क्या ओबामा भी रस्म अदायमी करेंगे ?

Wednesday, May 11, 2016 - 08:07 PM (IST)

अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा परमाणु हथियार रहित दुनिया की शांति और सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताने के लिए इस महीने हिरोशिमा की ऐतिहासिक यात्रा पर जा सकते हैं। यदि ओबामा वहां जाते हैं तो वे परमाणु हमले के शिकार इस क्षेत्र की यात्रा करने वाले पहले सत्तासीन अमरीकी राष्ट्रपति होंगे। ओबामा 21 से 28 मई को जापान और वियतनाम की यात्रा पर जाएंगे। वे जी-7 सम्मेलन में भाग लेंगे। उस समय वह अंतिम दिन हिरोशिमा का दौरा कर सकते हैं,ऐसा अनुसान लगाया गया है। उनके साथ जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे भी होंगे। 

माना जा रहा है कि ओबामा 27 मई को परमाणु बमबारी के पीडितों की याद में बनाए गए हिरोशिमा शांति स्मारक पार्क का दौरा करेंगे। गौरतलब है कि ओबामा से पहले हिरोशिमा में श्रद्धां​जलि व्यक्त करने अमरीका के विदेश मंत्री जॉन कैरी भी जा चुके हैं। वे वहां साफ कह आए थे कि इस हमले के लिए माफी नहीं मांगेंगे। रस्म अदायगी के लिए उन्होंने कहा था कि परमाणु युद्ध की भयावहता को समाप्त करने के लिए जरूरी है कि युद्ध से बचा जाए।

लगता है कि ओबामा यदि वहां जाते हैं तो वे भी यही रस्म अदा कर आएंगे। जबकि परमाणु बम से जो तबाही वहां हुई, लोग आज भी उसे झेल रहे हैं। यदि ओबामा वहां दो मिनट का मौन धारण करेंगै तो क्या इस बमबारी से प्रभावित लोगों के दर्द को समझ पाएंगे या उन दो मिनटों के समाप्त होने का इंतजार करेंगे। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों से यह सवाल कई बार उठाया जा चुका है कि क्या हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराना जरूरी था। विश्व युद्ध के दौरान अन्य देशो को देखते हुए जापान भी जल्द आत्मसमर्पण कर देता, इसलिए बम गिराने की घटना को टाला जा सकता था। उस समय शक्ति प्रदर्शन और आज विकास की अंधी दौड़ में यह सोचने की फुर्सत किसी के पास नहीं थी,न है।

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 6 अगस्त को साठ किलोग्राम यूरेनियम-235 वाले ''लिटिल बॉय'' नामक अणुबम को हवाई जहाज से फैंके जाने के बाद इस शहर से लगभग 2,000 फीट की, फटने की ऊंचाई, तक पहुंचने में 57 सेकण्ड लगे। इस बम के प्रभाव से 13 वर्ग किमी में तबाही फ़ैल गई थी। हिरोशिमा की 3.5 लाख की आबादी में से एक लाख चालीस हज़ार लोग एक ही झटके में मारे गए। इनमें से अधिकांश साधारण नागरिक, बच्चे, बूढ़े तथा औरतें थीं। इसके बाद भी कई वर्षों तक अनगिनत लोग विकिरण के प्रभाव से मरते रहे। अमरीका इतने पर ही नहीं रुका। उसे एक अन्य प्रकार के बम के प्रभावों को अभी और आज़माना था। इसलिए इस अमानवीय विनाश के तीन दिन बाद ही 9 अगस्त को प्लूटोनियम बम नागासाकी पर गिरा दिया। इसमें अनुमानित 74 हज़ार लोग विस्फोट व गर्मी के कारण मारे गए। इनमें भी अधिकांश बेकसूर निरीह नागरिक थे। इस अपराध की सजा अमरीका को आज तक न मिल पाई। न ही कोई इसकी वकालत करता है।

हर साल 6 अगस्त को हिरोशिमा दिवस मनाया जाता है। हिरोशिमा पर अमरीकी परमाणु बमबारी की 68-वीं बरसी पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कहा था कि उनका देश अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर दुनिया भर में परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिए संघर्ष करेगा। सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है,लेकिन इस लक्ष्य को इसे हासिल करने की संभावना लगभग नहीं के बराबर है। कारण, परमाणु हथियारों के मामले में भी राजनीति काफी हावी है। अगर ऐसी स्थिति से निपटना है तो सबसे पहले मानवजाति को इस सवाल का जवाब बड़ी ही ईमानदारी से देना होगा कि हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने की ज़रूरत क्या थी। 

दिलचस्प बात यह है कि अब तक ओबामा की यात्रा के बारे में अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है कि वे वहां जाएंगे या नहीं। जापान के कैबिनेट सचिव साफ मना करते हैं कि ऐसी किसी यात्रा पर विचार-विमर्श नहीं किया जा रहा है। यही ​बयान अमरीका के व्हाइट के प्रवक्ता का भी है। इसका क्या अर्थ लगाया जाए,ओबामा की व्यस्तता या उनकी हिम्मत जवाब दे गई है तबाही के अवशेषों को देखने की।

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