टकराव साबित हो सकता है विनाशकारी

Thursday, Jul 21, 2016 - 04:33 PM (IST)

दक्षिण चीन सागर पर अपने दावे को लेकर चीन जिद छोड़ने को तैयार नहीं है। उसने साफ—साफ कह दिया है कि वह अपनी एक सेंटीमीटर जगह भी नहीं छोड़ेगा। दक्षिण चीन सागर पर हेग अंतरराष्ट्रीय अदालत द्वारा चीन के खिलाफ दिए गए फैसले के बाद वह कहता है कि संप्रभुता का मामला उसके लिए अहम है। दूसरी ओर, अमरीका का रुख भी कड़ा बना हुआ है। उसने भी स्पष्ट कर दिया है कि दक्षिण चीन सागर में अंतर्राष्‍ट्रीय कानून के अंतर्गत वह अपना ऑपरेशन जारी रखेगा। यदि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच विवाद नहीं थमा तो यह विनाशकारी साबित हो सकता है।

क्या करेगा अमरीका
दक्षिण चीन सागर में दबदबे को लेकर अमरीका और चीन में टकराव बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में उसने एशिया प्रशांत क्षेत्र में देशों से अपील की है कि वे दक्षिण चीन सागर पर अंतरराष्ट्रीय अदालत के निर्णायक फैसले के बाद विवादित क्षेत्र में भड़काऊ या स्थिति को बिगाड़ने वाले कदम नहीं उठाएं। सवाल है कि स्वयं अमरीका इस दिशा में क्या करेगा।

अन्य देशों का दावा
चीन इस विवाद के लिए अमरीका को कई बार दोषी ठहरा चुका है। जबकि ​फिलीपींस, वियतनाम, जापान, ताइवान, ब्रुनेई आदि देश भी दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करते हैं। जापान ने दावा किया है कि उसने पहली बार दक्षिण चीन सागर के विवादित जलक्षेत्र में पहली बार हथियारों से लैस चीन का तटरक्षक जहाज देखा है। बता दें कि चीन और जापान के बीच लंबे समय से द्वीप विवाद चल रहा है। विवादित द्वीप समूह को जापान सेनकाकू के नाम से पुकारता है, जबकि चीन उसे दियाओउ द्वीप समूह कहकर पुकारता है। जापान काफी समय से आरोप लगाता आ रहा है कि चीन इस विवादित क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ा रहा है। इसके अलावा वह गैस और ऑयल के लिए लगातार ड्रिलिंग भी कर रहा है।

तनाव की आशंका
दक्षिण चीन सागर पर हेग अदालत का फैसला आने के बाद जिस तरह चीन अपने आक्रामक रुख के जरिए फैसले को मानने से इंकार कर रहा है, उससे दक्षिण चीन सागर में सैन्य तनाव की आशंका बढ़ जाती है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने धमकी भरे अंदाज में कह चुके हैं कि किसी भी सूरत में अंतर्राष्ट्रीय अदालत के फैसले को स्वीकार नहीं किया जाएगा। अदालत के फैसले के बाद चीन ने इस विवादित क्षेत्र के एक हिस्से को सैन्य अभ्यास के लिए बंद कर दिया है। उसके बमवर्षक और लड़ाकू विमान इस क्षेत्र का गश्त कर चुके हैं। 

चीन अदालत से ऊपर है!
अमरीका चेीन को चेतावनी दे चुका है कि हेग अदालत का फैसला उसके लिए बाध्यकारी और अंतिम है। जबकि चीन इसे ढोंग बता चुका है। उसका कहना है कि इस फैसले का कोई कानूनी आधार नहीं है। इसे चीन की दादागिरी ही कहा जाएगा कि वह स्वयं को अदालत से ऊपर मानने लगा है। 

यह क्षेत्र क्यों है अहम 
गौर करने की बात है कि दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर का हिस्सा है। इसके 35 लाख वर्ग किलोमीटर के इलाके में कई छोटे-बड़े द्वीप हैं। यह दुनिया का सबसे व्यस्त समुद्री व्यापारिक मार्ग है। यहां भारत, अमरीका और जापान समेत कई अन्य देशों के सामरिक व आर्थिक हित दांव पर हैं। इस रास्ते से हर साल तकरीबन पांच ट्रिलियन डॉलर का व्यापार होता है। यह पूरी दुनिया के कारोबार का एक तिहाई हिस्सा है। 

प्रभाव बढ़ाने का प्रयास 
चीन की मंशा खरबों रुपए मूल्य की वस्तुओं के इस व्यापारिक मार्ग पर अपना प्रभाव बढ़ाकर भारत, अमेरिका और जापान के हितों को प्रभावित करना है। उसने वर्ष 2014 से अब तक इस क्षेत्र में सात कृत्रिम टापू बना लिए हैं। वर्ष 2015 के सैटलाइट इमेज से पता चलता है वह वहां हवाई पट्टी भी बना चुका है। उसकी योजना समुद्र के अंदर एक लैब बनाने की भी है। 

अमरीका का पक्ष
अमरीका ने स्पष्ट कर दिया है कि वह दक्षिण चीन सागर के किसी भी क्षेत्र का दावेदार नहीं है। उसका हित क्षेत्र में विवादों एवं प्रतिस्पर्धी दावों के शांतिपूर्ण समाधान में है। वह इस क्षेत्र में वाणिज्य का मुक्त प्रवाह और नौवहन की स्वतंत्रता सुरक्षित रखना चाहता है। अमरीकी अर्थव्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि वाणिज्य का प्रवाह बाधित नहीं हो। वह जोर दे रहा है कि यदि चीन अदरालत के फैसले का पालन नहीं करता है तो यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा। इसके परिणाम उसे भुगतने होंगे।

चीन का पक्ष
इसमें दो राय नहीं कि उकसावे की छोटी सी कार्रवाई से क्षेत्र में युद्ध भड़क सकता है। चीनी नौसेना प्रमुख एडमिरल वु शेंगली और उनके अमरीकी समकक्ष एडमिरल जॉन रिचर्डसन में बात हो चुकी है। चीन का पक्ष है कि अमरीका को भी दोनों देशों की नौसेनाओं के अच्छे रिश्ते से फायदा हो रहा होगा। अत: टकराव की स्थिति से बचने के लिए इस तरह की उकसाने की गतिविधियां रोकी जानी चाहिए। 

संयुक्त राष्ट्र संधि
बता दें कि यह फैसला समुद्री नियमों पर संयुक्त राष्ट्र संधि के अंतर्गत आने वाली हेग की अदालत की ओर से आया है। इस संधि पर चीन और फ़िलिपींस दोनों ने हस्ताक्षर किए हुए हैं। वैसे यह फैसला मानना ज़रूरी है, लेकिन इसे लागू करवाना अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। संभवत: इसी का फायदा चीन उठा रहा है। यदि अमरीका के साघ उसके संबंध तनावपूर्ण बने रहे तो टकराव होने से इंकार नहीं किया जा सकता। अमरीका स्वयं को दुनिया पुराना थानेदार मानता है, वह अपने प्रभुत्व को कभी कम नहीं होने देेगा। यह भी जरूरी नहीं कि वह चीन की अपील को आसानी से मान ले।

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