Dhari Devi Temple: जहां देवी का रूप दिन में तीन बार बदलता है, नवरात्रि में होती है भारी भीड़
punjabkesari.in Saturday, Mar 29, 2025 - 11:59 AM (IST)

नेशनल डेस्क: उत्तराखंड में कई धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हैं, लेकिन धारी देवी मंदिर का स्थान सबसे विशेष है। यह मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है और यह उत्तराखंड की रक्षक देवी, धारी देवी को समर्पित है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्वता के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ होने वाला एक अद्भुत चमत्कार भी भक्तों को आकर्षित करता है। धारी देवी का मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर में स्थित है और यह चारधाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है।
देवी की मूर्ति बहकर धारो गांव के पास एक चट्टान पर रुक गई
धारी देवी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है, और इसे द्वापर युग से जुड़ा हुआ माना जाता है। इसके बारे में एक दिलचस्प मान्यता है कि एक समय में यहां बाढ़ आई थी और देवी की मूर्ति बहकर धारो गांव के पास एक चट्टान पर रुक गई थी। इसके बाद एक दिव्य आवाज आई, जो यह कहती थी कि देवी की मूर्ति को धारो गांव में स्थापित किया जाए। इसके बाद धारो गांव के लोगों ने देवी की मूर्ति को वहां स्थापित किया और तब से यह स्थान धार्मिक केंद्र बन गया। इस मंदिर को चारधाम यात्रा के रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है।
धारी देवी मंदिर में देवी के रूप बदलने का चमत्कार
धारी देवी मंदिर में एक अनोखा चमत्कार होता है, जो भक्तों को बहुत आकर्षित करता है। यह चमत्कार मंदिर की देवी की मूर्ति से जुड़ा हुआ है। यहां देवी की प्रतिमा दिन में तीन बार रूप बदलती है।
1. सुबह - देवी की मूर्ति कन्या रूप में दिखाई देती है।
2. दोपहर - देवी की मूर्ति युवती रूप में नजर आती है।
3. शाम - देवी की मूर्ति वृद्ध महिला रूप में दिखाई देती है।
यह चमत्कार प्रतिदिन होता है, और भक्त इसे देखने के लिए सुबह से शाम तक मंदिर में रुकते हैं। यह रूप परिवर्तन भक्तों के लिए एक अद्भुत अनुभव होता है और मंदिर की धार्मिक महत्ता को और बढ़ाता है।
हजारों लोगों की गईं जानें
उत्तराखंड के स्थानीय लोगों के अनुसार, 2013 में आई भीषण बाढ़ का कारण धारी देवी की मूर्ति का विस्थापित किया जाना था। 16 जून 2013 को देवी की मूर्ति को उसके पुराने स्थान से हटाकर नए स्थान पर रखा गया था। इसके बाद उसी दिन उत्तराखंड में एक बड़ी बाढ़ आ गई, जिसमें हजारों लोगों की जानें गईं और भारी तबाही हुई। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह बाढ़ देवी के क्रोध का परिणाम थी, क्योंकि उनका आशीर्वाद और संरक्षण अब उस स्थान पर नहीं था। इस घटना के बाद से देवी की मूर्ति को फिर से वहां स्थापित करने की मांग उठी थी।
धारी देवी और कालीमठ का संबंध
धारी देवी मंदिर और कालीमठ का एक गहरा धार्मिक संबंध है। जहां धारी देवी में देवी काली के सिर की पूजा की जाती है, वहीं कालीमठ में देवी के धड़ की पूजा होती है। दोनों ही मंदिर देवी काली को समर्पित हैं, लेकिन कालीमठ तंत्र विद्या का एक प्रमुख केंद्र है। जबकि धारी देवी को चारधामों की रक्षक देवी माना जाता है और उनका पूजन विशेष रूप से चारधाम यात्रा मार्ग पर जाता है। यह धार्मिक स्थल दोनों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए देवी काली की महिमा को प्रदर्शित करता है।
धारी देवी मंदिर दर्शन का समय
धारी देवी मंदिर भक्तों के दर्शन के लिए सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। सुबह 6 बजे के बाद श्रद्धालु अपनी पूजा अर्चना शुरू कर सकते हैं और शाम के समय मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। यहां दर्शन के लिए विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान भारी भीड़ उमड़ती है, क्योंकि यह समय देवी के पूजन और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
कैसे पहुंचें धारी देवी मंदिर?
धारी देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए विभिन्न मार्ग उपलब्ध हैं। यह मंदिर देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, पौड़ी और कोटद्वार से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- हवाई मार्ग: देहरादून में स्थित जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से मंदिर की दूरी लगभग 145 किलोमीटर है।
- रेल मार्ग: ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 115 किलोमीटर है।
- सड़क मार्ग: यहां पहुंचने के लिए टैक्सी और बस सेवा हमेशा उपलब्ध रहती है। आप देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, पौड़ी से आसानी से बसों या टैक्सियों के माध्यम से मंदिर पहुंच सकते हैं।
धारी देवी मंदिर का महत्व
धारी देवी मंदिर उत्तराखंड के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्थाओं का केंद्र है, बल्कि इसके साथ जुड़ी हुई मान्यताएं और चमत्कारी घटनाएं इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं। यहां देवी की पूजा करते समय श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति और सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नवरात्रि के समय यह मंदिर विशेष रूप से भीड़-भाड़ वाला रहता है, क्योंकि भक्तों की संख्या में भारी वृद्धि होती है।