कोरोना से भीलवाड़ा के युद्ध की देशभर में चर्चा, जानिए कैसे महामारी पर पाया काबू?

Thursday, Apr 09, 2020 - 11:57 PM (IST)

नेशनल डेस्कः देश में सबसे पहले कोरोना जोन बने भीलवाड़ा ने वायरस के खिलाफ महायुद्ध जीत लिया है। यह देश का एकमात्र शहर है, जिसने 20 दिन में कोरोना को हरा दिया। यह यूं ही संभव नहीं हुआ। जिला प्रशासन की ठोस रणनीति, कड़े फैसले, चुनाव की तरह मैनेजमेंट और जीतने की जिद। कलेक्ट्रेट के कर्मचारियों ने रात-रात भर जागकर काम किया और भीलवाड़ा को बेमिसाल बना दिया। यहां हालात इस कदर बिगड़े कि राजस्थान में सर्वाधिक 27 मरीज आ गए। ये सभी एक निजी अस्पताल के स्टाफ व मरीज थे। बढ़ती संख्या से घबराए प्रशासन ने खुद कहा था, ‘भीलवाड़ा बारूद (कोरोना) के ढेर पर है।’ लेकिन हौसला बरकरार रहा।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अधिकारियों के साथ मिलकर बनाया मैगा प्लान
राजस्थान में सबसे पहले 19 मार्च को भीलवाडा में कोरोना का पहला मरीज सामने आया था। इस पर यहां कोरोना के प्रसार को रोकने के लिये मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भीलवाड़ा के हालात पर जिला कलेक्टर राजेंद्र भट्ट से चर्चा कर कर्फ्यू लगाने की स्वीकृति दी और जिले की सभी सीमाओं को सील करने के निर्देश दिए थे। शुरू में जिले के 25 लाख लोगों को घरों में क़ैद रखना एक मुश्किल काम लग रहा था पर भयभीत लोगों ने स्वप्रेरणा से घरों में अपने आपको बंद कर लिया। इसके बाद मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के साथ जयपुर में उच्चस्तरीय अधिकारियों के समन्वय और निर्देश से सरकारी मशीनरी ने प्रदेश के पहले कोरोना के मुख्य केंद्र को पूरे देश के लिए अनुकरणीय उदाहरण में तब्दील कर दिया।

दो बार सेनेटाइजेशन
शहर के 55 वार्डों में नगर परिषद के जरिये दो बार सैनिटाइजेशन करवाया। हर गली-मोहल्ले, कॉलोनी में हाइपोक्लोराइड एक प्रतिशत का छिडकाव किया गया।

25 लाख लोगों की कराई गई स्क्रीनिंग
जिला कलक्टर राजेंद्र भट्ट ने ग्राम स्तर पर सर्वे के लिए अतिरिक्त जिला कलक्टर प्रशासन राकेश कुमार को कमान सौंपी। सिर्फ सात दिन में जिले में 25 लोगों की स्क्रीनिंग की गई। छह हजार कर्मचारी जुटे। मरीजों के संपर्क में आए लोगों की पहचान की। 7 हजार से अधिक संदिग्ध होम क्वारंटीन में रखे। एक हजार को 24 होटलों, रिसोर्ट व धर्मशालाओं में क्वारंटीन किया।

रात तीन बजे तक डाटा कलेक्शन
जमीनी स्तर पर हुए सर्वे की रिपोर्ट तहसील स्तर से होकर उसी दिन जिला स्तर तक पहुंचाना होता था। अतिरिक्त जिला कलक्टर प्रशासन की कोर टीम रात को तीन बजे तक आंकड़े इकट्ठा करने का काम करती थी। त्वरित डाटा संग्रहण के परिणामस्वरूप प्रशासन को अगले निर्णय लेने में काफी आसानी रही। पहले चरण के सर्वे में 16 हजार से अधिक ऐसे व्यक्तियों की पहचान की गई जो सामान्य सर्दी-जुकाम से पीड़ित थे। इन्हे घर में ही रहते हुए सोशल डिस्टेंस की पालना करने और स्वच्छता की आदतें अपनाने की सलाह दी गई।

