ऑफ द रिकार्ड: जब ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में गई जया बच्चन की राज्यसभा सदस्यता

Monday, May 13, 2019 - 11:10 AM (IST)

इलैक्शन डैस्क: सियासत में एक नेता द्वारा पार्टी और सरकार में 2 पदों पर रहना आम बात है लेकिन संवैधानिक तौर पर सांसद अथवा विधायक रहते हुए यदि आप 2 तरफ  से सरकारी वेतन ले रहे हैं तो आपकी सदस्यता पर तलवार लटक सकती है। ऑफिस ऑफ  प्रॉफिट को लेकर बने इस कानून का शिकार जया बच्चन हो चुकी हैं। दरअसल जया के राज्यसभा सदस्य बनने के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार ने उन्हें उत्तर प्रदेश फिल्म डिवैल्पमैंट काऊंसिल की चेयरपर्सन बना दिया था। 



जया के इस पद को ऑफिस ऑफ  प्रॉफिट का मामला बताते हुए कांग्रेस नेता मदन मोहन ने राष्ट्रपति और चुनाव आयोग के पास उनकी सदस्यता रद्द करने को लेकर याचिका दायर कर दी थी। याचिका में संविधान की धारा 102 और 103 का हवाला देते हुए जया बच्चन पर ऑफिस ऑफ  प्रॉफिट का फायदा लेने का आरोप लगाया गया। पूरे मामले में राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की सलाह ली तो आयोग ने इसे ऑफिस ऑफ  प्रॉफिट का मामला बताया जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने मार्च 2006 को उनकी सदस्यता रद्द कर दी। हालांकि यह फैसला 2006 में आया लेकिन उनकी सदस्यता पिछली तिथि यानी 14 जुलाई 2004 से ही रद्द की गई और 4 जुलाई 2004 को उनके राज्यसभा सदस्य बनने के 10 दिन बाद से यह फैसला प्रभावी हो गया था। 



इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने जया की सदस्यता बचाने के लिए फिल्म डिवैल्पमैंट काऊंसिल की चेयरपर्सन सहित 79 पदों को ऑफिस ऑफ  प्रॉफिट के दायरे से बाहर रखने का बिल पास कर दिया लेकिन संविधान के जानकार समझे जाते तत्कालीन गवर्नर ने सरकार के इस बिल को मंजूरी नहीं दी। चुनाव आयोग और राष्ट्रपति के फैसले के बाद जया बच्चन सुप्रीम कोर्ट भी गईं लेकिन उन्हें अदालत की तरफ  से कोई राहत नहीं मिली।  

Anil dev

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