गिलगिल-बालिस्तान में चीन की शह पर दखल दे रहा पाकिस्तान, रिपोर्ट में दावा

Wednesday, Nov 04, 2020 - 03:49 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्क: गिलगित-बाल्टिस्तान को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के फैसले के कारण पाकिस्तान की चारों तरफ निंदा और कड़ा विरोध हो रहा है। भारत ने भी आपत्ति जताते हुए कहा कि यह भारत का अभिन्न अंग है और इस पर किसी तरह का निर्णय लेने या इसकी कानूनी स्थिति बदलने का हक किसी दूसरे देश को नहीं है। वहीं एक अंग्रेजी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान चीन की शह पर गिलगित-बाल्टिस्तान में अपना दखल बढ़ा रहा है। दरअसल गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में अगर पाकिस्तान का प्रभाव बढ़ता है तो इससे फायदा चीन को भी पहुंचेगा। भारत ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि इस्लामाबाद के अवैध और जबरन कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र के एक हिस्से में बदलाव लाने के पाकिस्तान के किसी भी प्रयास को भारत दृढ़ता से खारिज करता है और पड़ोसी देश से तत्काल उस इलाके को खाली करने को कहा। बता दें कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने रविवार को गिलगित में कहा गया था कि उनकी सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को अस्थायी प्रांत का दर्जा देने की घोषणा की थी। साथ ही पाकिस्तान ने इस महीने के आखिर में गिलगिल बाल्टिस्तान में विधानसभा के लिए चुनाव कराने की घोषणा की है। इमरान खान के इस बयान पर मीडिया ने जब सवाल किया तब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव की तरफ से यह प्रतिक्रिया आई।

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि 1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत संघ में वैध, पूर्ण और अटल विलय की वजह से तथाकथित ‘गिलगित बाल्टिस्तान' समेत केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भारत का अभिन्न अंग हैं। भारत ने कहा कि पाकिस्तान सरकार का अवैध और जबरन कब्जाए गए इन क्षेत्रों पर कोई अधिकार नहीं है और इस नए कदम से पाकिस्तान के कब्जे वाले इन क्षेत्रों में मानवाधिकार के घोर उल्लंघन को छिपाया नहीं जा सकेगा। तकरीबन 12 लाख की आबादी वाले चीन और अफगानिस्तान से सटे इस इलाके में बीच-बीच में अलग देश की मांग भी उठती रही है, जिसे पाकिस्तानी फौज सख्ती से कुचल देती है। 

 

पाकिस्तान ने एक तीर से किए कई शिकार
गिलगित-बाल्टिस्तान को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर पाकिस्तान सरकार एक तीर से कई शिकार करना चाहती है। यह इलाका कराकोरम रेंज में है और चीन के उत्तर-पश्चिम के प्रांत शिनजियांग के साथ भी  सटा हुआ है जिसके कारण इस इलाके का सामरिक और वाणिज्यिक दोनों ही महत्व है। पाकिस्तान तो पहले से ही इस पर अपने नजरें गढ़ाए बैठा हुआ था लेकिन अब चीन की भी इसमें दिलचस्पी बढ़ गई है। भविष्य में कभी भारत-पाकिस्तान के युद्ध की स्थिति बनती है तो पाकिस्तान को सैनिकों और साजो-सामान को तुरंत लाने-ले जाने में इस मार्ग से सुविधा होगी क्योंकि उसके पास हर मौसम में काम करने वाली चौड़ी सड़क होगी। साथ ही पाकिस्तान जरूरत पड़ने पर चीन की मदद भी ले सकता है।

 

चीन को क्या फायदा
गिलगित-बाल्टिस्तान अगर अलग राज्य बन जाते है तो इससे चीन को भी फायदा होगा। दरअसल कराकोरम राजमार्ग से निकल कर गिलगित-बाल्टिस्तान होते हुए ही बलोचिस्तान में दाखिल होता है। गिलगित-बाल्टिस्तान के अलग राज्य बन जाने से चीनी कंपनियां सीधे स्थानीय प्रशासन के संपर्क में आ सकेंगी और इससे वहां काम करने में सुविधा होगी। चीन की इसमें दिलचस्पी का और कारण है कि सामरिक पहलू यह है कि यह अक्साइ चिन से बहुत दूर नहीं है। दरअसल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त 2019 को संसद में अक्साइ चिन को छीन लेने का बयान दिया था जिससे चीन आशंका में है। अगर चीन को गिलगित-बाल्टिस्तान पर का रास्ता मिल जाता है तो पीपल्स लिबरेशन आर्मी की मौजूदगी से उसे अक्साइ चिन में भारत को दूसरी तरफ से घेरने में आसानी होगी। 

 गिलगित-बाल्टिस्तान का इतिहास
1947 में बंटवारे के समय गिलगित-बाल्टिस्तान जम्मू-कश्मीर की तरह न भारत का हिस्सा था और न ही पाकिस्तान का, वह कश्मीर का हिस्सा था। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 1935 में हुई एक संधि के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान का इलाका अंग्रेजों को 60 साल के लीज पर दे दिया था लेकिन 2 नवंबर, 1947 को गिलिगित स्काउट के स्थानीय कमांडर कर्नल मिर्ज़ा हसन खान ने हरि सिंह के खिलाफ विद्रोह का एलान कर दिया। विद्रोह से दो दिन पहले ही 31 अक्तूबर को कश्मीर के महाराजा ने रियासत के भारत में विलय को मंजूरी दी थी। तब पाकिस्तानी सेना कबाइली छापामारों के वेश में इस क्षेत्र में दाखिल हुई और उसने सैन्य बलों तथा कबाइलियों के बल पर इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। भारत-पाकिस्तान युद्ध और युद्ध विराम के बाद अप्रैल 1949 तक यह इलाक़ा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा माना जाता रहा।

 

28 अप्रैल, 1949 को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ, जिसके तहत गिलगित के मामलों को सीधे पाकिस्तान की केंद्र सरकार के  तहत कर दिया गया। इस करार को कराची समझौते के नाम से जाना जाता है और क्षेत्र का कोई भी नेता इस करार में शामिल नहीं था। इसके बाद 1963 में पाकिस्तान सरकार ने इसका एक हिस्सा चीन को दे दिया, जहां चीन ने कराकोरम राजमार्ग बना लिया। पाकिस्तान सरकार ने 29 अगस्त 2009 को गिलगित-बाल्टिस्तान अधिकारिता और स्व-प्रशासन आदेश 2009 पारित किया। इसके तहत कहा गया था कि गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों को लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई विधानसभा और स्वशासन का अधिकार दिया जाएगा लेकिन गिलगित-बाल्टिस्तान संयुक्त-आंदोलन ने इस आदेश को खारिज कर दिया और मांग की कि गिलगित-बाल्टिस्तान को पूर्ण स्वायत्तता मिले, एक स्वतंत्र और स्वायत्त विधानसभा हो। तब से गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग अपनी अलग सरकार की मांग कर रहे हैं और इसके लिए संघर्ष भी कर रहे हैं लेकिन पाकिस्तान इस विद्रोह को दबाता रहा।

Seema Sharma

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