फनी में उजड़ गए कलाकारों की जिंदगी के रंग और भविष्य के सपने

Monday, May 13, 2019 - 11:32 AM (IST)

रघुराजपुर: फनी तूफान में उनकी तस्वीरों की तरह जिंदगी के रंग भी उजड़ गए, ओडिशा की कलाओं को सहेजने का सपना बुनने वाली आंखें दो जून की रोटी के जुगाड़ की चिंता में पथराई हुई हैं और हुनर को कलाकृतियों में उकेरने वाले हाथ अब उजड़ी छत पर पन्नी लगाने तथा मलबा हटाने में जुटे हैं। यह कहानी है ओडिशा के विरासत हस्तशिल्प गांव रघुराजपुर की, जिसे मिनी ओडिशा भी कहा जाता है। तीन मई को आए चक्रवाती तूफान फोनी ने पुरी के पास स्थित इस गांव को तबाह कर डाला जिसमें रहने वाले 140 परिवारों के 700 सदस्यों में लगभग सभी कलाकार हैं। इनमें पद्मश्री, राष्ट्रीय पुरस्कार और यूनेस्को से पुरस्कृत कलाकारों के परिवार शामिल हैं । दस साल पहले राष्ट्रीय पुरस्कार और कलामणि सम्मान पाने वाले पटचित्र कलाकार गंगाधर महाराणा को भविष्य की चिंता खाए जा रही है। गुरू शिष्य परंपरा पर आधारित उनका संस्थान ठप हो गया, चित्रकारी के लिये सामान नहीं बचा और सामान देने वाले पेड़ पौधे भी बर्बाद हो गए । 

फनी से पहले आंगन में गूंजता था कलाकारों के शोर
उन्होंने कहा, फनी से पहले तक मेरा आंगन युवा कलाकारों के शोर से गूंजता था लेकिन अब यहां मातमी सन्नाटा पसरा है। चित्रकारी के रंग खराब हो गए और ताड़ के पत्ते भी नहीं बचे। प्राकृतिक रंग, गोंद, पत्थर, समुद्रशंख अब कहां से लाएंगे। इतनी तबाही तो सुपर साइक्लोन में भी नहीं देखी थी। महान ओडिसी नर्तक केलुचरण महापात्रा के जन्मस्थान इस गांव में रहने वाले कलाकार पटचित्र, टसर चित्रकारी, ताड़पत्रों पर चित्रकारी, पत्थर और काष्ठकला, गोबर और पेपरमेशी के खिलौने बनाते हैं। इसके साथ ही गोटिपू नृत्य के जनक पद्मश्री मागुनी दास का परिवार रिहायशी गुरूकुल चलाता है। फोनी से हुई तबाही का मंजर गांव में घुसते ही दिख जाता है जहां सीना तान कर खड़े नारियल के पेड़ धराशायी हैं, शिल्प संग्रहालय उजड़ चुका है और हर घर के बाहर बने भित्तिचित्र बदरंग हो गए हैं। 

दो दिन से मलबा हटा रहे हैं कलाकार
युवा पटचित्रकार आलोक रंजन साहू ने बताया, दिन रात कला की सेवा में जुटे इन हाथों से हम दो दिन से मलबा हटा रहे हैं। बिजली नहीं है, बाहर से संपर्क नहीं है और समुद्र का पानी तालाब में मिल जाने से पीने का पानी नहीं बचा। एक ट्यूबवेल है जिस पर 700 लोग निर्भर हैं और इसमें भी बार बार पानी चला जाता है। वहीं सुशांत महाराणा ने कहा कि हर घर में कलाकृतियां पानी लगने से खराब हो गई हैं जो महीनों की मेहनत से तैयार की गई थीं। उन्होंने कहा, किसी का 50,000 रुपए का नुकसान हुआ तो किसी का लाखों रुपये का। सारे चित्र खराब हो गए लेकिन कोई उन्हें फेंकने को तैयार नहीं है। आखिर क्यों फेंके, इनके पीछे महीनों की मेहनत थी। यूनेस्को से स्वर्ण पदक पा चुके कलाकार अक्षय बारीकी ने कहा कि कलाकारों के इस सपने को अब नये सिरे से बसाने में कई साल लग जायेंगे क्योंकि फिलहाल तो चिंता रोटी, कपड़ा और मकान की है। 

चारों ओर है तबाही का मंजर 
उन्होंने कहा, पुरी जाने वाले पर्यटकों से यह गांव हमेशा आबाद रहता था और उनकी आखों में प्रशंसा के भाव हमारी सबसे बड़ी पूंजी थे। अब चारों ओर तबाही का मंजर है जिसे देखने कौन आयेगा। राहत भी यहां तक अभी पहुंच नहीं पा रही । हम अपने बच्चों को ओडिशा की कलाओं की सेवा में समर्पित करना चाहते थे लेकिन अभी तो सबसे बड़ी चिंता उनके लिये दो जून की रोटी जुटाने की है। गोटिपू नृत्य के जनक पद्मश्री मागुनी दास के बेटे मीटू दास ने कहा, हमारे रिहायशी गुरूकुल में छह से 17 बरस तक के 25 बच्चे नृत्य सीखते हैं लेकिन तीन मई से सब कुछ बंद है । तूफान ने सब कुछ छीन लिया, इन बच्चों के सपने भी। पता नहीं, अब यह शिल्पगांव बचेगा भी या नहीं। 

Anil dev

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