लाल किले पर हिंसा ने दुनिया में कराई किरकिरी, जानें विश्व मीडिया ने PM मोदी को लेकर क्या लिखा ?

Wednesday, Jan 27, 2021 - 04:24 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः भारत में गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले पर पीला झंडा फहराने से देश भर में बवाल मच गया। इस दौरान हुई हिंसा और पीला झंडा फहराने की घटना को देश की अखंडता पर प्रहार माना जा रहा है। देश-विदेश के मीडिया में इस मुद्दे को खूब उछाला जा रहा है। जानते हैं विदेशी मीडिया ने इस घटना पर क्या रिएक्शन दिया और प्रधानमंत्री मोदी के बारे में क्या लिखा..  


सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने लिखा कि हजारों किसान उस ऐतिहासिक लालकिले पर जा पहुंचे, जिसकी प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी साल में एक बार देश को संबोधित करते हैं। रिपोर्ट में  पंजाब के  किसान सुखदेव सिंह के हवाले से कहा गया, "मोदी अब हमें सुनेंगे, उन्हें अब हमें सुनना होगा.'' सुखदेव सिंह उन सैकड़ों किसानों में से एक थे जो ट्रैक्टर परेड के तय रास्ते से हटकर अलग रास्ते पर चल पड़े थे। इनमें से कुछ लोग घोड़ों पर भी सवार थे।  हेराल्ड ने  दिल्ली के एक थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउँडेशन के विश्लेषक अंबर कुमार घोष के हवाले से लिखा किसान संगठनों की पकड़ बड़ी मज़बूत है।

उनके पास अपने जनसमर्थकों को सक्रिय करने के लिए संसाधन हैं और वे लंबे समय तक विरोध-प्रदर्शन कर सकते हैं।  हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 1.3 अरब आबादी में लगभग आधी आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है और एक अनुमान के मुताबिक करीब 15 करोड़ किसान इस समय सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं।  रिपोर्ट में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का बयान भी याद दिलाया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि  किसान अपनी ट्रैक्टर रैली के लिए 26 जनवरी के अलावा कोई दूसरा दिन चुन सकते थे। 

न्यूयॉर्क टाइम्स
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजधानी दिल्ली में एक ओर जहां सेना की भव्य परेड देख रहे थे, वहां से कुछ ही मील की दूरी पर शहर के अलग-अलग हिस्सों में अफरा-तफरी मची थी।  रिपोर्ट में लिखा है कि अधिकतर किसानों के पास लंबी तलवारें, तेज़धार खंजर और जंग में इस्तेमाल होने वाली कुल्हाड़िया थीं जो उनके पारंपरिक हथियार हैं।  रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश से आए हैप्पी शर्मा को ये कहते हुए उद्धृत किया गया है कि "एक बार हम दिल्ली के भीतर आ गए तो फिर हम तब तक कहीं नहीं जाने वाले, जब तक कि मोदी उन क़ानूनों को वापस नहीं ले लेते।"

 

वहीं किसान आंदोलन के नेताओं में से एक बलवीर सिंह राजेवाल के हवाले से इस रिपोर्ट में लिखा गया है, ''इस आंदोलन की पहचान रही है कि ये शांतिपूर्ण रहा है।  सरकार अफवाह फैला रही है, एजेंसियों ने लोगों को गुमराह किया है। लेकिन यदि हम शांतिपूर्ण रहे तो हम जीतेंगे लेकिन हिंसक हुए तो जीत मोदी की होगी।'' रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि केंद्र सरकार ने ट्रैक्टर मार्च को रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन वो इसमें नाकाम हुई। प्रधानमंत्री मोदी अपने राजनीतिक विपक्ष को बेशक तहस-नहस कर सबसे प्रभावशाली शख़्सियत बने लेकिन किसानों ने उनकी परवाह नहीं की ।  

पाकिस्तानी अखबार डॉन
भारत के खिलाफ हमेशा आग उगलने वाले पाकिस्तान के अखबार डॉन ने लिखा कि ऐतिहासिक स्मारक लाल किले की एक मीनार पर कुछ प्रदर्शनकारियों ने खालिस्तान का झंडा लगा दिया। रिपोर्ट के अनुसार "कृषि सुधारों का विरोध कर रहे हजारों किसान मंगलवार को बैरिकेड्ट हटाकर ऐतिहासिक लाल किले के परिसर में घुसे और वहां अपने झंडे लगा दिए।'' खबर में  लिखा गया है कि निजी खरीदारों की मदद करने वाले कृषि कानूनों से नाराज किसान दिल्ली के बाहर बीते दो महीने से डेरा डाले हुए हैं, जो साल 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।  डॉन ने कई तस्वीरें लगाई हैं जिनमें दिखाया गया है कि प्रदर्शनकारी रस्सी के सहारे लाल किले की मीनार पर चढ़कर झंडे लगा रहे हैं जहां एक प्रदर्शनकारी के हाथ में तलवार भी है। कुछ तस्वीरों में किसानों को बैरिकेड्स हटाते दिखाया गया है जहां पुलिस उन पर आंसू गैस के गोले दाग़ रही है। 

