वाजपेयी की एक फोन कॉल से राष्ट्रपति बन गए थे डॉ कलाम, 2 घंटे में सुनाया था डिसीजन

Sunday, Oct 15, 2017 - 02:56 PM (IST)

नई दिल्ली: भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की बराबरी कोई नहीं कर सकता। इतने ऊंचे पद पर रहते हुए भी उन्होंने सादगीभरा जीवन जिया और उनके इसी अंदाज पर पूरा देश हमेशा कायल रहा। 15 अक्तूबर 1931 को धनुषकोडी गांव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में जन्मे डॉ.कलाम को बच्चों से बेहदलगाव था और वे हमेशा कहते थे कि यह हमारा कल हैं। ये संवरेंगे तो देश निखरेगा। मिसाइल मैन के नाम से संबोधित किए जाने वाले अब्‍दुल कलाम के राष्ट्रपति बनने के पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है। डॉ कलाम ने अपनी किताब Turning Points: A Journey Through Challanges में इस वाकये का जिक्र किया है।

डॉ. कलाम ने किताब में लिखा कि 10 जून 2002 की सुबह अनुसंधान परियोजनाओं पर प्रोफेसरों और छात्रों के साथ मैं काम कर रहा था। ये दिन अन्ना विश्वविद्यालय के खूबसूरत वातावरण में किसी भी अन्य दिन की तरह था। मेरी क्लास की क्षमता 60 छात्रों की थी, लेकिन हर लेक्चर के दौरान, 350 से अधिक छात्र पहुंच जाते थे। मेरा उद्देश्य अपने कई राष्ट्रीय मिशनों से अपने अनुभवों को साझा करने का था।

दिनभर के लेक्चर के बाद जब शाम को मैं लौटा तो अन्ना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर कलानिधि ने बताया कि मेरे ऑफिस में दिन में कई बार फोन आए और कोई बड़ी व्यग्रतापूर्वक मुझसे संपर्क करना चाहता है। जैसे ही मैं अपने कमरे में पहुंचा तो देखा कि फोन की घंटी बज रही थी। मैंने जैसे ही फोन उठाया दूसरी तरफ से आवाज आई कि प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं। मैं प्रधानमंत्री से फोन कनेक्ट होने का इंतजार ही कर रहा था कि तभी आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का मेरे मोबाइल पर फोन आया। नायडू ने कहा कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी आप से कुछ महत्वपूर्ण बात करने वाले हैं और आप उन्हें मना मत कीजिएगा। मैं नायडू से बात कर ही रहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी से कॉल कनेक्ट हो गई। वाजपेयी ने फोन पर कहा कि कलाम आप की शैक्षणिक जिंदगी कैसी है? मैंने कहा बहुत अच्छी। वाजपेयी ने आगे कहा कि मेरे पास आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण खबर है, मैं अभी गठबंधन के सभी नेताओं के साथ एक अहम बैठक करके आ रहा हूं, और हम सबने फैसला किया है कि देश को आपकी एक राष्ट्रपति के रूप में जरूरत है। मैंने आज रात  इसकी घोषणा नहीं की है, आपकी सहमति चाहिए। वाजपेयी ने कहा कि मैं सिर्फ हां चाहता हूं न नहीं।

मैंने कहा कि एनडीए करीब दो दर्जन पार्टियों का गठबंधन है और कोई जरूरी नहीं कि हमेशा एकता बनी रहे। मेरे पास इतना भी वक्त नहीं था, कि मैं बैठ भी सकूं। भविष्य को लेकर मेरी आंखों के सामने कई चीजें नजर आने लगीं, पहली हमेशा छात्रों और प्रोफेसर के बीच घिरे रहना और दूसरी तरफ संसद में देश को संबोधित करना। ये सब मेरे दिमाग में घूमने लगा, मैंने वाजपेयी जी को कहा कि क्या आप मुझे यह फैसला लेने के लिए 2 घंटे का समय दे सकते हैं? इस पर वाजपेयी जी ने कहा कि आपकी हां के बाद हम सर्वसम्मति पर काम करेंगे। अगले दो घंटों में मैंने मेरे करीबी दोस्तों को करीब 30 कॉल किए, जिसमें कई सिविल सर्विसेज से थे तो कुछ राजनीति से जुड़े लोग थे। उन सबसे बात करके दो राय सामने आई। एक राय थी कि मैं शैक्षणिक जीवन का आनंद ले रहा हूं, ये मेरा जुनून और प्यार है, इसे मुझे इसे परेशान नहीं करना चाहिए। वहीं दूसरी राय थी कि मेरे पास मौका है भारत 2020 मिशन को देश और संसद के सामने प्रस्तुत करने का। ठीक 2 घंटे बाद मैं वाजपेयी जी को फोन किया और कहा मैं इस महत्वपूर्ण मिशन के लिए तैयार हूं। वाजपेयी जी ने कहा धन्यवाद।

इसके बाद 15 मिनट के अंदर ये खबर पूरे देश में फैल गई। थोड़ी ही देर के बाद मेरे पास फोन कॉल्स की बाढ़ आ गई। मेरी सुरक्षा बढ़ा दी गई और मेरे कमरे में सैकड़ों लोग इकट्ठे हो गए। उसी दिन वाजपेयी जी ने विपक्ष की नेता सोनिया गांधी से बात की। जब सोनिया ने उनसे पूछा कि क्या एनडीए की पसंद फाइनल है। प्रधानमंत्री ने साकारात्मक जवाब दिया। सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के सदस्यों और सहयोगी दलों से बात कर मेरी उम्मीदवारी के लिए समर्थन किया। मुझे अच्छा लगता अगर मुझे लेफ्ट का भी समर्थन मिलता, लेकिन उन्होंने अपना उम्मीदवार मनोनित किया। राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के लिए मेरी मंजूरी के बाद मीडिया द्वारा मुझसे कई सवाल पूछे जाने लगे। कई लोग पूछते की कोई गैर राजनितिक व्यक्ति और खासकर वैज्ञानिक कैसे राष्ट्रपति बन सकता है। ऐसे  25 जुलाई को डॉ एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने। कुल दो प्रत्याशियों में कलाम को 9,22,884 वोट मिले। वहीं लेफ्ट समर्थित उम्मीदवार कैप्टन लक्ष्मी सहगल को 1,07,366 मत। डॉ. कलाम आज भी देश की जनता के दिलों में जीवीत हैं। उनकी अमिट छाप कभी जेहन से नहीं जा सकती।

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