इलेक्शन डायरी: गोदरेज और भारत का पहला चुनाव

Thursday, Mar 14, 2019 - 07:02 PM (IST)

नेशनल डेस्कः (मनीष शर्मा): भारत में विपक्षी पार्टियां कुछ सालों से मांग कर रही हैं चुनावों में ईवीएम के स्थान पर बैलट पेपर का इस्तेमाल किया जाए। आज विपक्षी पार्टियों को प्लास्टिक की ईवीएम की बजाय स्टील से बने बैलट बॉक्स यानी मतपेटी में अपना भविष्य ज़्यादा सुरक्षित लग रहा है। आज से सत्तर साल पहले भी इसी तरह की ज़रुरत महसूस हुई। 1951 से होने  जा रहे  पहले  चुनाव  में  ऐसी  मतपेटी की ज़रुरत महसूस हुई जो मजबूत और भरोसेमंद हो और जिसमे मतपत्र सुरक्षित रखे जा सकें । उस समय देश में एक ही कंपनी थी  जो स्टील की मजबूत मतपेटी बनाने का दावा कर सकती थी। वो थी गोदरेज कंपनी। 

पहला लोकसभा चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952  तक चला। चुनाव आयोग के गठन को अभी दो साल ही हुए थे। चुनाव आयोग के आगे कई  मुश्किलें थीं और समय कम। सबसे बड़ी दिक्कत थी कि मतपेटी  और उसमें  रखे मतपत्रों की सुरक्षा कैसे होगी? चार महीने तक चलने वाले कार्यक्रम  में आयोग को भारत के हर कोने में चुनाव का आयोजन  कराना था। यातायात की सुविधान के बराबर थी। मतपेटी को दुर्गम पहाड़ियों से लेकर रेतीले रेगिस्तान में बसे इक-इक वोटर तक पहुंचना था। तय किया गया कि मतपेटी स्टील से बनी हो  जो किसी भी ऊबड़ खाबड़ स्थान में ले जाते समय मतपत्रों को सुरक्षित रख सके।बाजार में एक ही भरोसेमंद नाम था - गोदरेज। 1897 से तिजोरी के कारोबार से जुड़े गोदरेज एंड बॉयस कंपनी  को चुनाव आयोग ने स्टील की मतपेटी बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी।

जुलाई 1951 से गोदरेज ने मुंबई स्थित विखरोली कारखाने से मतपेटी के निर्माण  का कार्य शुरू किया। 17  लाख मतपेटियों का टारगेट कंपनी को चार महीनों में पूरा करना था। दिन रात के शिफ्ट में 22 हज़ार मतपेटियां रोज़ाना तैयार की गईं। 20 लाख मतपेटी  बनाने में 8200 टन स्टील का इस्तेमाल हुआ। 

गोदरेज द्वारा बनाये गए मतपेटी की खास बातें:

  • मतपेटी टैम्परप्रूफ थी मतलब उससे छेड़छाड़ करना नामुमकिन था। 
  • हर मतपेटी की क़ीमत 5 रूपये थी। 
  • मतपेटी की लंबाई 9 इंच थी। 
  • अगर इन मतपेटियों  को एक साथ  रखा जाता तो  लंबाई 200 मील तक पहुँच जाती।  
  • अगर इन मतपेटियों को एक के ऊपर एक रखा जाता तो इनकी ऊंचाई 36 माउन्ट एवेरेस्ट पर्वतों जितनी हो जाती। 

Yaspal

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