Earth Axis Tilt: NASA का अलर्ट: 31 इंच तक टेढ़ी हो गई धरती! भूजल खींचने से हिल रही है पृथ्वी की धुरी
punjabkesari.in Wednesday, Nov 19, 2025 - 08:59 AM (IST)
नेशनल डेस्क: धरती को हम एक स्थिर, भरोसेमंद घूमने वाली गेंद की तरह देखते हैं - लेकिन वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा गतिशील है। पृथ्वी का घुमाव लगातार सूक्ष्म बदलावों से गुजरता है, और चौंकाने वाली बात यह है कि इंसानी गतिविधियाँ भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ज़मीन के नीचे छिपा पानी जब इंसान पंपों के सहारे निकालकर खेतों, शहरों और उद्योगों में इस्तेमाल करता है, तो यह प्रक्रिया धरती के घूर्णन को प्रभावित करने वाले बड़े 'अदृश्य धक्के' की तरह काम करती है। एक नई वैज्ञानिक रिपोर्ट ने इस अदृश्य प्रभाव को बेहद साफ तौर पर उजागर किया है।
वैज्ञानिकों का बड़ा खुलासा – भूजल खींचने से हिल रही है पृथ्वी की धुरी
सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता की-वॉन सियो और उनकी टीम ने यह दिखाया है कि इंसान द्वारा जमीन के भीतर से भारी मात्रा में पानी निकालना, पृथ्वी की धुरी में होने वाले बदलावों के पीछे प्रमुख कारणों में से एक है। उनकी टीम ने 1993 से 2010 तक के वैश्विक जल-निकासी और समुद्री स्तर से जुड़े डेटा का विश्लेषण किया।
अध्ययन के अनुसार, इस अवधि में करीब 2,150 गीगाटन भूजल निकाला गया, जो अंततः समुद्रों में जाकर जमा हो गया। इस अतिरिक्त पानी के फैलाव ने पृथ्वी के द्रव्यमान में बदलाव पैदा किया और परिणामस्वरूप ग्रह की घूर्णन धुरी में ध्यान देने योग्य परिवर्तन दर्ज हुए। सियो कहते हैं कि विभिन्न प्राकृतिक कारणों में भी बदलाव आते रहते हैं, लेकिन उनमें से सबसे ज्यादा बड़ा प्रभाव जल-विस्थापन यानी जमीन से पानी हटकर दूसरे हिस्सों में जमा होना डालता है।
शोध कैसे हुआ पक्का?
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के ध्रुवीय गति के मौजूदा पैटर्न को समझने के लिए एक मॉडल तैयार किया। जब मॉडल में भूजल-निकासी का आंकड़ा शामिल किया गया, तो परिणाम वास्तविक अवलोकनों से बिल्कुल मेल खाने लगे। इससे साफ हो गया कि धुरी में दर्ज बदलाव का बड़ा कारण इंसान द्वारा पंप किया गया पानी ही है। यह निष्कर्ष NASA के 2016 के अध्ययन को और मजबूत बनाता है, जिसमें यह साबित किया गया था कि जल के असमान वितरण से पृथ्वी की घूर्णन प्रणाली प्रभावित होती है।
भूजल समुद्र में पहुंचकर क्या असर डालता है?
जब गहराई से निकाला गया पानी सिंचाई, पीने या उद्योगों में इस्तेमाल होता है, तो वह वाष्पीकरण और बहाव के माध्यम से अंततः समुद्रों में पहुंच जाता है। नई रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 17 वर्षों में इस प्रक्रिया ने समुद्र का स्तर करीब 0.24 इंच बढ़ाया। यह सुनने में भले छोटा बदलाव लगे, लेकिन धरती के जलवायु तंत्र में यह बेहद तेज़ और असरदार वृद्धि मानी जाती है। यह बढ़ता स्तर तूफानों, तटीय कटाव और जलवायु जोखिमों को और अधिक मजबूत करता है।
यह अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण था?
NASA के विशेषज्ञ सुरेंद्र अधिकारी, जो 2016 के अध्ययन में भी शामिल थे, कहते हैं कि नया विश्लेषण इसलिए अहम है क्योंकि यह भूजल-निकासी के सीधे प्रभाव को पृथ्वी की ध्रुवीय गति से जोड़कर पुख्ता सबूत प्रस्तुत करता है। सबसे ज्यादा प्रभाव उन क्षेत्रों में देखा गया है जहाँ बड़े पैमाने पर भूजल निकाला जाता है- जैसे पश्चिमी उत्तर अमेरिका और उत्तर-पश्चिम भारत। इन इलाकों में पानी के स्तर में लगातार गिरावट पृथ्वी की धुरी को हिलाने में मुख्य भूमिका निभा रही है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी की धुरी में होने वाले सूक्ष्म बदलाव सिर्फ एक वैज्ञानिक जिज्ञासा नहीं हैं, बल्कि यह बताने का शक्तिशाली उपकरण बन सकते हैं कि महाद्वीपों पर पानी कहाँ और कैसे जमा हो रहा है। शोधकर्ता सियो का कहना है कि इस तरह के विश्लेषण भविष्य में बड़े पैमाने पर जल प्रबंधन और भूजल संरक्षण नीतियों के लिए दिशा दिखा सकते हैं। बदलती ध्रुवीय गति को समझकर हम यह जान सकते हैं कि जमीन के नीचे के संसाधन कैसे खत्म हो रहे हैं और इसका पृथ्वी के संपूर्ण तंत्र पर क्या असर पड़ रहा है।
