पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के RSS मुख्यालय जाने को लेकर कांग्रेस में विरोधाभास

Friday, Jun 08, 2018 - 07:05 PM (IST)

नेशनल डेस्कः पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आरएसएस मुख्यालय जाने से पहले और जाने के बाद विवाद थम नहीं रहा है। पिछले डेढ़ हफ्तों से ज्यादा कांग्रेस पार्टी में प्रणब मुखर्जी द्वारा आरएसएस मुख्यालय में दिए गए भाषण को लेकर विरोधाभास है। गुरुवार को प्रणब दा ने नागपुर जाकर भाषण दिया और सारे कयासों पर विराम लगा दिया लेकिन फिर भी विवाद थम नहीं रहा है।

पूर्व राष्ट्रपति के आरएसएस मुख्यालय जाने पर एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री पी. चिदंबरम ने खुशी जाहिर की है तो वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी की प्रणब मुखर्जी से नाराजगी दूर होने का नाम नहीं ले रही है। तिवारी ने गुस्सा जाहिर करते हए एक के बाद एक तीन ट्वीट किए और तीन सवाल कर दिए। नाराज कांग्रेस नेता ने प्रणब दा से पूछा है कि राष्ट्रवाद पर बात करने के लिए उन्होंने संघ मुख्यालय ही क्यों चुना? उन्होंने पूछा कि आज अचानक संघ कैसे अच्छा हो गया? 

बता दें कि गुरुवार को दिए गए भाषण में प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर अपनी बात रखी। अपने भाषण में उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, लोकमान्य तिलक, सुरेंद्र नाथ बैनर्जी और सरदार पटेल के बारे में भी बात की।

मनीष तिवारी ने अपने पहले ट्वीट में पूछा कि “ एक सवाल जो लाखों धर्मनिरपेक्ष वादियों और बहुलवादियों को परेशान कर रहा है और जिसका जवाब आपने अभी तक नहीं दिया है कि आपने राष्ट्रवाद पर अपनी बात रखने के लिए आरएसएस मुख्यालय को ही क्यों चुना”?


दूसरे ट्वीट में उन्होंने पूछा है कि आपकी पीढ़ी ने 80 और 90 के दशक में आरएसएस की सोच को लेकर कई चेतावनियां दी थीं। 1975 और 1992 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था, उस समय आप सरकार का हिस्सा भी रहे थे। क्या आपको नहीं लगता कि हजारों लाखों लोगों का यह सवाल कि जो कभी गलत था आज अच्छा कैसे हो गया या फिर हमें ये मान लेना चाहिए कि कल तक जो हम कहते आ रहे थे वह गलत था?

 


उनका तीसरा ट्वीट है कि आरएसएस के कार्यक्रम में आपका शामिल होना वैचारिक पुनरुत्थान की कोशिश है या फिर राजनीति में आ रही गिरावट को दूर करना। क्या ऐसा करके क्या कड़वाहट दूर करना चाहते हैं?

 


क्या आपकी कोशिश से आरएसएस को धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी मान लिया जाएगा? इसके साथ उन्होंने नाजी काल का उदाहरण दिया। उन्होंने लिखा है कि इतिहास बताता है कि जब नाजी यूरोप में अपनी अकड़ दिखा रहे थे। चेंबरलेन (पूर्व ब्रटिश प्रधानमंत्री) ने सोचा कि 1938 के म्यूनिख पैक्ट से उन्होंने अपने दौर में शांति को लेकर सबसे बड़ा काम किया है। कितनी गलत साबित हुई थी उनकी सोच।

 

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

Yaspal

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