नजरिया: अच्छा कोच बेहद जरूरी
Thursday, Jul 12, 2018 - 05:20 PM (IST)
नई दिल्ली (संजीव शर्मा ): इसे आप महज संयोग भी कह सकते हैं, लेकिन यह कम दिलचस्प नहीं है कि जब भारत में एक तथाकथित आध्यात्मिक गुरु या आत्मा के निर्देश पर 11 लोग अन्धविश्वास और तंत्र के फंदे पर झूलकर इहलीला समाप्त कर रहे थे तो ठीक उसी दौरान दुनिया के एक अन्य कोने में स्थित थाईलैंड में 12 बच्चे अपने कोच की कुशलता पर दृढ विश्वास रखते हुए भयंकर संकट की गुफा में फंसने के बावजूद जीवन को लेकर हद दर्जे तक उम्मीदजदा थे। उन्हें तंत्र के बजाए अपने देश के यंत्र यानी विज्ञान पर इतना भरोसा था कि उन्हें कुछ होने से पहले उन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाएगा। हुआ भी यही तंत्र-मन्त्र जहां दिल्ली में हार गया वहीं थाईलैंड में यंत्र की जीत हुई।
दिल्ली में एक हंसता खेलता परिवार जहां बेमौत मारा गया वहीं कई दिन तक मौत से लडऩे के बाद बच्चे बिना किसी नुक्सान के मुस्कुराते हुए बाहर निकल आए। इस दौरान उनके पास (शुरूआती दिनों) में अगर कोई आशा की किरण थी तो वह था उनका कोच जिसने उनका मनोबल नहीं टूटने दिया। हालांकि यह लिखना जितना आसान है वास्तव में यह काम करना उतना ही कठिन है। जब मौत सामने और लगभग तय दिख रही हो उस दौरान छोटे बच्चों को विश्वास दिलाना और उनका मनोबल ऊंचा रखना बड़ी बात है जिसे उनके कोच ने बड़ी संजीदगी से अंजाम दिया। हालांकि कुछ लोग कोच की आलोचना भी करते नजर आए कि वह उनको लेकर गुफा में गया ही क्यों, लेकिन अब लगभग यह साफ है कि बच्चे अगर आज जिंदा हैं तो कोच की भूमिका प्रमुख है। और दूसरी तरफ गुरु यानी कोच बढिय़ा नहीं होने के कारण हंसता -खेलता भरा-पूरा परिवार उजड़ गया। दिलचस्प ढंग से इसी समय चल रहे विश्व कप फुटबाल की भी ऐसी ही स्थितियां है।
शुरुआती दौर में ही दिग्गजों के फेल हो जाने के बाद जो टीमें आगे बढ़ीं उनके कोच उनके खिलाडिय़ों से ज्यादा चर्चित हैं। यहां तक कि फाइनल में भिडऩे को तैयार क्रोएशिआ और फ्रांस के कोच भी औरों के मुकाबले ज्यादा चर्चित हैं। कुलमिलाकर लव्वोलुआव यह कि अगर आपका कोच या गुरु अच्छा है तो आप सही रास्ते पर हैं। भारतीय दर्शन भी यही कहता है, लेकिन इसके बावजूद आधुनिक समय में ऐसे लोगों की बाढ़ है जो खुद को स्वंयभू गुरु कहाते हैं और उनके चक्कर में लोग अपना सर्वस्व लुटा देते हैं। बेटियों की आबरू, पैसा और जान तक। इसलिए गुरु का चयन करने में सतर्कता जरूरी है। भारत आज एकसाथ कई समस्याओं से जूझ रहा है। बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, बेरोजगारी और अपराध।
इस लिहाज से हमें ज्यादा ध्यान देना होगा कि तंत्र-मन्त्र और अन्धविश्वास के बजाए विज्ञान का सहारा लिया जाए और आगे बढ़ा जाए। इस मामले में थाईलैंड भी हमारे लिए उदाहरण हो सकता है। कहां तो हम खुद के अहम राष्ट्र होने की शेखी बघारते नहीं थकते और दूसरी तरफ थाईलैंड की जो छवि है वह भी सबके सामने है, लेकिन बच्चों को बचाने के अभियान ने तमाम चीजों को नए सिरे से सामने रख दिया है। अब हमें ही तय करना होगा वार्ना अभी तो थाईलैंड शर्म दिला रहा है कल को न जाने किस किस छोटे देश को देखकर सबक सीखने पड़ेंगे।