पूर्वांचलवासियों के लिए वरदान साबित होगा गोरखपुर AIIMS, पीएम मोदी 7 दिसंबर करेंगे उद्घाटन

Sunday, Dec 05, 2021 - 05:33 PM (IST)

नेशनल डेस्कः जटिल और गंभीर रोग से ग्रसित मरीजों को इलाज के लिये दिल्ली और मुबंई के बड़े अस्पतालों में ले जाने को विवश पूर्वांचल के लोगों को मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों गोरखपुर एम्स की सौगात किसी वरदान से कम नहीं होगी। अपने मरीजों को इलाज के लिये दिल्ली एम्स ले जाने वाले तीमारदार सर्दी,गरमी और बरसात की परवाह किये बगैर अपने नम्बर के इंतजार में कई रातें फुटपाथों पर गुजारने को विवश होते रहे हैं।

गोरखपुर एम्स के अस्तित्व में आने से पूर्वांचल के साथ साथ बिहार और पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के लोगों को भी खासी सहूलियत होगी। 1998 से लगातार गोरखपुर से सांसद रहे गोरखपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल के लोगों की वेदना तथा गोरखपुर में एम्स स्थापित करने की मांग अनेक बार संसद में उठाई मगर उनकी आवाज 2014 में सुनी गई, जब देश की बागडोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाली। गोरखपुर में एम्स योगी की वर्षों की तपस्या का प्रतिफल है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सात दिसंबर को एम्स के अलावा 8603 करोड़ रूपये की लागत से बन कर तैयार नई फर्टिलाइजर फैक्टरी का भी शुभारंभ करेंगे। गोरखपुर एम्स के शुरू होने से उच्च चिकित्सा सेवाओं के लिए पूरे क्षेत्र के लोगों को दिल्ली, मुम्बई में भटकना नही पड़ेगा और न ही महंगे निजी कॉरपोरेट हॉस्पिटल में जाने को मजबूर होना पड़ेगा।

कई सर्वे और स्टडीज साबित करती हैं कि स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चों की वजह से एक बहुत बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे चली जाती है। पिछड़ा पूर्वांचल क्षेत्र भी इसी चक्रव्यूह में फंसा हुआ था। अब एक नई उम्मीदों का आकाश पूर्वांचल वासियों के सामने है। चिकित्सा और शिक्षा को नई ऊंचाई प्रदान करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री मोदी ने 22 जुलाई 2016 को गोरखपुर एम्स का शिलान्यास किया था।

करीब 1012 करोड़ रूपये की लागत वाले तथा 112 एकड़ में विस्तृत इस चिकित्सा संस्थान में ओपीडी का उद्घाटन फरवरी 2019 को किया गया और इस समय 16 सुपरस्पेशलिटी विभागों की ओपीडी शुरू हो चुकी है। उद्घाटन के बाद 300 बेड का अस्पताल पूरी तरह से कार्य करना शुरू कर देगा। इसे 750 बेड तक विस्तारित करने की योजना है।

स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरसता पूर्वांचल दशकों से राजनीति उपेक्षा का शिकार रहा। करीब चार दशकों तक जापानी इंसेफेलाइटिस यहां के हजारों बच्चों को हर वर्ष निगलता रहा। सरकारें बदलती रहीं मगर किसी ने सुध तक नहीं ली। नवजात शिशुओं को खोने की अपार पीड़ा की लड़ाई योगी ने सांसद के रूप में संसद से ले कर सड़क तक लड़ी पर तत्कालीन नीति निर्माताओं के कानों तक आवाज नहीं पहुँची।   

Yaspal

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