बैलट पेपर से 2019 के चुनाव की मांग, आत्म मंथन से क्यों भाग रहा है विपक्ष?

Saturday, Aug 04, 2018 - 01:37 PM (IST)

नेशनल डेस्क (मनीष शर्मा): अगर आज के वक़्त कोई आपसे साधारण डाक से अपना संदेश भेजने को कहे, क्यों ? क्योंकि उसे ईमेल या व्हाट्सएप्प पर भरोसा नहीं। कोई भी हैक कर संदेश पढ़ सकता है। आधुनिक वाहनों की बजाय बैलगाड़ी से यात्रा करने को कहे क्योंकि उसमे दुर्घटना का खतरा नहीं होगा। एक पल के लिए आपको अटपटा ज़रूर लगेगा। कुछ ऐसा ही समय को पीछे की और मोड़ने का काम एक, दो नहीं बलिक 17 विपक्षी दल करने जा रहे हैं। ये 17 दल चुनाव आयोग से मांग करने जा रहे हैं कि 2019 का लोकसभा चुनाव ईवीएम की बजाय बैलट पेपर से कराया जाए। जिनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, द्रमुक, जेडीएस, टीडीपी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और सीपीआई-एम, आरजेडी, शिवसेना शामिल है। ईवीएम और वीवीपैट के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में सोमवार को ज्वाइंट मीटिंग होगी जिसमें संसद में ये मुद्दा उठाने की बात होगी और साथ ही साथ चुनाव आयोग में दोबारा से अपील की जाएगी। 



सबसे पहले भाजपा ने उठाए थे EVM पर सवाल
लेकिन इस साल मार्च में भाजपा के जनरल सेक्रेटरी राम माधव ने पत्रकारों को बताया था कि अगर आम सहमति बनती है भाजपा को भी बैलट पेपर से एतराज नहीं होगा। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बसपा को कोई भी सीट नहीं मिली तो उन्होंने भी अपनी हार का जिम्मेदार ईवीएम में गड़बड़ी को बताया था।  उसके बाद तो कांग्रेस, सपा और आम आदमी पार्टी ने भी ईवीएम में गड़बड़ी का आदेश जताया। 2017 में तो बाकायदा आप विधायक सौरभ भरद्वाज ने दिल्ली विधानसभा में डेमो करके दिखाया था कि किस तरह ईवीएम में छेड़छाड़ संभव है।



चुनाव आयोग ने किया था ओपन चैलेंज
ईवीएम पर चोतरफा हमले को देखते हुए मई 2017 में चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को ओपन चैलेंज किया की वो 3 जून को ईवीएम टेम्पर करके दिखाएं। आपको बता दें किसी भी राजनीतिक दल को इस चैलेंज को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं हुई। वहीं इस साल जून में मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत ने बैलट पेपर को वापिस लाने की सभी सम्भवनाओं को खारिज करते हुए कहा था ईवीएम को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।

आखिर क्यों बैलट पेपर से बेहतर है EVM

  • 1982 में ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल केरला विधानसभा के उप चुनाव में हुआ।
  • पहली बार ईवीएम  पूरे भारत में 2004  के लोकसभा चुनाव में हुआ।
  • ईवीएम से वोट डालने और गिनती में कम समय लगता है।
  • अनपढ़ लोगों को ईवीएम से वोट डालने में आसानी होती है।
  • ईवीएम मशीनों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना आसान होता है।
  • बूथ कैप्चरिंग यानि भरी मात्रा में बोगस वोटिंग की सम्भावना नहीं होती।
  • बैलट पेपर में इंक डालकर मतपेटी में पड़े सभी वोटों को इनवैलिड कराया जा सकता था जो ईवीएम में संभव नहीं।
  • ईवीएम बैटरी से चलता है। इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं होता। इसलिए इसे हैक नहीं किया जा सकता।
  • वीवीपैट व्यवस्था के तहत वोटर डालने के तुरंत बाद स्क्रीन पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न दिखाई देता है।
     

किन किन देशों में इस्तेमाल होता है EVM

 ब्राजील, नॉर्वे, वेनेजुएला, भारत, कनाडा, बेल्जियम, रोमानिया, ऑस्ट्रेलिया, इटली, आयरलैंड, यूरोपीय संघ और फ्रांस।



इस बार इस्तेमाल होगा थर्ड न्यू जनरेशन EVM
इस साल चुनाव आयोग ने नया थर्ड न्यू जनरेशन ईवीएम लांच किया है जिसे मार्क 3 नाम दिया गया है। आयोग के अनुसार इस ईवीएम में एक चिप लगी है जिसमें एक ही बार सॉफ्टवेयर कोड लिखा जा सकेगा। यहां तक की अगर कोई इससे छेड़छाड़ करने की कोशिश करता है तो यह मशीन खुद की बंद हो जाएगी। जो लोग दलील देते हैं की अमेरिका जैसे विकसित देशों में अभी भी बैलट पेपर से वोटिंग होती है तो उन्हें समझना चाहिए कि वहां की जनता भारतीयों के मुकाबले ज्यादा पढ़े लिखे हैं और चुनाव के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और अधिकारों को लेकर ज़्यादा जागरूक और सवेंदनशील हैं। राजनीतिक दलों को चाहिए वह समय के साथ चलें। अपनी हार के कारणों का मंथन करें। जिस कमियों के कारण बैलट पेपर को छोड़ा था उसे दोबारा अपनाना न पड़े। जनता से जुड़ेंगे, जनता की आवाज बनेगे तो ईवीएम जैसी बेजुबान वस्तु पर अपनी हार का ठीकरा फोडऩे की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में वोटर्स की संख्या लगभग 85 करोड़ हो जाएगी। इतनी बड़ी संख्या के लिए सिर्फ 9 महीने में बैलेट पेपर का विकल्प उपलब्ध करवाना क्या संभव हो पाएगा। क्या आने वाले 4 विधानसभा चुनाव में ईवीएम के नतीजों का ये विपक्षी दल विरोध नहीं करेंगे।

Anil dev

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