लवली की वापसी है बदली कांग्रेस की झलक

Tuesday, Feb 20, 2018 - 10:48 AM (IST)

नई दिल्ली (अकु श्रीवास्तव): दिल्ली कांग्रेस के कभी अध्यक्ष रहे और तीन-तीन बार मंत्री रह चुके अरविंदर सिंह लवली जब पिछले साल अप्रैल में बैंड -बाजे के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे तो लगा था कि केन्द्र में शासन कर रही भाजपा ने बड़ा तीर मार लिया लेकिन लगभग दस महीने बाद जिस तरह से लवली ने कांग्रेस में वापसी की है, वह अलग और मोहभंग की तस्वीर है। दिल्ली नगर निगम चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस में कुंठित हो चुके लवली जब भारतीय जनता पार्टी में आए थे तो उन्होंने दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन पर पार्टी को बर्बाद करने का ठीकरा फोड़ा था। तब जिस तरह दिल्ली में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल अपनी पकड़ मजबूत कर चुके थे और कांग्रेस किसी दुष्चक्र के चलते पुराने नेताओं और खास तौर से शीला दीक्षित और उनके समर्थकों की अनदेखी कर रही थी, उसमें वे या तो चुप बैठने पर मजबूर हुए या फिर दूसरी जगह ठौर तलाशने लगे। लवली दूसरी श्रेणी के नेता थे। खासा जनाधार रहा है उनका यमुनापार इलाके और दिल्ली के सिख प्रभावित क्षेत्रों में।  उन्होंने भाजपा की शरण ली। विजय गोयल, मनोज तिवारी की जय-जयकार हुई। 

पार्टी के लिए काम के साबित हो सकते हैं लवली
खुद लवली ने प्रैस कांफ्रैंस में और बाद में विभिन्न बातचीत में कांग्रेस के आलाकमान को गुरूर में बताया और असम के नेता हेमन्त सरमा की तरह उनकी भी अनदेखी करने का आरोप लगाया। भारतीय जनता पार्टी की लवली के आने से एक तरह से लाटरी निकल आई थी। दिल्ली में भाजपा के पास सिखों के बड़े नेताओं में शिरोमणि अकाली दल के आयातित नेताओं के अलावा बहुत प्रभावी नेताओं का अभाव रहा है। लवली काम के साबित हो सकते थे, लेकिन लवली की दिल्ली भाजपा में जिस तरह अनदेखी की गई वह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है। भाजपा में वह कभी पहली कतार के नेता हो पाते या नहीं, यह तो समय बताता लेकिन भाजपा नेतृत्व ने उनके साथ एक पूर्व विधायक का सा ही व्यवहार किया। 

लवली की हुई कांग्रेस में शानदार वापसी
दूसरी व तीसरी श्रेणी में भी जगह नहीं दी गई और नतीजा सामने है कि बड़े बेआबरू होकर वह भाजपा से अलग हो गए हैं और कांग्रेस में उनकी शानदार घर वापसी हो गई है। उनकी वापसी से जिस तरह राहुल गांधी के चेहरे पर खुशी झलक रही है , उससे साफ है कि कांग्रेस अध्यक्ष की रणनीति काम कर रही है और अजय माकन एंड कंपनी को भी उनके निर्देशों पर काम करना पड़ रहा है। दूसरी तरफ यह भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी भी है जो बाहर से आए प्रभावी नेताओं को वाजिब सम्मान नहीं दिला पा रही है और न  ही संभाल पा रही है। हो सकता है कि लवली का आना-जाना तत्काल दिल्ली भाजपा को फर्क  न  दिखा  पाए  लेकिन  बीस सीटों के उपचुनाव (होने की स्थिति में) में तीसरे नंबर की पार्टी नजर आ रही, को कुछ राहत जरूर देगी और  भाजपा  को  यह  संदेश  भी कि दूसरे खेमे से नेता लाने से जरूरी है, उसे संभालना।

Advertising