 60 हजार के बीच) रहा है। इसलिए सोचा जा सकता है कि कुछ समर्थक बीजेपी के पाले से हट जाएं तो भी पार्टी के उम्मीदवार जीत जाएंगे। हां, उनकी जीत वोटों के ज्यादा बड़े अन्तर से नहीं होगी।

दूसरे चरण के चुनाव में हाॢदक उत्तरी गुजरात में बीजेपी को नुकसान पहुंचाने और कांग्रेस को आगे ले जाने की स्थिति में हैं, यह बात खासतौर पर मेहसाणा इलाके के बारे में कही जा सकती है। लेकिन ऐसा होने पर एक सीमा तक दूसरी जातियों के मतदाता बीजेपी की तरफ गोलबंद होंगे जबकि पिछले चुनाव में वे बीजेपी के लिए ज्यादा मददगार साबित नहीं हुए थे। मध्य गुजरात में 61 सीटें हैं। यहां हार्दिक का कोई असर नहीं है, वे इस इलाके के लिए अनजान हैं। आदिवासी और ओबीसी का वोट अपने पाले में खींचने के लिए राहुल गांधी ने जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर पर ज्यादा भरोसा करने की रणनीति अपनाई लेकिन उनका यह आइडिया काम करता नहीं दिखता। दरअसल, मेवाणी और ठाकोर अपने चुनाव-क्षेत्र क्रमश: वडगाम और राधानगर में बड़ी लचर हालत में हैं। कांग्रेस का अपना आकलन ही कह रहा है कि अल्पेश ठाकोर की सलाह पर जो 10 लोग उम्मीदवार बने हैं, चुनाव में उनकी हालत पतली है। 5 सीटें आदिवासी नेता छोटू वासवा को दी गई हैं। वासवा जद(यू) के बागी नेता हैं और अब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को इन पांच सीटों के लिए भी चिन्ता सता रही है।

व्यापारी नाराज पर वोटों में विभाजन भी
इसमें कोई शक नहीं कि सूरत के व्यापारी और व्यवसायी समुदाय के एक हिस्से में नाराजगी का भाव है। सौराष्ट्र के इलाके में पाटीदार भी गुस्से में हैं लेकिन बीजेपी के खिलाफ इनके गुस्से को ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है। ऐसा नहीं मान सकते कि इस बार सभी पाटीदारों ने बीजेपी के खिलाफ वोट किया है। वोट के मामले में पाटीदारों में साफ-साफ टूट देखी जा सकती है। सभी पाटीदार तो बीजेपी को एकमुश्त वोट कभी नहीं करते थे। पाटीदारों में ज्यादातर बीजेपी को वोट डालते हैं और मोटा अनुमान है कि पाटीदारों के 20-30 फीसदी वोट बीजेपी के खिलाफ भी पड़ते हैं। इस बार बीजेपी के खिलाफ गए पाटीदार वोटों का आंकड़ा 50 फीसदी से ऊपर जा सकता है। किसी जगह यह 60 प्रतिशत तक पहुंच सकता है तो किसी जगह 70 प्रतिशत भी। सूबे के अलग-अलग इलाकों में लोगों से बातचीत करने पर पता चलता है कि पाटीदारों के आक्रामक चुनाव-अभियान के कारण अन्य पिछड़ा वर्ग के ज्यादातर तबके बीजेपी के पाले में चले गए हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग के गैर-पाटीदार तबके के मतदाताओं का बीजेपी के पाले में जाना उस हद तक तो नहीं हुआ है, जितना 2017 के फरवरी में हुए यूपी के चुनावों में हुआ था जब जाटों ने बीजेपी के खिलाफ जोर-शोर से अभियान चलाया था। फिर भी, गुजरात में एक हद तक ऐसा हुआ जरूर हुआ है।
 

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