भारत में पैमाने की धार-चीन दुश्मन या मददगार ?

Sunday, Aug 06, 2017 - 01:24 PM (IST)

बीजिंग/नई दिल्ली: भारत-चीन के बीच सीमा विवाद रुकने का नाम नहीं ले रहा। कभी दोनों के बीच युद्ध के आसार की खबरें आ रहीं तो कभी दोनों  का रुख नरम होने की बात कहीजा रही लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। सच्चाई ये है कि दोनों देश कहीं न कहीं एक दूसरे पर निभर्र हैं और आपसी तनाव का असर दोनों देशों की आर्थिकता और राजनीतिक संबंधों पर पड़ रहा है। जनता को मीडिया परोस रहा लोग उसी को सच मान रहे लेकिन तथ्य तो कुछ और ही कहते है। 

मीडिया खबरों के अनुसार शूरू से  ही चीन को भारत का दुश्मन माना जाता है। चीनियों ने तिब्बत हड़प लिया लेकिन भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कुछ नहीं किया। चीनियों ने 1962 में हिंदी-चीनी भाई-भाई कहते कहते भारत की पीठ पर छुरा भोंका और अब  डोकलाम में आँखें दिखा रहा है इसलिए चीन को सज़ा देने के लिए वहाँ बनी चीज़ों का बहिष्कार किया जाना चाहिए। अगर चीन कोई गलत कदम उठाता है तो ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाना चाहिए नकि युद्ध से। सच ये है कि कोई भी समस्या युद्ध से हल नहीं होती। चीन और भारत के बीच सदियों पुराने संबंध हैं। चीन भारत में भारी निवेश कर रहा है। भारत की आर्थिक तरक़्क़ी में चीन का काफ़ी योगदान है।

चीन को लेकर भारत में ये दो तरह के 'तथ्य' एक दूसरे के समानांतर चल रहे हैं या चलाए जा रहे हैं। लेकिन नागरिक किस पर यक़ीन करें? देश के सबसे बड़े "सांस्कृतिक संगठन" यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े  प्रतिष्ठित स्वयंसेवकों और आनुषांगिक संगठनों का कहना है कि त्योहारों के मौसम में चीन से आयात किए गए सामान का इस्तेमाल बंद करना चाहिए। संघ के प्यारे और भारत के नव-टायकून बाबा रामदेव ने भी फिर कहा है कि चीन हमारे दुश्मन पाकिस्तान की मदद कर रहा है इसलिए वहाँ बने मोबाइल, घड़ी, कारें या खिलौनों का बहिष्कार करना चाहिए।

पर उसी संघ परिवार की पार्टीभाजपा में वरिष्ठ नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज कहती हैं कि भारत की आर्थिक तरक़्क़ी में चीन का बड़ा योगदान है।यानी सच कौन बोल रहा है स्वदेशी मंच या सुषमा स्वराज? रक्षा मंत्री अरुण जेटली चीन की धमकी को हवा में उड़ाते हुए कहते हैं कि आज के भारत और 1962 के भारत में बहुत अंतर है. यानी वो धमकी का जवाब धमकी में देते हैं।  पर संसद में जब बहस होती है तो सुषमा स्वराज भारत और चीन के बीच गहरे आर्थिक संबंधों की बात करती हैं।

देश की विदेश मंत्री का सबसे बड़ी पंचायत में खड़ी होकर ऐलान करना ये समझने के लिए काफ़ी है कि भारत किसी भी सूरत में चीन से युद्ध नहीं चाहता। भारत के पीएम नरेंद्र मोदी 'मेक इन इंडिया' का ऐलान करते हैं और तमाम विदेशी कंपनियों को भारत आकर उद्योगों में पैसा लगाने का न्यौता देते हैं जिनमें चीन भी शामिल है। दरअसल दोनों देशों के बीच में व्यापार संतुलन ऐसा है कि आर्थिक संबंध ख़राब होने का नुक़सान भारत को ही होगा। 
भारत-चीन के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संधि को तोड़ना या बदलना उतना आसान नहीं है जितना बयान देना। 
 

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