RBI vs मोदी सरकार: इतिहास में पहली बार सेक्शन 7 का होगा इस्तेमाल

Wednesday, Oct 31, 2018 - 02:16 PM (IST)

नेशनल डेस्क:  भारत के केंद्रीय बैंक रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार के बीच की तकरार अब खुलकर सामने आ रही है। जहां वित्त मंत्री अरुण जेतली ने देश में बैंक एनपीए का ठीकरा आरबीआई से सिर फोड़ा है, तो वहीं खबर है कि सरकार ने आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 को लागू कर दिया है। 


खबरों के मुताबिक, सरकार ने हाल के हफ्तों में रिजर्व बैंक को पत्र भेजे हैं। ये पत्र सेक्शन 7 के अधिकार के तहत भेजे गए हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 83 साल के इतिहास में कभी किसी सरकार ने इसका इस्तेमाल नहीं किया। अगर मोदी सरकार ने किया तो ऐसा करने वाली वह पहली सरकार होगी। वहीं, सेक्शन 7 के इस्तेमाल के बाद केंद्रीय बैंक के पास अपनी मर्जी से फैसले करने की गुंजाइश बहुत कम रह जाएगी। 


क्या है सेक्शन 7 
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 की धारा 7 के तहत सरकार के पास एक खास पावर होती है। सरकार के पास यह अधिकार होता है कि वह जनता के हित को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय बैंक को दिशा-निर्देश जारी कर सकती है। हालांकि, जनता के हित को ध्यान में रखने हुए इसमें बैंक के गवर्नर का परामर्श जरूरी होता है। इस सेक्शन के लागू होने के बाद सरकार लगभग हर मुद्दे पर रिजर्व बैंक को निर्देश दे सकती है और आरबीआई वो मानने के लिए मजबूर होगा। इस तरह का आदेश बैंक के सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्टोरेट को अधिक शक्तिशाली बना देगा और बैंकिंग से जुड़े सभी कामकाजों पर इसी का नियंत्रण होगा। इस आदेश से पहले बोर्ड ऑफ डायरेक्टोरेट से अधिक अधिकार गवर्नर के पास माने जाते थे।


क्या ​है मामला
मीडिया रिपोर्टों की मानें तो सरकार और आरबीआई के बीच खींचतान पिछले वित्तीय वर्ष की शुरुआत यानी मार्च-अप्रैल 2017 से ही चल रही है। पहली तकरार ब्याज दरों को लेकर हुई और उसके बाद जब इस साल जब नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के भाग जाने की खबर सामने आई तो सरकार ने ठीकरा आरबीआई के सिर फोड़ा और उसके सख्त एनपीए नियमों और निगरानी तंत्र पर सवाल उठा दिए। सरकार चाहती है कि आरबीआई कुछ बैंकों को क़र्ज देने के मामले में उदारता दिखाए। आरबीआई के पास भुगतान सिस्टम के मामले में जो नियामक तंत्र है, उसे सरकार शायद वापस लेना चाहती है।

vasudha

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