सरकारी योजना ले डूबी 7 मासूम बच्चों की जिंदगी, धड़ल्ले से बिक रहा ब्लैकलिस्टेड कफ सिरप, क्या गुनहगारों को मिलेगी सजा?

punjabkesari.in Thursday, Oct 02, 2025 - 07:11 PM (IST)

नेशनल डेस्क: राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त बांटी जा रही खांसी की दवा बच्चों के लिए राहत नहीं, बल्कि मौत का पैगाम बन गई। डेक्सट्रोमेथोर्फन हाइड्रोब्रोमाइड नामक जहरीले साल्ट से बनी एक कफ सिरप ने तीन मासूमों की जान ले ली और कई बच्चों को अस्पतालों में भर्ती करवा दिया। यह घटना सिर्फ मेडिकल लापरवाही नहीं, बल्कि एक सोची-समझी गहरी साठगांठ का नतीजा है - जिसमें दवा कंपनी, सरकारी सिस्टम और नियंत्रण एजेंसियों की मिलीभगत साफ नज़र आती है।

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से लेकर राजस्थान के सीकर, जयपुर, भरतपुर और झुंझुनूं तक, हर जगह यही ज़हर खुलेआम बांटा जा रहा था। एक ओर जहां अभिभावक मुफ्त दवा योजना को राहत समझ रहे थे, वहीं अंदर ही अंदर यह जहरीली दवा बच्चों के शरीर को खोखला कर रही थी।

ब्लैकलिस्टेड ज़हर, लेकिन सरकारी अस्पतालों में सप्लाई जारी
जिस दवा से बच्चों की जान गई, वह पहले से ही दो बार - 2023 और 2025 में- प्रतिबंधित की जा चुकी थी। इसके बावजूद ‘केसन फार्मा’ नाम की कंपनी न सिर्फ इसे बनाती रही, बल्कि नई पैकेजिंग और फॉर्मूला के नाम पर वही ज़हर फिर से सप्लाई में धकेल दिया गया।

सरकार ने 2025 की शुरुआत में इस दवा को असुरक्षित घोषित किया था, लेकिन अफसरों की आंखें तब तक नहीं खुलीं जब तक बच्चों की मौतें शुरू नहीं हुईं। और यह सब हुआ उस योजना के तहत, जिसका उद्देश्य गरीबों को मुफ्त और सुरक्षित दवा देना था - मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना।

कंपनी की चालबाज़ी, सिस्टम की चुप्पी
जब मीडिया ने कंपनी से सवाल किए, तो मालिक वीरेंद्र कुमार गुप्ता ने दवा की गुणवत्ता को सही ठहराते हुए डॉक्टर पर 'ओवरडोज़' देने का आरोप मढ़ दिया। मगर सवाल यह है कि एक बार नहीं, दो बार नहीं - बार-बार ब्लैकलिस्ट हो चुकी दवा सरकारी अस्पताल तक पहुंच कैसे गई?

ज़ाहिर है, यह कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि ड्रग कंट्रोल विभाग और दवा आपूर्ति करने वाली सरकारी संस्था आरएमसीएल की मिलीभगत से संभव हुआ।

सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि 2024 में 101 और 2025 में अब तक 81 दवाएं जांच में फेल हो चुकी हैं। मगर इनमें से बहुत सी दवाएं आज भी खुलेआम अस्पतालों में दी जा रही हैं। यानी ज़हर को सिस्टम ने खुद मंजूरी दी।

कफ सिरप का काला सच: डॉक्टर भी बना शिकार
भरतपुर के बयाना ब्लॉक में जब एक तीन साल का बच्चा खांसी की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचा, तो उसे यह सिरप दी गई। पीते ही वह बेहोश हो गया और हालत इतनी बिगड़ गई कि उसे वेंटिलेटर पर डालना पड़ा। जब परिजनों ने डॉक्टर से सवाल किया, तो डॉ. ताराचंद योगी ने खुद वही सिरप पी ली — खुद को सही साबित करने के लिए। नतीजा ये हुआ कि डॉक्टर और दो एंबुलेंस कर्मी भी गंभीर हालत में भर्ती हो गए। जयपुर के फोर्टिस अस्पताल में इलाज के बाद डॉक्टर को छुट्टी तो मिल गई, मगर यह घटना सरकारी दावा और हकीकत के बीच की खाई को उजागर कर चुकी थी।

सीकर में भी लील गई मासूम की जान
इस जहरीले सिरप की दूसरी जानलेवा दस्तक सीकर में सुनाई दी, जहां पांच साल के बच्चे की मौत हो गई। सरकार की नींद अब जाकर खुली और आनन-फानन में DEXTROMETHORPHAN HBr Syrup IP 13.5 mg/5ml पर रोक लगा दी गई।

लेकिन सवाल अब भी वहीं है — क्या यह कार्रवाई पर्याप्त है?

क्यों हर ब्लैकलिस्ट के बाद लौट आता है ज़हर?
केसन फार्मा के खिलाफ कार्रवाई का इतिहास भरा पड़ा है। बीते दो सालों में इस कंपनी की 40 से अधिक दवाएं असुरक्षित घोषित की जा चुकी हैं। फिर भी यह कंपनी हर बार टेंडर प्रक्रिया में लौट आती है, और फिर वही जहरीली दवा सरकारी अस्पतालों में पहुंच जाती है।

इसका कारण है — सरकारी लैब्स को दरकिनार कर प्राइवेट लैब्स से जांच कराना, जहां रिपोर्ट में हेरफेर करना आसान होता है। एक लैब अगर दवा को फेल करती है, तो दूसरी लैब से मनचाही रिपोर्ट बनवाई जाती है, और अधिकारियों की सहमति से टेंडर फिर से कंपनी को मिल जाता है।

915 दवाएं फेल, फिर भी कार्रवाई नहीं
राजस्थान में 2019 से अब तक मुख्यमंत्री मुफ्त दवा योजना में 915 दवाओं के सैंपल फेल हो चुके हैं। मगर न तो इन कंपनियों पर स्थायी बैन लगा और न ही संबंधित अफसरों के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाया गया।

अब जाकर राजस्थान सरकार एक प्रस्ताव ला रही है कि अगर किसी कंपनी की एक भी दवा ब्लैकलिस्ट होती है, तो उस कंपनी की सभी दवाओं पर रोक लगाई जाएगी। मगर यह कदम भी तब आया जब मासूमों की जानें जा चुकी थीं।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anu Malhotra

Related News