चंद्रयान-2: शास्त्रों से जानें, क्यों है चांद में दाग

Monday, Sep 09, 2019 - 07:39 AM (IST)

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आज भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में चंद्रयान- 2 पॉइंट ऑफ अट्रैक्शन बना हुआ है। चाहे ये मिशन अभी पूरा नहीं हो पाया है लेकिन क्या आप जानते हैं चांद में दाग क्यों है ? हिंदू शास्त्रों के अनुसार पहले चांद पर दाग नहीं थे। वे बेदाग और खूबसूरत था। कहते हैं जब श्रीराम और सीता माता का विवाह हुआ तो चांद ने बहुत सुंदर नृत्य किया। विवाह में उपस्थित लोग उनकी सुंदरता और नाच में इतने अधिक खो गए थे की उनकी शादी का मुहूर्त निकल गया। शुभ समय पर शादी न होने के कारण उनके विवाह में बार-बार बाधाएं आईं। आईए पौराणिक कथाओं से जानें कैसे आए चांद में दाग ?

दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था परंतु चंद्रमा का प्रेम उनमें से एकमात्र रोहिणी के प्रति था। इस कारण अन्य 26  दक्ष कन्याओं को बड़ा कष्ट रहता था। उनके शिकायत करने पर दक्षराज ने चंद्रमा को बहुत समझाया-बुझाया पर उन पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ा। अंत में दक्ष ने चंद्रमा को यह शाप दिया, ‘‘जा तू क्षयी हो जा।’’

फलत: चंद्रमा क्षयग्रस्त हो गए। चांद न होने से रात नहीं हुई और सृष्टि का कार्य रुक गया। चराचर में चारों ओर त्राहि-त्राहि की पुकार होने लगी। चंद्रमा के प्रार्थनानुसार इंद्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषि-मुनि कोई उपाय न देख पितामह ब्रह्मा की सेवा में उपस्थित हुए। ब्रह्मदेव ने यह आदेश दिया कि चंद्रमा देवादि के साथ प्रभास तीर्थ में मृत्युंजय भगवान की आराधना करे, उनके प्रसन्न होने से अवश्य ही रोग मुक्ति हो सकती है।

पितामह ब्रह्मा की आज्ञा को सिर माथे रख चंद्रमा ने देवमंडली सहित प्रभास क्षेत्र में पहुंच कर मृत्युंजय भगवान शिव की अर्चना का अनुष्ठान आरंभ कर दिया। मृत्युंजय मंत्र से पूजा और जप होने लगा। 6 मास तक निरंतर घोर तप किया, 10 करोड़ मंत्र-जप कर डाला, फलत: आशुतोष संतुष्ट हुए। प्रकट होकर वरदान देकर भगवान शिव ने मृत तुल्य चंद्रमा को अमरत्व प्रदान किया और कहा, ‘‘सोच मत करो। कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, पर साथ ही शुक्ल पक्ष में उसी क्रम में तुम्हारी  एक-एक कला बढ़ जाया करेगी और इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम पूर्ण चंद्र हो जाया करोगे।’’

इस प्रकार कलाहीन कलाधर पुन: कलायुक्त हो गए और सारे संसार में सुधाकर की सुधा-किरणों से प्राण संचार होने लगा। बाद में चंद्रादि की प्रार्थना स्वीकार करके भवानी सहित भगवान शंकर भक्तों के उद्धारार्थ ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए सोमनाथ क्षेत्र में वास करने लगे। 

एक अन्य कथा के अनुसार, 16 कलाओं से युक्त चन्द्रमा को अपनी खूबसूरती पर अभिमान हो गया। एक बार उसने भगवान श्री गणेश के गजमुख एवं लम्बोदर स्वरूप को देखकर उनका उपहास किया, जिससे श्री गणेश नाराज हो गए और उन्हें गुस्सा आ गया। उन्होंने चन्द्रमा को बदसूरत होने का श्राप देते हुए कहा कि जो भी कोई अब से चांद को देखेेगा, उस पर झूठा कलंक जरूर लगेगा। 

इस श्राप को सुनकर चन्द्रमा दुखी हुए और छिप कर बैठ गए। तब भगवान श्री नारद जी ने सोचा कि चन्द्रमा के न निकलने पर सृष्टि चक्र में बाधा होगी तब उन्होंने चन्द्रमा को भगवान श्री गणेश जी का लड्डू और मालपूड़ों के भोग के साथ पूजन करने की सलाह दी। 

चन्द्रमा ने तब भगवान श्री गणेश जी का पूजन और स्तुति करके उन्हें प्रसन्न किया और श्राप से मुक्त करने के लिए प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना से गणेश जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने श्राप को सीमित करते हुए कहा कि जो कोई भाद्रपद मास की चतुर्थी को तुम्हारा दर्शन करेगा उसे अवश्य कलंकित होना पड़ेगा। 

इसी कारण इस चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं किया जाता। मान्यता है कि जो लोग नियमित रूप से चन्द्र दर्शन करते हैं वह चन्द्र दर्शन के अशुभ प्रभाव से बचे रहते हैं। 

Niyati Bhandari

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