थानेदार बनने की राह पर है चीन

Wednesday, Jun 29, 2016 - 01:32 PM (IST)

वैसे तो अमरीका को दुनिया का थानेदार कहा जाता है, ठीक उसी की तरह कुछ वर्षों से चीन भी उसके नक्शे कदम पर चलने लगा है। समय-समय पर जब उसका मन करता है वह किसी भी देश पर अपनी धौंस जमाने लगता है। वही तय करने लगा है कि किस देश को किससे कैसे संबंध बनाने हैं। किससे मुलाकात करनी है। किससे नहीं, आदि आदि। यूं तो चीन अपने देश में कई चीजों पर प्रतिबंध लगा चुका है, लेकिन इस बार उसने अमरीका की सबसे पॉपुलर सिंगर लेडी गागा को भी चीन में आने से रोक दिया है। उन्हें चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ने उस लिस्ट में शामिल कर दिया है जहां चीन में विदेशी ताकतों को बैन किया गया है। 

गौरतलब है कि लेडी गागा ने इंडियानापोलिस में दलाई लामा से मुलाकात की थी। अपने फेसबुक अकाउंट पर 19 मिनट की मुलाकात का वीडियो डाला गया था। इसमें वे दोनों ध्यान, मानसिक स्वास्थ्य और मानवता से जुड़ चुकी बुराइयां दूर करने के बारे में बात कर रहे थे। इस मुलाकात से जल भुन कर बीजिंग ने दलाई लामा को ‘भिक्षु के वेश में एक भेड़िया’ करार दिया। बीजिंग का दावा है कि दलाई लामा हिमालयी क्षेत्र को चीन से अलग करने की साजिश रच रहे हैं, ताकि वहां धार्मिक शासन की स्थापना की जा सके। 

कुछ दिन पूर्व बराक ओबामा और दलाई लामा की मुलाकात पर भी चीन ने विरोधी रुख अपना लिया था। जबकि उसकी परवाह न करते हुए दोनों में मुलाकात की। यही नहीं, विवादास्पद साउथ चाइना सी पर अमरीका के साथ बढ़ते तनाव के बीच चीन ने पहली बार अपनी नौसैन्य पहुंच में इजाफा करते हुए आक्रामक सैन्य रणनीति पेश की जो भारत के लिए विशेष रूप से हिंद महासागर में एक चुनौती पैदा कर सकती है। बताया जाता है कि चीन ने इसके साथ ही भारतीय नौसेना पर फोकस करते हुए अपनी नई रणनीति भी बनाई है।

आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए चीन ने साउथ चाइना सी (एससीएस) में विवादित द्वीपों पर दो लाइटहाउसों के निर्माण की योजना का खाका पेश किया, जो पड़ोसी देशों वियतनाम, फिलीपींस, मलयेशिया और ब्रुनेई के साथ तनाव के बीच आग में घी डालने का काम कर सकता है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि पूरे एससीएस पर स्वायत्तता के चीन के दावे का इन देशों द्वारा विरोध किए जाने को अमरीका का समर्थन हासिल है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन हमेशा से अलग-अलग देशों के साथ उनकी ''ताकत’ के आधार पर रिश्ते कायम करता है। इसमें सैन्य और आर्थिक शक्ति के अलावा राष्ट्रीय इच्छाशक्ति और सामाजिक सामंजस्य शामिल हैं। दक्षिण कोरिया, जापान, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई और भारत की सीमा के अंदर पांव पसारने की जुर्रत दिखाते समय वह इसी बैरोमीटर का इस्तेमाल कर रहा है। सेंकाकू द्वीप पर उफन रहे विवाद पर जापान चीन का सामना करने में सक्षम है और तैयार भी। वियतनाम चीन के झांसे में नहीं आ रहा तो फिलीपींस ने घुटने टेक दिए हैं। मलेशिया और ब्रुनेई ने भी खास विरोध न जताते हुए स्थिति से मानो समझौते का रुख अपना लिया है।

भारत पर अपना दबाव कायम रखने के लिए चीन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक सहायता दे रहा है, दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय मदद से चल रहे प्रोजेक्ट का पुरजोर विरोध कर रहा है। अमरीका और जापान के साथ भारत के रिश्ते पर चीन अपनी चिंता के खूब ढोल पीट चुका है। उसकी बेवजह चिंता पर किसी को कोई असर नहीं हुआ हे।

चीन ने भारतीय इलाके में घुसपैठ का नया तरीका निकाला है। वह इसके साथ अपनी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को ही मानने से इनकार कर दिया है। उसने हाल के वर्षोंं में यह भी दावा किया कि पूरा अरुणाचल प्रदेश ''दक्षिण तिब्बत’ का हिस्सा है। 2005 में ''गाइडिंग प्रिंसिपल्स’ के मुताबिक तत्कालीन प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ और डॉ. मनमोहन सिंह ने जो निष्कर्ष निकाला था उसमें यह सहमति बनी थी कि सीमा संबंधी मतभेद दूर करने में भारत-चीन सीमा ''अच्छी तरह से परिभाषित और आसानी से पहचानी जाने वाली प्राकृतिक भौगोलिक सरहदें हैं’ और कहा गया था कि सीमावर्ती क्षेत्रों में बसी आबादी के हितों की रक्षा की जाए।

रुस अमरीका और चीन के रूप में त्रिध्रुवीय विश्व की परिकल्पना उभर कर सामने आई है। ऐसा नहीं है कि तीनों ही देश इस स्थानों पर यकायक पहुंच गए इसमें उनके इतिहास का अच्छा खासा योगदान रहा है। इस तेजी से बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में पिछले दो–तीन वर्षोंं में एक नया परिवर्तन तब हुआ जब अमरीका और चीन के बेसुरे राग में रुस में एक नया आलाप छेड़ा।  चीन शान्तिपूर्वक सह- अस्त्वित तथा युआन कूटनीतिक और देंग युग से उबरकर आक्रमक कूटनीति और राजनय कर रहा है वही अपनी शक्ति और सामर्थ्य से विश्व राजनीति के फलक पर बडी ताकत के रुप में उभरा है। 

 
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