तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के लद्दाख दौरे पर चीन की नजर, बढ़ रहा ड्रैगन का ब्लड प्रेशर
Monday, Jul 11, 2022 - 02:51 PM (IST)
बीजिंग: तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा 4 साल बाद 15 जुलाई को लद्दाख जा रहे हैं। लेकिन धर्म गुरु का ये दौरा चीन की आंखों में खटक रहा है । इससे पहले दलाई लामा आखिरी बार 2018 में लद्दाख गए थे। चीन इस बात को लेकर पहले ही परेशान है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी है। दरअसल चीन आज भी तिब्बत को अपना हिस्सा मानता है और दलाई लामा के पद को लेकर अपनी मनमर्जी चलाना चाहता है ।
15 जुलाई को पहुंचने के बाद दलाई लामा कितने दिन रुकेंगे, इस बात की कोई जानकारी नहीं हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित उनके ऑफिस के हवाले से बताया के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दलाई लामा करीब एक माह तक चोग्लामसार गांव में रुकेंगे। ये वही गांव है जहां पर तिब्बत के वो परिवार रहते हैं, जो चीन के कब्जे से डरकर भारत आए थे। इसे शरणार्थियों का गांव भी कहते हैं और एलएसी से इसकी दूरी कुछ ही किलोमीटर है। अब सवाल ये है कि आखिर दलाई लामा से चीन इतना चिढ़ता क्यों है?
14वें दलाई लामा एक तिब्बती धर्मगुरु हैं। तिब्बती मान्यता के मुताबिक दलाई लामा एक अवलौकितेश्वर या तिब्बत में जिसे शेनेरेजिंग कहते हैं, वही स्वरूप हैं। दलाई लामा को बोधिसत्व यानी बौद्ध धर्म का संरक्षक माना जाता है। बौद्ध धर्म में बोद्धिसत्व ऐसे लोग होते हैं तो जो मानवता की सेवा के लिए फिर से जन्म लेने का निश्चय लेते हैं। वर्तमान में जो दलाई लामा हैं, उनका असली नाम ल्हामो दोंडुब है। उनका जन्म नार्थ तिब्बत के आमदो स्थित गांव तकछेर में छह जुलाई 1935 को हुआ था। ल्हामो दोंडुब की उम्र जब सिर्फ 2 साल थी तो उसी समय उन्हें 13वें दलाई लामा, थुबतेन ग्यात्सो का अवतार मान लिया गया था। इसके साथ ही उन्हें 14वां दलाई लामा घोषित कर दिया गया।
उनकी उम्र जब 6 साल थी तो उन्हें मठ की शिक्षा दी जाने लगी। दलाई लामा ने मठ में तर्क विज्ञान, तिब्बत की कला और संस्कृति, संस्कृत, मेडिसिन और बौद्ध धर्म के दर्शन की शिक्षा हासिल की। इसके अलावा उन्हें काव्य, संगीत, ड्रामा, ज्योतिष और ऐसे विषयों की शिक्षा भी दी गई । वर्ष 1959 में दलाई लामा ने 23 वर्ष की उम्र में ल्हासा में ऑनर्स किया। दलाई लामा के रूप में वह 29 मई 2011 तक तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष रहे थे। इस दिन उन्होंने अपनी सारी शक्तियां तिब्बत की सरकार को दे दी थीं और आज वह सिर्फ तिब्बती धर्मगुरु हैं। साल 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया।
साल 1954 में दलाई लामा ने चीन के राष्ट्रपति माओ त्से तुंग और दूसरे चीनी नेताओं के साथ शांति वार्ता के लिए बीजिंग गए। इस ग्रुप में चीन के प्रभावी नेता डेंग जियोपिंग और चाउ एन लाइ भी शामिल थे। साल 1959 में चीन की सेना ने ल्हासा में तिब्बत के लिए जारी संघर्ष को कुचल दिया। तब से ही दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित जिंदगी बिता रहे हैं।साल 1959 में चीन ने मनमाने ढंग से तिब्बत पर कब्जे का ऐलान कर दिया। इसके बाद भारत की तरफ से एक चिट्ठी भेजी गई जिसमें चीन को तिब्बत मुद्दे में हस्तक्षेप का प्रस्ताव दिया था। चीन उस समय मानता था कि तिब्बत में उसके शासन के लिए भारत सबसे बड़ा खतरा है। वर्ष 1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध की यह एक अहम वजह थी।
मार्च 1959 में दलाई लामा चीनी सेना से बचकर भारत में दाखिल हुए। वो सबसे पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग और फिर 18 अप्रैल को असम के तेजपुर पहुंचे। दलाई लामा के भारत आने को आज भी दोनों देशों के रिश्तों में एक अहम और नाजुक मोड़ माना जाता है। चीन ने उस समय दलाई लामा को शरण दिए जाने पर भारत का कड़ा विरोध किया था। इसी का बदला लेने के लिए चीन ने भारत पर 1962 में हमला किया था।
तवांग वो जगह है जहां पर सन् 1683 में छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था। ये जगह तिब्बती बौद्ध धर्म का केंद्र है। शांति का नोबल हासिल करने वाला दलाई लामा आज भी अरुणाचल प्रदेश और तवांग को भारत का हिस्सा करार देते हैं तो चीन इसे दक्षिणी तिब्बत करार देता है। इस वजह से चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी नेता मानता है। वो कहता है कि दलाई लामा भारत और चीन की शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।
वर्ष 2003 में हालांकि दलाई लामा ने तवांग को तिब्बत का हिस्सा करार दिया और अपने लिए विवाद मोल ले लिया था। साल 2008 में उन्होंने अपनी भूल को सुधारा और मैकमोहन रेखा पहचाना। इसके साथ ही उन्होंने तवांग को भारत का हिस्सा करार दे दिया। दलाई लामा अमेरिका से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक तिब्बत की आजादी और यहां की शांति की अपील करते रहते हैं। उनकी मांग है कि पूरे तिब्बत को एक शांति क्षेत्र में बदला जाए। चीन की जनसंख्या स्थानातंरण की पॉलिसी को अब छोड़ दिया जाए क्योंकि यह तिब्बतियों के अस्तित्व के लिए खतरा है।