चीन ने पाकिस्तान को बनाया अपनी कठपुतली

Monday, May 02, 2016 - 05:23 PM (IST)

हाल में चीन ने भारत और पाकिस्तान को मसूद अजहर से जुड़े मुद्दे को सीधी बातचीत और गंभीर विचार विमर्श से सुलझाने का सुझाव दिया है। इससे पहले उसने केवल भारत को यह सलाह दी थी। भारत द्वारा डोल्कन ईसा का वीजा रद्द करते ही चीन के स्वभाव में भी अंतर आया है। इसका यही अर्थ निकलता है कि भारत की इस कार्रवाई से वह मन ही मन बहुत खुश है। वह सशंकित था कि हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में आयोजित सम्मेलन में लोकतंत्र पर विचार—विमर्श की आड़ में उसके खि्लाफ कोई साजिश न रची जाए। डोल्कन चूंकि अब भारत नहीं आ रहा, इसलिए चीन ने पाकिस्तान को भी भारत के बाद सीधी वार्ता करने की सलाह दे डाली है।

देखा जाए तो चीन ने केवल विश्व को यह दिखाने के लिए यह सलाह दी कि विश्व को पता चले कि वह बढ़ते आतंकवाद को रोकने के लिए कितना चितिंत है। आतंकवाद केवल सलाह से नहीं रुकता है। इसकी रोकथाम ठोस कार्रवाई से और सभी देशों के आपसी सहयोग से संभव है। कुछ सप्ताह पहले संयुक्त राष्ट्र में चीन ने मसूद अजहर को प्रतिबंधित कराने के मामले में वीटो पॉवर का इस्तेमाल करके भारत के प्रयास में रुकावट डाल दी थी। इससे भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों में खटास आ गई। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने सफाई दी कि हम मसूद अजहर को सूचीबद्ध करने के मामले से संबंधित सभी पक्षों को प्रोत्साहित करते हैं। इस मसल पर दोनों देश सीधी बातचीत करें और गंभीर विचार विमर्श के जरिये हल निकालें। यहां चीन को आतंकवाद निरोध पर संयुक्त राष्ट्र की समिति के नियमों के तहत बातचीत करने की सलाह नहीं देनी चाहिए।

यह मामला भारत और पाकिस्तान के बीच का है। मसूद अजहर के मुद्दे में चीन जबरन कूदा था। उसे इसमें वीटो का इ्रस्तेमाल करने के लिए किसने कहा था और उसे इससे क्या फायदा हुआ ? इसका इशारा एक ही की तरफ जाता है। वह है पाकिस्तान। चीन एशिया में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए पाकिस्तान को इस्तेमाल करना चाहता है। वह सहायता के नाम पर उसे हथियारों की आपूर्ति् करता है। अजहर के मामले में पाकिस्तान के हित प्रभावित हो सकते थे,सो उसका पक्ष लेने के लिए उसने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया। अब वह दोनों देशों को सीधी वार्ता की सलाह देने का ढोंग क्यों रच रहा है। 

वैसे भी भारत हर प्रकार की बातचीत में अपने विषय पर ही केंद्रित रहता है। लेकिन पाकिस्तान का सुर कब बदल जाए इस पर निश्चित तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। हाल में हुई बातचीत में कश्मीर का कहीं जिक्र ही नहीं था। आतंकवाद और सुरक्षा पर ही बातचीत को मुख्यतौर पर केंद्रित माना जा रहा था। पाक विदेश सचिव ने कश्मीर के मुद्दे के समाधान पर जोर देना शुरू कर दिया। क्या चीन इस वार्ता के बारे में नहीं जानता है ? वह अपनी विशेष सलाह पाकिस्तान को ही दिया करे। भारत की सोच, कार्यप्रणाली और नीतियां पाकिस्तान से कहीं बेहतर,स्पष्ट और सुलझी हुई हैं। 

भारत यदि मसूद अजहर के मसले पर उठाए गए वीटो पर नराजगी जताता है तो चीन स्पष्टीकरण देता है कि उसकी यह कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के नियमों एवं प्रक्रियाओं के तहत थी। वह सुरक्षा परिषद प्रस्ताव एवं 1267 समिति के प्रक्रिया नियमों का हवाला देता है। 1267 समिति के प्रक्रिया नियमों के तहत समिति उन देशों के बीच संवाद को प्रोत्साहित करती है, जो किसी आतंकी या व्यक्ति को सूचीबद्ध करने की मांग कर रहा है। सीधी बातचीत के लिए भारत कभी पीछे नहीं हटा है। यह आनाकानी पाकिस्तान की ओर से की गई है। उसे पता है कि वह भारत के सवालों का ठोस जवाब नहीं दे पाएगा। 

दूसरा, भारत हमेशा प्रमाणों के आधार पर अपने दावे को सामने पर रखता है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान बातचीत को मूल विषय से भटकाने का ही काम करता आया है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मास्को में 18 अप्रैल को रूस, भारत, चीन के मंत्रियों के सम्मेलन में, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकरने बीजिंग में चीन के रक्षा मंत्री के साथ बातचीत में और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने हाल में सम्पन्न भारत-चीन सीमा वार्ता के 19वें दौर के दौरान मुख्य मुद्दे को उठाया था। अब पाकिस्तान भी अपनी भूमिका स्पष्ट करे कि उसने क्या प्रयास किए हैं।

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