विकास का गुजरात मॉडल लगा है दांव पर

Friday, Dec 15, 2017 - 10:38 AM (IST)

नर्इ दिल्लीः गुजरात चुनाव को लेकर राजनीतिक दल चाहे जो भी दावे कर रहे हों, लेकिन दोनों ओर से लोग दिल थामकर बैठे हैं। कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में आर-पार की भूमिका में दिख रही है और उसे उम्मीद है कि इसबार 22 साल की सत्ता के बाद वह भाजपा को राज्य विधानसभा में खुद से छोटा कर पाएंगे।भाजपा अपने चिर-परिचित चेहरे नरेंद्र मोदी के सहारे फिर से गुजरात में चमत्कार दोहराने का दावा कर रही है। भाजपा ने इस बार 182 में से 150 सीटों को जीतने का दावा किया है। ये और बात है कि ऐसा करने के लिए भाजपा को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा है। प्रधानमंत्री से लेकर पार्टी के नेता तक लगातार वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे थे व गुजराती पहचान के नारे दोहरा रहे थे। इससे जाहिर है कि भाजपा जितना आसान इस चुनाव को बता रही है, उतना है नहीं।

राहुल से ज्यादा मोदी के लिए निर्णायक
सबसे अहम बात यह है कि गुजरात विधानसभा चुनाव 2014  नरेंद्र मोदी के लिए सबसे कठिन और निर्णायक साबित होने जा रहा है। वजह यह है कि देश का अगला आम चुनाव और नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद पर वापसी का रास्ता इस चुनाव के निर्णय पर टिका दिखाई दे रहा है। अगर मोदी गुजरात हार जाते हैं तो यह गुजरात मॉडल का ध्वस्त हो जाना होगा। ये वो मॉडल है, जिसे लेकर मोदी 2014 के चुनाव में उतरे थे और विकास की जो कथा उन्होंने सुनाई थी, उसी के दम पर वो स्पष्ट बहुमत तक पहुंचे थे। लोगों को उम्मीद है कि मोदी उस मॉडल को देश का मॉडल बना देंगे। लेकिन, अगर यह मॉडल अपने ही आंगन में फेल हो गया और भाजपा हार गई तो मोदी के लिए बड़ी राजनीतिक और व्यक्तिगत हार होगी। मोदी के राजनीतिक वर्चस्व की जान इस मॉडल में बसती है और इसलिए इस मॉडल की जीत बहुत अहम है। मोदी किसी कीमत पर गुजरात मॉडल की हार सह नहीं सकते।

भाजपा हारी तो आगे राह कठिन
गुजरात चुनाव में अगर भाजपा हारी तो इसका सीधा असर आगामी राज्य विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा। राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में मोदी और भाजपा की पिछले विधानसभा चुनावों में जीत का श्रेय पूरी तरह से मोदी लहर को जाता है। गुजरात की हार उस लहर के अंत के तौर पर देखी जाएगी। इसका सीधा असर वहां की राजनीतिक परिस्थितियों पर पड़ेगा और विपक्ष को मुखर होने का मौका मिलेगा। इन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और ऐसे में भाजपा के पास अपने पक्ष में दोबारा वोट मांगते समय गुजरात मॉडल और मोदी, दोनों कमजोर तर्क नजर आएंगे। राज्यों में कमजोर प्रदर्शन से न केवल विधानसभा चुनाव प्रभावित होंगे बल्कि आम चुनाव के लिए भी ये राज्य भाजपा के पक्ष में एक मजबूत माहौल पेश कर पाने में कम प्रभावी दिखेंगे।
 

2019 में बहुमत टेढ़ी खीर
 सबसे बड़ी बात तो यह है कि क्या गुजरात मॉडल के ध्वस्त होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 जैसा प्रदर्शन 2019 के आम चुनावों में कर पाएंगे। कमजोर रा’यों और ध्वस्त गुजरात मॉडल की चोट ऐसी पड़ सकती है कि पार्टी 2019 में बहुमत के मैजिक नंबर से नीचे उतर सकती है। ऐसे में 2019 का चुनाव तो मोदी के लिए कठिन होगा ही। साथ ही सरकार बनाने और चलाने के लिए उनको साथी मिलने भी मुश्किल हो सकते हैं। स्थिति ऐसी भी आ सकती है कि अगर एक बड़े एनडीए के लिए सरकार कोशिश करे भी तो मोदी को दोबारा पीएम बनाने पर सहमति का रास्ता आसान नहीं होगा। हालांकि ऐसी कई ङ्क्षचताएं तभी सिर उठाएंगी जबकि भाजपा गुजरात विधानसभा चुनाव हार जाए और इसके लिए 18 दिसम्बर का इंतजाार करना ही बेहतर है।

आर्थिक सुधार गले की फांस
प्रधानमंत्री पहले ही अपने आर्थिक सुधार के प्रयासों के चलते निशाने पर हैं। इसका असर जमीनी स्तर पर दिखाई दे रहा है। लोग इससे विचलित हैं, व्यापारी नाराज हैं और विपक्षी दल सरकार को लगातार कमियों के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। नोटबंदी के समय जब भाजपा को उत्तर प्रदेश में मजबूत जनादेश मिला तो प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ने इसे नोटबंदी को जनसमर्थन के तौर पर प्रचारित किया, लेकिन गुजरात हारने की स्थिति में यही तर्क भाजपा को उल्टा पड़ सकता है। लोग कहेंगे कि जीएसटी व नोटबंदी के चलते भाजपा हार गई। इससे जहां सरकार के आर्थिक सुधारों की किरकिरी होगी, वहीं दूसरी ओर सरकार ऐसे किसी भी कड़े कदम उठाने के प्रति हतोत्साहित होगी। मोदी मजबूरन लोकलुभावन नीतियों के सहारे आगे बढऩे को विवश होंगे।

 

 

 

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