इलेक्शन डायरी: जब प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए ज्योति बसु
Saturday, Apr 27, 2019 - 08:53 AM (IST)
इलेक्शन डेस्क(नरेश कुमार): वामपंथी पार्टियां इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही हैं। संसद में इस पार्टी के सदस्यों की संख्या महज 9 तक सिमट गई है और इस लोकसभा चुनाव दौरान इन पार्टियों के इतने सदस्य जीत कर आना भी मुश्किल लग रहा है लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब इस पार्टी का नेता देश का प्रधानमंत्री बनने के किनारे था लेकिन पार्टी की एक चूक ने वह बेहतरीन मौका खो दिया और अब भविष्य में शायद ऐसा मौका कभी न आए जब लैफ्ट के किसी नेता को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिले। यह मौका पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु को मिल रहा था लेकिन पार्टी की एक चूक से वह प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।
ज्योति बसु की बायोग्राफी में लिखा गया है कि 9 से 15 मई (1996) के बीच यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनाने के सियासी हालात बने तो वी.पी. सिंह ने उन्हें फोन किया और बताया कि जनता दल के साथ-साथ अन्य सहयोगी दल भी ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने पर सहमत हैं। इस पर बसु ने जवाब दिया कि वह अपनी पार्टी की सहमति के बिना इस पर अपनी सहमति नहीं दे सकते।
लिहाजा यह मामला पार्टी के पोलित ब्यूरो के सामने रखा गया और लैफ्ट के अधिकतर नेताओं ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने का विरोध किया। अधिकतर नेताओं का यह तर्क था कि यदि लैफ्ट सरकार का हिस्सा बना तो गरीबों व वंचितों के लिए लैफ्ट द्वारा लड़ी जा रही लड़ाई कमजोर पड़ेगी। लिहाजा मीटिंग में 35 सदस्यों ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाए जाने के विरोध में वोट किया जबकि 20 सदस्य उनके साथ थे। पार्टी के विरोध के बाद ही यूनाइटेड फ्रंट ने एच.डी. देवेगौड़ा का नाम प्रस्तावित किया और देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने।