इलेक्शन डायरी: ऐसे प्रधानमंत्री बने वी.पी. सिंह

Thursday, Mar 21, 2019 - 05:23 AM (IST)

नई दिल्लीः 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को राजीव गांधी की अगुवाई में प्रचंड बहुमत मिला लेकिन यह बहुमत अगले चुनाव में टिक नहीं पाया क्योंकि सरकार बोफोर्स घोटाले के अलावा पंजाब में आतंकवाद, गृह युद्ध और लिट्टे के आतंकवाद की समस्या से ऐसी घिरी कि 1989 के चुनाव में कांग्रेस 197 सीटों पर सिमट गई जबकि 1984-85 के चुनाव में उसे 413 सीटें हासिल हुई थीं।

आजादी के बाद यह पहला मौका था, जब कांग्रेस 200 सीटों से नीचे लुढ़की थी। सरकार के खिलाफ बने माहौल को वी.पी. सिंह की अगुवाई वाले जनता दल ने भुनाया और 1989 के पहले चुनाव में जनता दल 143 सीटों पर काबिज हो गया। उस दौर में भाजपा को भी जबरदस्त सफलता मिली और पहली बार भाजपा 85 सीटों पर चुनाव जीती जबकि 1984-85 के चुनाव में उसे महज 2 सीटें हासिल हुई थीं।

भाजपा ने जनता दल को बाहर से समर्थन दिया और केंद्र में गैर-कांग्रेस सरकार अस्तित्व में आई। इस सरकार के मुखिया वी.पी. सिंह के प्रधानमंत्री बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। संसद के केंद्रीय हाल में 1 दिसम्बर को 1989 को जब सियासी दलों की मीटिंग हुई तो वी.पी. सिंह ने खुद प्रधानमंत्री पद के लिए चौधरी देवी लाल के नाम का प्रस्ताव रखा। हालांकि उन्हें इस बात की जानकारी थी कि गैर-कांग्रेसी दलों द्वारा उनका नाम भी बतौर प्रधानमंत्री आगे बढ़ाया जा रहा है लेकिन इसके बावजूद उन्होंने चौधरी देवी लाल के नाम का प्रस्ताव रखा।

देवी लाल ने उसी समय खुद खड़े होकर प्रधानमंत्री बनने से इंकार किया और कहा कि वह सरकार के बुजुर्ग की भूमिका में रहेंगे और वी.पी. सिंह को प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए। इस बीच वी.पी. सिंह के नाम पर बनी सहमति जनता दल में ही वी.पी. सिंह के विरोधी रहे चंद्रशेखर के लिए भी एक झटके की तरह थी और उन्होंने वी.पी. सिंह की सरकार में बतौर मंत्री कार्य करने से इंकार कर दिया था। वी.पी. सिंह 2 दिसम्बर 1989 से 10 दिसम्बर, 1990 तक देश के प्रधानमंत्री रहे और इसके बावजूद उनकी सरकार गिर गई थी।  

Pardeep

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