सुप्रीम कोर्ट के एक-एक वकील की फीस 10 से 15 लाख रुपए...आदमी कहां से लाएगा?

Saturday, Jul 16, 2022 - 10:07 PM (IST)

नेशनल डेस्कः केन्द्रीय विधि मंत्री किरण रिजीजू ने अदालतों में स्थानीय व क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की पुरजोर वकालत करते हुए शनिवार को कहा कि ‘अदालत की भाषा अगर आम भाषा हो जाए हम कई समस्याओं को हल कर सकते हैं।' मंत्री ने कहा कि मातृभाषा को अंग्रेजी से कमतर नहीं माना जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच बेहतर तालमेल पर जोर दिया और कहा कि न्याय के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले होने चाहिए।

रिजीजू यहां विधिक सेवा प्राधिकरणों के दो दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय में तो बहस से लेकर फैसले सब अंग्रेजी में होते हैं। लेकिन उच्च न्यायालयों को लेकर हमारी सोच है कि उनमें आगे जाकर स्थानीय व क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।'' उन्होंने कहा, ‘‘कई वकील हैं जो कानून जानते हैं लेकिन अंग्रेजी में उसे सही ढंग से पेश नहीं कर पाते। ...तो अदालत में अगर आम भाषा का उपयोग होने लगे तो इससे कई समस्याएं हल हो सकती हैं। अगर कोई वकील अंग्रेजी बोलता है तो उसकी फीस ज्यादा होती है, ऐसा क्यों होना चाहिए? अगर मुझे अंग्रेजी नहीं बोलनी आती और मुझे मातृभाषा बोलना सहज लगती है तो मुझे अपनी मातृभाषा में बोलने की आजादी होनी चाहिए।''

रिरिजू ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल इस पक्ष में नहीं हूं कि जो अंग्रेजी ज्यादा बोलता है उसे ज्यादा इज्जत मिले, उसको ज्यादा फीस मिले, उसे ज्यादा केस मिले ... मैं इसके खिलाफ हूं। अपनी मातृभाषा को किसी भी रूप में अंग्रेजी से कमतर नहीं मानना चाहिए।'' मंत्री ने अपना लगभग पूरा संबोधन हिंदी में दिया। उन्होंने देश की अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए इसे चुनौती बताया। उन्होंने कहा, ‘‘आजादी के अमृत महोत्सव काल में देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगभग पांच करोड़ पहुंचने वाली है। न्यायपालिका व सरकार के बीच तालमेल होनी चाहिए और आवश्यकता अनुसार विधायिका को अपनी भूमिका निभानी चाहिए ताकि इस संख्या को कम करने के लिए हर संभव कदम उठाया जा सके।''

मंत्री ने कुछ वकीलों की भारी भरकम फीस को लेकर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘जो लोग अमीर होते हैं वे अच्छा वकील कर लेते हैं। दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में कई वकील ऐसे हैं जिनकी फीस आम आदमी नहीं दे सकता है। एक-एक केस में हाजिर होने के अगर 10 या 15 लाख रुपये लेंगे तो आम आदमी कहां से लाएगा?'' उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी अदालत कुछ विशिष्ट लोगों के लिए नहीं होनी चाहिए। आम आदमी को अदालत से दूर रखने वाला हर कारण हमारे लिए बहुत चिंता का विषय है। मैं हमेशा मानता हूं कि न्याय का द्वार सबके लिए हमेशा व बराबर खुला रहना चाहिए।''

रिजिजू ने कहा कि सरकार ने अब तक 1486 अप्रासंगिक कानूनों को रद्द किया है, साथ ही ऐसे और 1824 कानून चिन्हित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार संसद के आगामी सत्र में ऐसे लगभग 71 ऐसे और कानूनों को और हटाने को प्रतिबद्ध है।

Yaspal

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