न्यूज चैनल CNN
अमेरिकी न्यूज चैनल CNN ने अपनी खबर में कहा कि एक ओर जहां कोविड-19 की वजह से  सरकारी परेड आयोज छोटा रखा गया वहीं दूसरी ओर किसानों ने गणतंत्र दिवस की परेड के दौरान ही अपना मार्च निकालने की योजना बनाई। खबर में कहा गया है कि 'इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।'CNN का कहना है कि दशकों से भारत सरकार कुछ फसलों की कीमत को लेकर किसानों को गारंटी देती रही है, जिससे किसान अगली फसल के लिए निश्चिंत होकर अपना पैसा ख़र्च कर पाते थे।  बीते साल सितंबर में मोदी सरकार ने जो नए कृषि क़ानून बनाए हैं समें किसानों को अपनी फसल सीधे किसी को भी बेचने की आजीदी दी गई है  लेकिन किसानों का तर्क है कि ये नए कानून किसानों के बजाए कार्पोरेट्स के पक्ष में हैं।भारत में ये क़ानून इसलिए विवादों में रहे हैं क्योंकि देश की लगभग 58 प्रतिशत आबादी की आजीविका का प्राथमिक स्रोत खेती-किसानी है।

 दि गार्डियन
ब्रिटिश अखबार दि गार्डियन के मुताबिक लाल क़िले की प्राचीर पर चढ़कर सिख धर्म का झंडा 'निशान साहिब' फहराने वाले पंजाब के किसान दिलजेंदर सिंह का कहना था कि हम बीते छह महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। इतिहास गवाह है कि हमारे पूर्वजों ने इस किले पर कई बार चढ़ाई की है।एक तरह से ये संदेश है सरकार के लिए कि अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम ऐसा दोबारा कर सकते हैं। " किसानों का कहना है कि उनकी हालत को दशकों से नज़रअंदाज़ किया गया है और जो बदलाव किया गया है, उसका मकसद खेती-किसानी में निजी निवेश को लाना है, इससे किसान बड़े कार्पोरेशंस की दया पर निर्भर हो जाएंगे। गार्डियन ने अपनी खबर में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी ज़िक्र किया  जो पहले किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहे थे।  लेकिन लाल किले की घटना के बाद उन्होंने किसानों से दिल्ली खाली करने का आग्रह किया है।  

कनाडाई अखबार द स्टार
कनाडा से प्रकाशित होने वाले अखबार द स्टार ने  लिखा  'मोदी को चुनौती देते हुए भारत के लाल किले में घुसे नाराज़ किसान'। द स्टार ने न्यूज़ एजेंसी एपी की खबर को छापा है जिसमें 72वें गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में जो कुछ हुआ है, वो सब बयां किया है। खबर में  दिल्ली आने वाले सतपाल सिंह के हवाले से लिखा "हम मोदी को अपनी ताकत दिखाना चाहते थे, हम आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।"

दोहा का अलजजीरा अखबार
अरब देश दोहा के अलजजीरा अखबार ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में ही लिखा  "भारत के हज़ारों किसानों ने नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए राजधानी में मुगल काल की इमारत लाल किले के परिसर पर  धावा बोल दिया । इस दौरान हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में  एक व्यक्ति की मौत हुई। " रिपोर्ट में लिखा गया कि "गणतंत्र दिवस की परेड के मद्देनज़र किए गए व्यापक सुरक्षा इंतज़ामों को ठेंगा दिखाते हुए प्रदर्शनकारी लाल क़िले में दाख़िल हुए, जहां सिख किसानों ने एक धार्मिक ध्वज भी लगाया।''रिपोर्ट में इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया गया है कि ये वही लाल किला है जहां भारत के प्रधानमंत्री हर साल 15 अगस्त को मनाए जाने वाले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगा फहराते हैं। खबर के साथ प्रकाशित तस्वीर में दिखाया गया है कि सड़क पर एक शव है, जिसे तिरंगे से ढका गया है और उसके आसपास प्रदर्शनकारी बैठे हुए हैं।साथ ही एक पोस्टर का ज़िक्र किया गया है जिसमें लिखा है- "हम पीछे नहीं हटेंगे, हम जीतेंगे या मरेंगे।" 

 

Tanuja

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