नेताजी के बारे में पहली बार हुआ ये बड़ा खुलासा

Monday, May 30, 2016 - 04:02 PM (IST)

हैदराबाद. नेताजी सुभाषचंद्र बोस को लेकर एक और बड़ा खुलासा हुआ है। सरकार की ओर से 27 मई को जारी की गई फाइलों में एक से ऐसे संकेत मिलते हैं कि 1963 तक नेताजी शायद नॉर्थ बंगाल के एक आश्रम में के.के. भंडारी के नाम से रहते थे। यह भी बात सामने आ रही है कि इस बारे में सरकार के टॉप लेवल पर बातचीत भी होती रही थी।

जानकारी के मुताबिक, शालमुरी आश्रम के सेक्रेटरी रमानी रंजन दास ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक खत लिखा था। इसके बाद नेहरू के प्रिंसिपल प्राइवेट सेक्रेटरी के. राम इस बारे में इंटेलीजेंस ब्यूरो के तब के सेक्रेटरी बीएन. मलिक को एक लेटर लिखते हैं। 23 मई 1963 को लिखे इस खत का जवाब मलिक 12 जून 1963 को देते हैं। इसी साल 7 सितंबर को पीएमओ एक टॉप सीक्रेट नोट में भंडारी का जिक्र होता है।

इसके बाद इसी साल 11 नवंबर को मलिक एक और लेटर पीएमओ को लिखते हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो 16 नवंबर को फिर से जवाब के तौर पर एक नोट पीएमओ को भेजता है। यह सामने नहीं आ सका है कि आखिर किन वजहों से नेताजी से जुड़ी जांच के मामले में बार-बार भंडारी का नाम लिया जाता रहा।

मुखर्जी आयोग ने नहीं माना था इस बात को
 नेताजी की मौत के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए बनाए गए मुखर्जी कमीशन ने इस बात को नहीं माना था कि भंडारी ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। दरअसल, मुखर्जी आयोग के दबाव के बाद पीएमओ ने साल 2000 में भंडारी के मुद्दे से जुड़ी फाइलें मुखर्जी कमीशन को सौंपीं। 

इसके लिए फाइलों की कैटेगरी को टॉप सीक्रेट से सीक्रेट किया गया। एक फाइल के मुताबिक, अंडर सेक्रेटरी (एनजीओ) अपने नोट में लिखते हैं कि इस बारे में डायरेक्टर (ए) और अंडर सेक्रेटरी (पॉलिटिकल) की मौजूदगी में चर्चा हुई। हम आईबी से यह कह सकते हैं कि पीएम के सेक्रेटरी राम द्वारा आईबी डाइरेक्टर को लिखे लेटर को डाउनग्रेड कर दें।

दरअसल, इस कवायद का मकसद मुखर्जी आयोग को भंडारी से जुडी फाइलें मुहैया कराने से ज्यादा कुछ नहीं था। उस दौर में जब शालमुरी आश्रम और वहां कथित तौर पर नेताजी की मौजूदगी का मुद्दा सामने आया तो देश में काफी हलचल मच गई थी। हालांकि, मुखर्जी कमीशन ने साफ किया कि भंडारी नेताजी नहीं थे। इसके बावजूद कई लोगों का ये मानना था कि वो नेताजी ही थे।

 

 

Advertising