इतिहास में दर्ज हुए सीजेआई रंजन गोगोई

punjabkesari.in Sunday, Nov 10, 2019 - 10:03 AM (IST)

नेशनल डेस्क: इतिहास में दर्ज हुए सीजेआई रंजन गोगोई देश के बहुचर्चित और सबसे पुराने आयोध्या भूमि विवाद मामले पर वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रंजन गोगोई के कार्यकाल को आने वाली पीढिय़ां इतिहास के रूप में याद करेंगी। जस्टिस रंजन गोगोई का जन्म 18 नवम्बर, 1954 को असम में हुआ था। असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशवचंद्र गोगोई के बेटे रंजन गोगोई देश के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले पूर्वोत्तर के पहले व्यक्ति हैं। उन्होंने 1978 में बार काउंसिल ज्वाइन की थी। उन्होंने प्रैक्टिस की शुरुआत गुवाहाटी हाईकोर्ट से की। वे 2001 में गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज भी बने। इसके बाद वह 2010 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए। 2011 में वह पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। 23 अप्रैल, 2012 को जस्टिस रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के जज बने। उन्होंने तीन अक्तूबर 2018 को बतौर मुख्य न्यायाधीश पदभार ग्रहण किया था। वह देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश हैं। सीजेआई गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन 11 जजों में से एक हैं जिन्होंने अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक की है। जस्टिस गोगोई 17 नवम्बर को सीजेआई पद से रिटायर हो रहे हैं। वर्षों से लंबित आयोध्या की विवादित जमीन के मामले की लगातार 40 दिनों तक फास्ट ट्रैक सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुनाया। जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन जजों में से एक थे, जिन्होंने पिछले वर्ष तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर खतरा जताया था।

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अन्य बहुचर्चित फैसले
सबरीमला मंदिर: बीते छह फरवरी को जस्टिस गोगोई के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने केरल के सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दायर किए गए 45 रिव्यू पिटीशनों (पुनर्विचार याचिकाओं) पर सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रखा था। इस बेंच में सीजेआई गोगोई के अलावा जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल थे।

 

राफेल घोटाला मामला:  इसी साल मई में सीजेआई गोगोई की अगुवाई में जजों की एक अन्य पीठ ने राफेल घोटाला मामले में रिव्यू पिटीशनों पर सुनवाई की थी। राफेल लड़ाकू विमानों की डील की आपराधिक जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। यह याचिका अदालत के दिसम्बर 2018 के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। 

 

आरटीआई अधिनियम मामला:  आरटीआई अधिनियम के तहत सर्वोच्च न्यायालय और सीजेआई के अधिकारियों को सार्वजनिक अथॉरिटी मानने के मामले ने खूब तूल पकड़ा था। एक दशक से भी अधिक समय से लंबित इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रवींद्र भट्ट ने फैसला सुनाया था कि सीजेआई का कार्यालय आरटीआई जांच के लिए खुला रहेगा। जस्टिस भट्ट अब सुप्रीम कोर्ट के जज हैं। सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने 2010 में उनके इस फैसले के खिलाफ अपील की थी और सीजेआई गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अप्रैल 2019 में इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

 

असम एनआरसी: इनके अलावा असम एनआरसी को लेकर भी जस्टिस गोगोई की ओर से कई सख्त कदम उठाए गए हैं। हालांकि आयोध्या विवाद पर आया फैसला सबसे बड़ा मुद्दा है जिसके कारण जस्टिस गोगोई के कार्यकाल को याद किया जाएगा। 

 

