शाकाहारी दिखने के बावजूद क्यों मानी जाती है मांसाहारी? साधु-संत जिस दाल से करते हैं परहेज, जानिए इसके पीछे की चौंकाने वाली वजह

punjabkesari.in Sunday, Nov 02, 2025 - 03:48 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत में दालें हर रसोई का अहम हिस्सा हैं अरहर, चना, मूंग, उड़द और मसूर जैसी दालें रोज़ाना के खाने में शामिल होती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दालों में से मसूर की दाल को सनातन धर्म में मांसाहारी माना गया है। यही वजह है कि साधु-संत और धार्मिक अनुयायी इसका सेवन नहीं करते।

मसूर की दाल को मांसाहारी क्यों कहा गया
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसका संबंध समुद्र मंथन की कथा से बताया जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने स्वरभानु नामक राक्षस का वध किया, तो उसका सिर और धड़ अलग हो गया। जहां-जहां राक्षस का रक्त धरती पर गिरा, वहां मसूर की दाल उत्पन्न हुई। इसी वजह से इसे मांस से उत्पन्न माना गया और मांसाहारी दाल की श्रेणी में रखा गया।

दूसरी मान्यता: कामधेनु गाय से जुड़ी कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, मसूर की दाल कामधेनु गाय के रक्त से उत्पन्न हुई मानी जाती है। इसलिए इसे पवित्र आहार की श्रेणी में नहीं रखा गया। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि यह दाल तामसिक प्रवृत्ति को बढ़ाती है, यानी गुस्सा, कामेच्छा और आलस्य जैसी भावनाओं को उत्पन्न करती है। इसी कारण से साधु-संत और तपस्वी लोग इससे परहेज करते हैं।

वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से मसूर की दाल में मांसाहार जैसा कुछ नहीं होता। इसमें उच्च मात्रा में प्रोटीन, फाइबर और आयरन पाया जाता है जो शरीर के लिए लाभकारी है। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार, यह “तामसिक खाद्य पदार्थ” है, यानी इसके सेवन से शरीर में भारीपन और सुस्ती बढ़ सकती है। इसलिए जो लोग मानसिक शांति और सात्त्विक जीवनशैली अपनाते हैं, वे इसका सेवन नहीं करते।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Mansa Devi