50 करोड़ लोगों को मोदी केयर के दायरे में लाने की जल्दी में सरकार
Thursday, Jul 05, 2018 - 07:09 PM (IST)
नेशनल डेस्कः मोदी सरकार 2019 के आम चुनाव से पहले करीब 50 करोड़ लोगों को ‘मोदी केयर’ योजना के अंतर्गत लाने की कोशिश में है। लेकिन मोदी सरकार की इस महात्वाकांक्षी योजना के सामने कई चुनौतियां आ रही हैं। ‘ओबामा केयर’ की तर्ज पर ‘मोदी केयर’ ( आयुष्मान भारत) नाम से फेमस इस योजना को करीब पांच महीनों का समय बीत चुका है और सरकार अब तक अस्पताल और इंश्योरेंस कंपनियों के साथ जूझ रही है। केंद्र सरकार ने अगस्त में इस योजना को लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन सरकार ने जितनी बड़ी आबादी को इश्योर्ड करने का लक्ष्य रखा है। वह पूरे साउथ अमेरिकी देशों की जनसंख्या से भी अधिक है।
मबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार ‘मोदी केयर’ का लक्ष्य देश के 40 फीसदी गरीबों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाना है। 2017 की विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में स्वास्थ्य पर बढ़े खर्च ने 52 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया है। वहीं कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल मोदी सरकार पर गरीबों की तुलना में उद्योगपतियों पर ज्यादा ध्यान देने का आरोप लगाकर निशाना साध रहे हैं।
सरकार चुनाव से पहले लाना चाहती है योजना
मोदी सरकार आयुष्मान भारत (मोदी केयर) योजना को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले धरातल पर उतारकर जनसमर्थन हासिल करने के दबाव में है। हालांकि इस योजना के लाभार्थियों की पहचान हो चुकी है और आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार हो गया है। लेकिन इस प्रोजेक्ट के चीफ एग्जिक्यूटिव इंदू भूषण के मुताबिक, सरकारी और निजी अस्पतालों को इंश्योरेंस कंपनियों को इसमें शामिल करने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाना अभी बाकी है।
भूषण ने बताया कि अगर हमें इतनी बड़ी संख्या में लोगों को इस योजना का लाभ लोगों को देना है तो प्राइवेट सेक्टर की मदद के बिना संभव नहीं है। उनका कहना है कि सरकारी सेक्टर में हमारे पास उस तरह की हेल्थकेयर कैपेसिटी नहीं है। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई है कि 15 अगस्त तक सरकार इसे लॉन्च कर लेगी। आपको बता दें कि 2018 में मोदी सरकारी की यह दूसरी सबसे बड़ी लोककल्याणकारी योजना है। सरकार ने मार्च में 50 करोड़ गरीब कामगारों के लिए सोशल सिक्योरिटी प्रोग्राम का ड्राफ्ट बिल पेश किया था। इसमें असंगठित क्षेत्र के कामकार भी शामिल हैं।ठ
मोदी केयर पर आने वाले खर्च का अबतक आकलन नहीं किया गया है। लेकिन गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये का वार्षिक कवर देने का वादा किया गया है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक, इससे पहले की संघीय स्वास्थ्य बीमा स्कीम 10 सालों तक चलने के बाद भी केवल 61 फीसदी लाभार्थियों को कवर दे पाई। इरामस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के असोसिएट प्रोफेसर ओवन का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े निवेश और मैनपावर के बिना हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इस स्कीम को लागू नहीं कर सकते।