संक्रमण को कम्यूनिटी संक्रमण में बदलने से रोकने के लिए लगातार लिये गये त्वरित निर्णय मील के पत्थर साबित हुए। चिकित्सा विभाग के माध्यम से शहरी सीमा में सर्वे कर लोगों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी हासिल की जा रही थी तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रा में जमीनी स्तर की मशीनरी को इसके लिए उपयोग में लाया गया। इसके लिए राजस्व , ग्रामीण विकास व पंचायती राज, शिक्षा, कृषि, चिकित्सा आदि विभाग के सबसे निचले स्तर के तीन-तीन कार्मिकों की 1948 टीम बनाई गई। करीब छह हजार लोगों को एक साथ फील्ड में झौंक कर सात दिन के भीतर जिले के पूरे ग्रामीण क्षेत्रों का सर्वे कर लिया गया। यह इतना आसान नहीं था।

आइसोलेशन वार्ड बदलते रहे स्टाफ
जिले के राजकीय अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए बनाया आइसोलेशन वार्ड। इसमें कार्यरत डॉक्टर्स व मेडिकल स्टाफ की हर सप्ताह ड्यूटी बदली। वे कोरोना से संक्रमित न हों, इसलिए सात दिन की ड्यूटी के बाद उन्हें भी 14 दिन क्वारंटीन में रखा। नतीजा, अब तक 69 स्टाफ में से एक भी संक्रमित नहीं हुआ। 

पहले कर्फ्यू फिर महाकर्फ्यू
छह पॉजीटिव केस आते ही 20 मार्च को भीलवाड़ा शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया। फिर 14 दिन बाद 3 से 13 अप्रैल तक दस दिन के लिए महाकर्फ्यू। ऐसा करना जरूरी था, ताकि लोग घरों में ही रहें। वायरस का सामुदायिक प्रसार न हो। जिले के ग्रामीण क्षेत्र या गांव का व्यक्ति कोरोना से संक्रमित मिला, उस गांव या क्षेत्र को सेंटर प्वाइंट मानते हुए एक किमी की परिधि को नो मूवमेंट जोन घोषित कर दिया यानि वहां कर्फ्यू भी लगाया।

जिले की सीमाएं सील
प्रशासन ने जिले की सीमाएं सील कर दीं। 20 चेक पोस्ट बनाकर कर्मचारी तैनात कर दिए, ताकि न कोई बाहर से आ सके, न जिले से बाहर जा सके। शहर व जिले में रोडवेज व प्राइवेट बसें सहित सभी तरह के वाहन व ट्रेन भी बंद करवाए। संक्रमित आ-जा न सके।

राशन वितरण
कर्फ्यू में लोगों को खाने-पीने का सामान भी मिलता रहे। इसके लिए सहकारी भंडार के जरिये वाहनों से घर-घर राशन सामग्री, फल-सब्जियां व डेयरी के जरिये दूध पहुंचाया गया। श्रमिकों, असहाय व जरूरतमंदों को निशुल्क भोजन पैकेट व किराना सामान भेजा।

जन सहयोग से हुआ संभव
दूसरे चरण में इन्ही लोगों पर फोकस किया गया। जिन्हें अभी भी सर्दी-जुकाम की शिकायत थी, उनका मेडीकल स्क्रीनिंग करवाया जा रहा है। इनमें से संदिग्धों को भीलवाड़ा मुख्यालय पर कोरोना की जांच के लिए लाया जा रहा है। जिले में अभी तक लिए गए करीब ढाई हजार से ज्यादा नमूने में अधिकांश ये लोग शामिल हैं। स्थानीय प्रशासन के निर्णय और दूरगामी सोच वाले फैसलों ने भीलवाड़ा को देश में एक मिसाल के रुप में स्थापित कर दिया है जिसकी पूरे देश में प्रशंसा हो रही है।भीलवाड़ा के जिलाधिकारी ने कहा कि हमने पहले चरण में कोरोना से महायुद्ध जीत लिया है। अब तक 21 मरीज निगेटिव से पॉजिटिव हो गए। इनमें से 15 को घर भेज दिया गया। केंद्र सरकार ने हमारे लिए निर्णयों व रणनीति को मॉडल माना है। यह सब पूरी टीम के सहयोग से ही संभव हुआ। भीलवाड़ा की जनता का भी पूरा सहयोग मिला। अब महायुद्ध का दूसरा चरण है। इसे भी हम सब लोगों के सहयोग से जीतेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है। 

Yaspal

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