किस्मत से पीठ का हिस्सा बने न्यायमूर्ति भूषण
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में 1956 में जन्मे न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने 1979 से वकालत शुरू की और 2001 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने। वह 13 मई 2016 को उचतम न्यायालय के न्यायाधीश बने।  न्यायमूर्ति अशोक भूषण अयोध्या मामले पर सुनवाई के लिए शुरुआत में गठित पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य नहीं थे, लेकिन अपनी तकदीर की वजह से वह इस ऐतिहासिक फैसले का हिस्सा बने जब कुछ पक्षकारों की आपत्तियों के मद्देनजर न्यायमूर्ति एनवी रमण और न्यायमूर्ति यूयू ललित राजनीतिक तौर पर संवेदनशील इस मुद्दे की सुनवाई से हट गये। रंजन गोगोई ने न्यायाधीशों की एक पीठ बनाई थी जो वरिष्ठता के आधार पर भविष्य में प्रधान न्यायाधीश बनते।  न्यायमूर्ति भूषण 27 सितम्बर 2018 को शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा सुनाए गए उस फैसले का भी हिस्सा थे जिसने इस्माइल फारूकी मामले में 1994 में उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनाए गए फैसले को पुनर्विचार के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था। इस फैसले ने अयोध्या मामले में नियमित सुनवाई का रास्ता साफ कर दिया था। 1994 के फैसले में कहा गया था कि इस्लाम में नमाज अदा करने के लिए मस्जिद अनिवार्य नहीं है। उस फैसले को संविधान पीठ के पास भेजने का मामला तब उठा था जब पीठ अयोध्या मामले पर सुनवाई कर रही थी।  न्यायमूर्ति भूषण ने कई अहम फैसले लिखे हैं। आधार पर कानून को बरकरार रखना, आधार को पैन से जोडऩा और सीजेआई ‘कार्य आवंटन के मामले में सर्वेसर्वा होने’ से संबंधित फैसले शामिल हैं। 

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परासरण की बड़ी जीत
उम्र को धता बताते हुए अयोध्या मामले में रामलला विराजमान की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के पराशरण ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद राहत की सांस ली होगी, जिन्होंने हाल ही में कहा था कि उनकी आखिरी ख्वाहिश है कि उनके जीतेजी रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाएं। 9 अक्तूबर 1927 को जन्मे पराशरण पूर्व राज्यसभा सांसद और 1983-89 के बीच भारत के अटार्नी जनरल रहे। पद्मभूषण और पद्मविभूषण से नवाजे जा चुके पराशरण को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए ड्राङ्क्षफ्टग एंड एडिटोरियल कमिटी में शामिल किया था। उम्र के नौ दशक पार करने के बावजूद पूरी ऊर्जा से अयोध्या मामले में अकाट्य दलीलें रखने वाले पराशरण को भारतीय वकालत का ‘भीष्म पितामह’ यूं ही नहीं कहा जाता। उच्चतम न्यायालय ने अगस्त में जब अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई का फैसला किया तो विरोधी पक्ष के वकीलों ने कहा था कि उम्र को देखते हुए उनके लिए यह मुश्किल होगा, लेकिन 92 बरस के पराशरण ने 40 दिन तक घंटों चली सुनवाई में पूरी शिद्दत से दलीलें पेश की। पराशरण रामलला विराजमान से पहले सबरीमाला मामले में भगवान अयप्पा के वकील रहे।

 

धार्मिक मधार्मिक मामलों में याचिकाकर्ताओं की पहली पसंद जस्टिस नजीरा
अयोध्या भूमि विवाद मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाली उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ में इकलौते मुस्लिम न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर धर्म से जुड़े मामलों में याचिकाकर्ताओं की पहली पसंद हैं। न्यायमूर्ति नजीर ‘तीन तलाक’ मामले में भी पांच सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे, लेकिन उन्होंने तत्कालीन भारत के प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर के साथ अल्पमत में फैसला दिया था। उच्चतम न्यायालय ने 3:2 से फैसला सुनाते हुए मुस्लिमों में फौरी ‘तीन तलाक’ की 1,400 साल पुरानी प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक ठहराया था। हालांकि अयोध्या मामले पर फैसले में न्यायमूर्ति नजीर मुस्लिम पक्षकारों की दलीलों से सहमत नहीं हुए और वह एकमत से दिए गए उस फैसले का हिस्सा बन गए। वे कर्नाटक हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने थे। 

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सीट से उठते ही भूल जाता हूं अदालती बातें: जस्टिस बोबडे
अयोध्या मामले में सुनवाई करने वाली पीठ में शामिल न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे का कहना है कि इन मामलों की सुनवाई को सहजता से लेते हैं और उनको इन सब चीजों से ज्यादा तनाव नहीं होता है। जब अदालत का माहौल गर्म होता है, दोनों पक्षों की ओर से तर्कों की बौछार हो रही होती है, तो खुद को तनाव-मुक्त रखने को लेकर बोबडे ने कहा कि सुनवाई के बाद जब सीट से उठता हूं, तो उस पल को भूल जाता हूं। महाराष्ट्र के एक वकील परिवार से आने वाले न्यायाधीश ने आधार प्रकरण सहित कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की है। वह रंजन गोगोई के बाद 47वें सीजेआई होंगे। 


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vasudha

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