मंजूर की जिंदगी का अंधियारा मिटाने के लिए फरिश्ते बनकर आए सीआरपीएफ जवान

Wednesday, Oct 03, 2018 - 10:42 AM (IST)

श्रीनगर (मजीद):  सोपोर जम्मू-कश्मीर  के उन इलाकों में एक है, जहां पर सीआरपीएफ सहित अन्य सुरक्षाबलों पर जमकर पत्थरबाजी की जाती है। यहां से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिससे सुरक्षाबलों के मानवीय पक्ष का पता चलता है। लगातार पत्थरबाजी का सामना करने के बावजूद भी सुरक्षाबलों में स्थानीय लोगों के प्रति नफरत की भावना न होकर उनकी मदद करने का जज्बा दिखाई पड़ता है।


सोपोर के एक गांव में पांच साल पहले मंजूर अहमद मीर के साथ हुए एक हादसे ने उनकी जिंदगी की सारी खुशियां छीन ली थीं। दरअसल, पांच साल पहले मंजूर अहमद मीर जंगल के रास्ते से अपने घर की तरफ  जा रहे थे। इसी दौरान एक भालू ने उन पर हमला बोल दिया। इस हमले में मंजूर का चेहरा बुरी तरह से जख्मी हो गया। गांववालों की मदद से मंजूर को पास के हॉस्पिटल ले जाया गया। सही समय पर मिले इलाज से मंजूर की जिंदगी तो बच गई, लेकिन उनकी एक आंख की रोशनी पूरी तरह से चली गई। वहीं, दूसरी आंख की रोशनी भी धीरे-धीरे जाने लगी। मंजूर की इस हालत के चलते उनकी शादी में मुश्किलें आ रही थीं। इस बीच, मंजूर की मां का भी इंतकाल हो गया। अब मंजूर के घर में उनके वृद्ध पिता के अलावा कोई नहीं बचा था। 

रोटी के पड़ गये थे लाले
अपनी आंखों से लाचार मंजूर कुछ करने की स्थिति में नहीं रह गए थे। नौबत यहां तक आ गई कि घर में दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ने लगे। घर की ऐसी आर्थिक स्थिति के चलते मंजूर के लिए अपनी आंखों का इलाज करा पाना लगभग असंभव-सा था। करीब डेढ़ महीने पहले मंजूर का एक दोस्त उससे मिलने के लिए आया। मंजूर का यह दोस्त जम्मू-कश्मीर पुलिस में कॉन्स्टेबल है।

दोस्त ने दी सीआरपीएफ से मदद लेने की सलाह
उस दोस्त ने मंजूर को सलाह दी कि वह सीआरपीएफ  की ‘मददगार’ हेल्पलाइन से संपर्क करे। सीआरपीएफ ही उसकी कुछ मदद कर सकती है। इसके बाद मंजूर ने सीआरपीएफ की मददगार हेल्पलाइन से संपर्क किया। सीआरपीएफ  की मददगार हेल्पलाइन पर मौजूद जवान ने मंजूर को हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया। कुछ ही समय के बाद सीआरपीएफ की एक टीम मंजूर के घर पहुंच गई। सीआरपीएफ की यह टीम मंजूर को लेकर 92वीं बटालियन में पहुंची।

 

इलाज के लिय भेजा पीजीआई
बटालियन के कमांडेंट दीपक कुमार ने मंजूर से मुलाकात की। कमांडेंट दीपक कुमार के निर्देश पर सीआरपीएफ के डाक्टरों ने मंजूर की आंखों की जांच की। जांच के बाद डाक्टर ने कहा कि ऑपरेशन कर मंजूर के एक आंख की रोशनी वापस लाई जा सकती है, लेकिन यह ऑपरेशन चंडीगढ़ के पीजीआई में ही संभव है। 


 

हर मदद का किया वादा
कमांडेंट दीपक कुमार ने चंडीगढ़ में तैनात सीआरपीएफ की यूनिट से संपर्क किया। सीआरपीएफ की चंडीगढ़ यूनिट ने मंजूर की हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया। इसके बाद कमांडेंट दीपक ने मंजूर को एक कॉन्स्टेबल के साथ चंडीगढ़ के लिए रवाना कर दिया। पीजीआई चंडीगढ़ में परीक्षण के बाद डॉक्टरों ने उसकी आंख के ऑपरेशन की तारीख तय कर दी। लेकिन आंखों के ऑपरेशन में लाख रुपए से कम का खर्च नहीं आना था।

 

वेतन देकर की मदद
मंजूर इस खर्च को वहन कर सकने की हालत में नहीं थे। ऐसे में, सीआरपीएफ की 92वीं बटालियन के जवानों ने तय किया कि वह चंदा करके मंजूर की आंखों का इलाज कराएंगे। सभी जवानों ने अपने वेतन का एक हिस्सा मंजूर के आंखों के ऑपरेशन के लिए दान किया। इसके बाद चंडीगढ़ पीजीआई में मंजूर की आंखों का सफल ऑपरेशन हो गया। ऑपरेशन के बाद सीआरपीएफ ने करीब 35 दिनों तक मंजूर को अपनी चंडीगढ़ बटालियन में रहने के लिए जगह दी। करीब एक हफ्ते पहले वह कश्मीर लौट आया है।


राजनाथ सिंह ने की तारीफ
मंजूर अहमद मीर अब न केवल अपनी आंख से दुनिया को देख सकते हैं, बल्कि अपने वृद्ध पिता की देखभाल भी कर सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच सीआरपीएफ की 92वीं बटालियन के इस नेक काम की बेहद सराहना की जा रही है। हाल में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी सीआरपीएफ के इस मानवीय प्रयास की काफी तारीफ  की।

Monika Jamwal

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