AIIMS पर साइबर अटैक: खातों से 12 करोड़ गायब, आप भी बरतें सावधानी

Sunday, Dec 01, 2019 - 10:47 AM (IST)

नई दिल्ली: (पंकज वशिष्ठ): साइबर अपराधियों ने ‘चेक क्लोनिंग’ के जरिए राजधानी के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के दो अलग-अलग बैंक खातों से करीब 12 करोड़ रुपए निकाल लिए हैं। घटना की जानकारी मिलते ही एम्स प्रशासन में हड़कम्प मचा गया। जिसके बाद एम्स प्रशासन ने दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा और बैंक ने सीबीआई को मामले की शिकायत दी है। एम्स के बैंक खातों से यह रकम एक माह के दौरान मुम्बई, चेन्नई,कोलकाता सहित अन्य शहरों में निकाले गए।

एम्स डीन के पास मैसेज आने पर हुआ खुलासा
अक्तूबर व नवम्बर माह में एम्स निदेशक के नाम वाले व डीन के नाम वाले खाते से बड़ी रकम निकाले जाने का मैसेज आने पर एसबीआई से इस विषय में जानकारी मांगी गई। जिसके बाद मामले का खुलासा हुआ। साइबर अपराधियों के द्वारा करोड़ों रुपए की ठगी इस घटना के बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को एम्स ने सूचित कर दिया है। घटना कुछ दिन पहले की बताई जाती है। एम्स प्रशासन और मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा का कोई भी पुलिस अधिकारी इस मामले पर बोलने को तैयार नहीं है।

 

एसबीआई ने भी शुरू की आंतरिक जांच
जिन खातों में साइबर ठगों ने सेंध लगाई है, वे दोनों खाते देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में हैं। बैंक ने भी इस मामले में अपने स्तर पर आंतरिक जांच शुरू कर दी है। हालांकि अब तक की जांच में बैंक के हाथ कुछ भी नहीं लगा  है।

 

एक खाता एम्स के निदेशक का, दूसरा है डीन के नाम
दिल्ली पुलिस के एक आला अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर शनिवार को बताया, यह साइबर क्राइम का मामला है। 12 करोड़ रुपए एम्स के जिन दो खातों से निकाले गए हैं, उनमें से एक खाता एम्स के निदेशक के नाम और दूसरा खाता डीन के नाम है। साइबर ठगी की इस सनसनीखेज वारदात को अंजाम चेक-क्लोनिंग के जरिए दिया गया है। एम्स निदेशक वाले खाते से करीब सात करोड़ रुपए और डीन के नाम वाले खाते से करीब पांच करोड़ रुपए की रकम निकाले जाने की बात सामने आई है।

आर्थिक अपराध शाखा जुटी जांच में
दिल्ली पुलिस के आला अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि एम्स प्रशासन ने पूरी घटना की शिकायत दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को अधिकृत रूप से दे दी है। ईओडब्ल्यू मामले की जांच कर रही है। एम्स के प्रशासनिक अधिकारियों व पुलिस का मानना है कि इतनी बड़ी जालसाजी बिना बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत के संभव नहीं है। 

 

एम्स प्रशासन ने बैंक को बताया जिम्मेदार
12 करोड़ रुपए की इस साइबर ठगी के बारे में एम्स प्रशासन ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजी गोपनीय रिपोर्ट में सीधे तौर पर बैंक को जिम्मेदार बताया है। एम़्स प्रशासन का कहना है कि इस पूरे प्रकरण में बैंक ने लापरवाही बरती है। नियमानुसार 2 लाख से ज्यादा की रकम का चेक पास करने से पहले खाताधारक को सूचना दी जाती है लेकिन इस मामल में बैंक ने ऐसा नहीं किया। इस घटना के बाद से एसबीआई ने भी देशभर में अलर्ट जारी कर दिया है। हालांकि साइबर ठगी के इस मामले पर एसबीआई, पुलिस और संबंधित बैंक कुछ भी बोलने को तैयार नहीें हैं।

 

पहले भी रची गई थी एम्स से ठगी की साजिश
एम्स प्रशासन के ही एक सूत्र के मुताबिक, कुछ समय पहले भी एम्स के दो खातों में सेंध लगाने की नाकाम कोशिश की गई थी। उस कोशिश में एसबीआई की मुंबई और देहरादून शाखाओं से करीब 29 करोड़ रुपए ठगने की साजिश रची गई थी।  लेकिन यह साजिश नाकाम हो गई थी। 

 

बैंक ने जारी किया अलर्ट
बैंक ने खाता धारकों को जो मोबाइल बैंकिंग करते हैं उनको अलर्ट रहने की चेतावनी जारी की है। जालसाज एनी डेक्स डिवाइस कंट्रोल ऐप्स से यूजर के मोबाइल को कहीं से भी ऐक्सेस कर लेते हैं। आरबीआई ने भी कुछ दिन पहले इस स्कैम के बारे में यूजर्स को सावधान किया था। 

ये बरते सावधानियां

  • नंबर पर आने वाली ऐसी किसी कॉल को तुरंत काट दें क्योंकि कोई भी बैंक ग्राहकों को खुद कभी भी कॉल नहीं करता।
  • बैंक से जुड़ी किसी भी जानकारी को फोन पर ना बताएं, अगर आपको बैंकिंग से जुड़ा कोई काम है तो कोशिश करें कि ब्रांच में जाकर उसे ठीक कराएं। 
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ऐसे देते थे बैंक खातों में सेंध को अंजाम

  • साइबर अपराधी बैंक कर्मचारी बन कर बात करते हैं।
  •  उपभोक्ता को शक ना हो इसके लिए ये ठग नाम, डेट ऑफ  बर्थ और मोबाइल नंबर को वेरिफाई करते हैं।
  • साइबर अपराधी कहते हैं कि आपके मोबाइल बैंकिंग ऐप में किसी प्रकार की दिक्कत है जिसे ठीक किए जाने की जरूरत है।
  •  डराने के लिए ये ठग कहते हैं कि आपकी मोबाइल बैंकिंग सर्विस या कार्ड ब्लॉक हो सकता है।
  • मोबाइल ऐप की दिक्कत दूर करने के लिए यह किसी अन्य रिमोट डिवाइस कंट्रोल ऐप को डाउनलोड करने को कहेंगे।
  • डाउनलोड होने के बाद यह ऐप दूसरे ऐप्स की तरह ही आपसे प्राइवेसी परमिशन मांगते हैं।
  • साइबर अपराधी उपभोक्ता के मोबाइल पर आए 9 अंकों वाले कोड बताने को कहते हैं।
  • 9 अंकों वाले कोड को एंटर करने के बाद ये ठग उपभोक्ता को मोबाइल से परमिशन देने के लिए कहते हैं।
  • उपभोक्ता द्वारा दी गई सभी परमिशन लेने के बाद इन जालसाजों को उपभोक्ता के मोबाइल का पूरा ऐक्सेस मिल 
  • जाता है।
  • फोन का ऐक्सेस मिलने के बाद साइबर अपराधी कहीं से भी उपभोक्ता के मोबाइल से पासवर्ड चुरा कर अकाउंट के जरिए खाते में सेंध लगा देते हैं।
  • साइबर अपराधी यूजर को मैसेज भेजकर उसे किसी खास नंबर पर फॉरवर्ड करने के लिए कहते हैं।
  • मैसेज मिलने के बाद ठग यूजर के मोबाइल नंबर या अकाउंट को यूपीआई से जोड़ लेते हैं।

vasudha

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