भारत की राह में फिर रोड़ा अटका सकता है चीन

Monday, May 22, 2017 - 04:56 PM (IST)

बीजिंगः चीन ने सोमवार को कहा कि वह परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एन.एस.जी) में सदस्यता के भारत के प्रयास को लेकर अपने पुराने रुख पर कायम है। चीन ने साथ ही संकेत दिया कि वह अगले महीने बर्न में होने वाले पूर्ण अधिवेशन में भारत की याचिका की राह में फिर से रोड़ा अटका सकता है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने सोमवार को कहा, “चीन ने एन.एस.जी. में गैर-एनपीटी सदस्यों की भागीदारी को लेकर अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है।” उन्होंने कहा, “हम 2016 के पूर्ण अधिवेशन के आदेश के बाद और  दृष्टिकोण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए खुली और पारदर्शी अंतर-सरकारी प्रक्रिया पर सहमति बनने के बाद एन.एस.जी. समूह का समर्थन करते हैं।

उल्लेखनीय है कि चीन इससे पहले भी एन.एस.जी. की सदस्यता हासिल करने के भारत के प्रयास में रोड़ा अटकाता रहा है।  बता दें कि विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, एन.एस.जी. के अगले पूर्ण अधिवेशन से पहले भारत ने 48 देशों के इस समूह की सदस्यता हासिल करने के लिए अपनी कोशिशें फिर से शुरू कर दी हैं। उसने सभी सदस्य देशों से बात की है। अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस जैसे अन्य प्रमुख देशों के समर्थन के बावजूद चीन अब भी अपने रुख पर अड़ा है। रूस के जरिए चीन को साधने के लिए विदेश मंत्रालय ने हाल में अपनी रणनीति को ठोस रूप दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा का एजेंडा निर्धारित करने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और भारत यात्रा पर आए रूस के उप प्रधानमंत्री दमित्री रोगोजिन के बीच मुलाकात में NSG पर चीन का रुख और कुडनकुलम परियोजना की इकाई नंबर 5 और 6 पर समझौते के बाबत बातचीत हुई। रोगोजिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में भी इस मुद्दे को उठाया पर कोई ठोस आश्वासन पाने में नाकाम रहे। भारत का तर्क है कि एन.एस.जी. की सदस्यता में रोड़ा अटकने से हम इस संयंत्र के लिए स्वदेशी तकनीक विकसित करने को मजबूर हैं। वहां एक और दो नंबर का इकाइयों में उत्पादन चल रहा है।  

विदेश मंत्रालय के एक आला अधिकारी के अनुसार, चीन के वन बेल्ट-वन रोड (OBOR) परियोजना में रूस महत्त्वपूर्ण भागीदार है। रूस को साथ लाने के लिए चीन ने बेहद कसरत की थी। इस परियोजना के लिए बीजिंग में बुलाए सम्मेलन में शिरकत करने से भारत ने साफ इंकार कर दिया। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि कुडनकुलम का दबाव डालने से रूस एनएसजी के मुद्दे पर चीन पर दबाव डालेगा। इसी योजना के तहत सुषमा और दमित्री की बैठक में एनएसजी और कुडनकुलम को जोड़ते हुए बात रखी गई।

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