नागरिकता संशोधन बिल पास, राजनाथ सिंह बोले- असम के साथ नहीं होगी भेदभाव

Tuesday, Jan 08, 2019 - 09:28 PM (IST)

नेशनल डेस्क: लोकसभा में मंगलवार को नागरिकता संशोधन बिल, 2019 को पास कर दिया गया। दरअसल कांग्रेस समेत कई अन्य विपक्षी पार्टियों ने सरकार के फैसले पर सवाल उठाए। जिस पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में जवाब देते हुए कहा कि इस बिल से असम में एनआरसी पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा। 


यह विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। इस विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी। गृह मंत्री ने कहा कि नागरिकता विधेयक के संबंध में गलतफहमी पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है और असम के कुछ भागों में आशंकाएं पैदा करने की कोशिश हो रही हैं।  


राजनाथ सिंह ने कहा कि यह गलतफहमी पैदा की जा रही है कि इस विधेयक का बोझ असम सहेगा। ऐसा नहीं है, पूरा देश इसे सहेगा। सरकार और पूरा देश असम की जनता के साथ खड़े हैं।  सिंह ने जोर दिया कि पाकिस्तान में राष्ट्र एवं समुदाय के स्तर पर अल्पसंख्यकों के साथ सुनियोजित तरीके से भेदभाव किया जाता है। उन्हें बुनियादी अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है। उन्होंने असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का जिक्र करते हुए कहा कि इसे उचित ढंग से लागू किया जा रहा है। इसके तहत शिकायत करने का प्रावधान किया गया है। हम प्रक्रिया पूरी करने को प्रतिबद्ध हैं। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा।  


गृहमंत्री ने कहा कि 1947 में मजहब के आधार पर विभाजन नहीं होता तो अच्छा होता। अखंड भारत रहता। विडंबना रही कि धर्म के आधार पर विभाजन हुआ। भारत, पाकिस्तान सबको इस बात की चिंता थी कि धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान की तत्कालीन सरकारों के बीच समझौतों के बावजूद पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को समान अधिकार नहीं मिल पाए। उन्होंने कुछ सदस्यों के सवालों पर कहा कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। उसके लिए एक प्रोटोकॉल है। उन्हें दीर्घकालीन वीजा दिया जा सकता है। राजनाथ सिंह ने कहा कि धार्मिक आधार पर नागरिकता के आरोप निराधार हैं। बड़ी संख्या में बहुसंख्यक लोगों को भी भारत में नागरिकता मिलती रही है।

 

vasudha

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