दिल्ली हिंसा पर सख्त टिप्पणी करने वाले जज मुलरीधर बोले- पहले ही मिल गई थी ट्रांसफर की सूचना

Thursday, Mar 05, 2020 - 09:30 PM (IST)

नई दिल्लीः जस्टिस एस. मुरलीधर को गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने फेयरवेल पार्टी देकर विदा किया। इस दौरान एस मुरलीधर ने दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीशों और वकीलों को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट अपने तबादले से संबंधित विवाद पर स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे द्वारा उन्हें दी गई सूचना पर उन्होंने कहा कि प्रस्ताव पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा 26 फरवरी की रात को न्यायमूर्ति मुरलीधर के तबादले की अधिसूचना के बाद विवाद पैदा हो गया था। उसी दिन उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने कथित तौर पर नफरत भरे भाषण देने के लिए भाजपा के तीन नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने के लिए दिल्ली पुलिस की खिंचाई की थी।

जस्टिस मुरलीधर (58) को बृहस्पतिवार को भव्य विदाई दी गई। इस दौरान बड़ी संख्या में न्यायाधीश और वकीलों सहित अन्य लोग मौजूद थे। उन्होंने कहा कि वह अपने तबादले पर भ्रम को स्पष्ट करना चाहते हैं और 26 फरवरी को सीजेआई से प्राप्त सूचना के बाद के घटनाक्रमों के बारे में उन्होंने जानकारी दी। सीजेआई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने 12 फरवरी की बैठक में जस्टिस मुरलीधर के पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में तबादले की अनुशंसा की थी। जस्टिस मुरलीधर दिल्ली उच्च न्यायालय में वरीयता के आधार पर तीसरे स्थान पर हैं।

पहले ही मिल गई थी ट्रांसफर की सूचना
स्थानांतरण प्रक्रिया के बारे में उन्होंने कहा कि पांच सदस्यीय कॉलेजियम केंद्र सरकार को अनुशंसा भेजता है कि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को दूसरे उच्च न्यायालय में भेजा जाए। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे मामले में कॉलेजियम के निर्णय से सीजेआई ने मुझे 17 फरवरी को एक पत्र के माध्यम से अवगत कराया। मैंने पत्र प्राप्ति की सूचना दी, फिर मुझसे पूछा गया कि आप क्या चाहते हैं। मैंने कहा कि अगर मेरा तबादला दिल्ली हाईकोर्ट से होता है तो मुझे पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट जाने में कोई दिक्कत नहीं है।'' उन्होंने कहा, ‘‘मैंने सीजेआई को स्पष्ट किया कि मुझे प्रस्ताव पर आपत्ति नहीं है। मेरे तबादले का स्पष्टीकरण प्रेस में पहुंचा... 20 फरवरी को ‘सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सूत्रों के हवाले से' जो खबर चली उसकी पुष्टि मुझे कुछ दिनों पहले कर दी गई थी।''

ट्रांसफर पर उठे थे सवाल
सीजेआई का 14 फरवरी का पत्र जस्टिस मुरलीधर को 17 फरवरी को मिला। उन्होंने कहा कि 26 फरवरी उनके जीवन का दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में संभवत: सबसे लंबा कार्य दिवस था जब उन्होंने 14 घंटे पीठ में बिताए थे। जस्टिस मुरलीधर ने यह कहते हुए भाषण समाप्त किया कि 26 फरवरी की मध्य रात्रि को जारी अधिसूचना में दो चीजें हुईं। उन्होंने कहा, ‘‘पहला, मेरा तबादला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में हो गया। दूसरा इसमें मुझे उस पद पर नियुक्ति मिली जहां से मेरा कभी तबादला नहीं होगा या मुझे नहीं हटाया जाएगा और वहां रहकर मुझे गर्व होगा। देश के सबसे बेहतर हाईकोर्ट का ‘पूर्व जस्टिस।' दिल्ली उच्च न्यायालय।''

विदाई समारोह में जस्टिस मुरलीधर की मां, पत्नी उषा रामनाथन, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए पी शाह, वरिष्ठ वकील शांति भूषण और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी उपेन्द्र बख्शी मौजूद रहे। जस्टिस मुरलीधर को विदाई देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य जस्टिस डी एन पटेल ने कहा कि वह दुखी हैं और उनकी गैर मौजूदगी हमेशा महसूस होगी। दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने न्यायमूर्ति मुरलीधर को ‘‘काफी विद्वान, साहसी, नैतिकता वाला एवं ईमानदार जस्टिस'' बताया।

जस्टिस मुरलीधर ने 2018 में निचली अदालत द्वारा ट्रांजिट रिमांड को निरस्त कर कार्यकर्ता गौतम नवलखा की कोरेगांव भीमा हिंसा मामले में नजरबंदी से रिहा करने के आदेश दिए थे, जिसके बाद विवाद पैदा हो गया था। उनकी अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अक्टूबर 2018 में हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तरप्रदेश के 16 पूर्व पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था। वह उस पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे जिसने उसी वर्ष कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में उन्हें जेल भेजा। उन्होंने सितम्बर 1984 में चेन्नई में कानून की प्रैक्टिस शुरू की थी और वह उच्चतम न्यायालय तथा दिल्ली उच्च न्यायालय 1987 में आए।

 

Yaspal

Advertising