सीजेआई बोले: मजबूत न्यायिक व्यवस्था के लिए केवल धन आवंटन से नहीं चलेगा काम, मैं वैधानिक...

Saturday, Feb 26, 2022 - 08:11 PM (IST)

नई दिल्लीः भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने शनिवार को देश में आधारभूत न्यायिक ढांचे के “बुनियादी न्यूनतम मानकों” की कमी पर अफसोस जताया तथा बौद्धिक सम्पदा से संबंधित मुकदमों के प्रभावी निस्तारण के लिए उच्च न्यायालयों में न केवल न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने, बल्कि इनकी संख्या बढ़ाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

सीजेआई दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यहां आयोजित ‘‘भारत में आईपीआर विवादों के अधिनिर्णय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी'' में मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रहे थे। इस संगोष्ठी में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और देश के विभिन्न न्यायालयों के अनेक न्यायाधीश मौजूद थे। उन्होंने कहा, “बुनियादी न्यायिक ढांचे में सुधार की जरूरत है। दुर्भाग्य से, हम इस क्षेत्र में बुनियादी न्यूनतम मानकों को भी पूरा नहीं कर रहे हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने के बाद से मेरा प्रयास रहा है कि बुनियादी न्यायिक ढांचे में सुधार के समन्वय और निगरानी के लिए एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाए।''

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘केवल राशि का आवंटन ही काफी नहीं है, बल्कि उपलब्ध संसाधनों का महत्तम दोहन एक चुनौती है। मैं केंद्र और राज्यों के स्तर पर विधिक प्राधिकरण स्थापित करने के लिए सरकार से आग्रह करता रहा हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि इस दिशा में यथाशीघ्र सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त होगी।'' उन्होंने दूसरे देशों के निवेशकों को भी पहले दिया अपना संदेश दोहराया कि भारतीय न्यायिक प्रणाली निवेशकों के अनुकूल है और सभी को न्याय प्रदान करने के लिए “बिल्कुल स्वतंत्र” है। उन्होंने कहा, “जब मैं बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) पर एक सम्मेलन में भाग लेने 2016 में जापान गया था, तो मुझसे उद्यमियों ने बार-बार पूछा था कि भारतीय न्यायिक प्रणाली कितनी निवेशक अनुकूल है। वास्तव में, जब भी मैं विदेश यात्रा करता हूं, मेरे सामने इस तरह के प्रश्न आते रहते हैं। मेरा उत्तर हमेशा एक ही रहा है, कि भारतीय न्यायपालिका बिल्कुल स्वतंत्र है और यह हमेशा सभी पक्षों से समान व्यवहार करती है।”

सीजेआई ने आईपीआर के मामलों को फिर से उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में रखे जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि यह ऐसे समय किया गया है जब ‘‘न्यायपालिका लंबित मामलों के बोझ तले पहले से ही दबी है।'' उन्होंने कहा, हालांकि यह न्यायालय को आवश्यकता के अनुसार अपना कर्तव्य निभाने से नहीं रोक सकता। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों में पर्याप्त क्षमताएं विकसित करने का उपयुक्त अवसर है, ताकि बौद्धिक सम्पदा से संबंधित मुकदमों की सुनवाई ‘‘प्रभावी और सुगमता से'' की जा सके।

सीजेआई ने कहा, "उच्च न्यायालयों को मजबूत करके इन नई और अतिरिक्त चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना किया जा सकता है। हमें न केवल मौजूदा रिक्तियों को तात्कालिक आधार पर भरने की जरूरत है, बल्कि न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की भी आवश्यकता है। बेहतर सेवा शर्तों के साथ, हम अधिक से अधिक प्रतिभाओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम हो सकते हैं।" न्यायमूर्ति रमण ने अपने सम्बोधन में कोरोना महामारी का भी जिक्र किया और कहा कि बौद्धिक सम्पदा अधिकार (आईपीआर) रचनात्मकता और नवाचार को संरक्षित करता है और इसका महत्व कोविड महामारी के दौरान महसूस किया गया। उन्होंने हितधारकों को सलाह दी कि बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से जुड़े दावों का निपटारा करते हुए समकालीन दावों और भावी पीढ़ी के दीर्घकालिक हितों के बीच अवश्य संतुलन बनाये रखना चाहिए।

Yaspal

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