दाउदी बोहरा समाज की अनूठी पहल: 15 साल से छोटे बच्चों के लिए मोबाइल हुआ बैन
punjabkesari.in Monday, Dec 23, 2024 - 09:00 AM (IST)
नेशनल डेस्क। बच्चों को मोबाइल की लत से बचाने और उनका स्वास्थ्य सुधारने के लिए दाउदी बोहरा समाज ने एक अहम फैसला लिया है। समाज ने 15 साल से कम उम्र के सभी बच्चों के लिए मोबाइल का उपयोग पूरी तरह से बैन कर दिया है। इस फैसले को समाज के धर्मगुरु सैयदना आलीकदर मुफद्दल मौला ने लिया है। अब यह नियम देश और दुनिया में फैले समाज के सभी अनुयायियों के बीच लागू किया जाएगा।
मोबाइल की लत के दुष्प्रभाव
सैयदना साहब ने हाल ही में समाज के बच्चों से चर्चा की और उन्हें मोबाइल की लत के कारण होने वाली समस्याओं के बारे में जागरूक किया। मोबाइल का अधिक उपयोग बच्चों पर कई नकारात्मक प्रभाव डालता है जैसे:
1. आंखों की समस्याएं: लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखों की रोशनी कमजोर हो जाती है।
2. शारीरिक दिक्कतें: गर्दन और पीठ में दर्द, मोटापा और शारीरिक कमजोरी।
3. मनोवैज्ञानिक प्रभाव: चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, डिप्रेशन और एंग्जाइटी।
4. ऑटिज्म के मामले बढ़े: छोटे बच्चों में स्क्रीन टाइम बढ़ने से ऑटिज्म के मामलों में 5-10% तक की बढ़ोतरी देखी गई है।
कैसे चलाया जाएगा अभियान?
मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाने और बच्चों को जागरूक करने के लिए समाज ने कई कदम उठाने की योजना बनाई है:
1. मस्जिदों और संगठनों में कमेटियों का गठन: ये कमेटियां बच्चों और माता-पिता को मोबाइल के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूक करेंगी।
2. सेमिनार और वर्कशॉप का आयोजन: स्कूलों और सामुदायिक संगठनों के सहयोग से सेमिनार किए जाएंगे।
3. चिकित्सकीय सलाह: डॉक्टर और मनोचिकित्सकों से परामर्श सत्र आयोजित किए जाएंगे।
4. जागरूकता अभियान: माता-पिता को बच्चों की स्क्रीन टाइम सीमित करने के उपाय बताए जाएंगे।
बच्चों में बढ़ते खतरे
: आजकल 2 से 5 साल के बच्चे भी मोबाइल पर चार घंटे से ज्यादा समय बिता रहे हैं।
: 20-30% बच्चों को कम उम्र में ही चश्मा लगाना पड़ रहा है।
: 10-15% बच्चों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी के मामले बढ़ रहे हैं।
समाज की अपील
दाउदी बोहरा समाज ने माता-पिता से अपील की है कि वे बच्चों को मोबाइल के नुकसान समझाएं और उन्हें मोबाइल की लत से बचाने के लिए इस अभियान का हिस्सा बनें। वहीं यह कदम बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। अगर इस तरह के प्रयास व्यापक रूप से लागू किए जाएं तो बच्चों की जीवनशैली और भविष्य को सुधारने में बड़ी मदद मिल सकती है।