पाकिस्तान आतंकवाद में अव्वल तो शिक्षा में फिसड्डी

Saturday, Apr 30, 2016 - 03:07 PM (IST)

आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहने वाले पाकिस्तानी में अनपढ़ लोगों की फौज थमने का नाम नहीं ले रही है। आतंक फैलाने के लिए मदरसों में युवकों को प्रशिक्षण दिया जाता है,लेकिन उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित नही किया जाता। इन दिनों राजधानी दिल्ली में आए पाक निर्वासित लेखक तारिक फतेह के हवाले से जानकारी मिली है कि पाकिस्तान में किताबों का भी टोटा बना रहता है। क्या लोगों में पढ़ने की रुचि नहीं है। वहां गिनी चुनी किताबों की दुकानें हैं। दिलचस्प बात यह है कि यदि किसी किताब की 500 प्रतियां बिक जाएं तो उसे बेस्ट सेलर कहा जाता है। दिल्ली के एक अखबार से हुई बातचीत में तारिक मानते हैं कि पाकिस्तान में कालीन की दुकानें बड़ी संख्या में हैं,वहां किताबों की दुकानों का कोई बाजार नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि वहां अनपढ़ लोगों की संख्या अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक है।

इसमें दो राय नहीं कि तालिबान नारी शिक्षा के सबसे बड़े विरोधी हैं। इस पर पाबंदी लगाने के वे कई फरमान जारी कर चुके हैं। कई स्कूलों को विस्फोट से उड़ाया गया है। तालिबरन की तरह कई कबीले भी लड़कियों को स्कूल नहीं भेजना चाहते। अनपढ़ता को समाप्त करने के प्रयासों में जुटा यूनेसको पिछड़े देशों में शिक्षा का प्रसार करता है। उसका दूसरा लक्ष्य विकसित देशों को 100 प्रतिशत साक्षरता करना है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में एक अरब से ज्यादा लोग लिखना-पढ़ना नहीं जानते। इन अनपढ़ लोगों में अधिकतर लोग दक्षिण एशिया और मुस्लिम देशों से हैं। इन परिस्थितियों में लगता है कि यूनेसकों का लक्ष्य आसानी से पूरा नहीं होने वाला।     

थाईलैंड में आयोजित विश्व साक्षरता में यह तथ्य सामने आया कि पाकिस्तान पिछले 10 वर्ष में शिक्षा प्रसार के लक्ष्यों को पूरा करने में पूरी तरह असफल रहा है। इसका मुख्य कारण देश में बढ़ता आतंकवाद और आर्थिक संकट बताया गया। उसकी तुलना में चीन, भारत, इंडोनेशिया, बांग्ला देश, श्रीलंका तथा अन्य देशों ने शिक्षा के क्षेत्र में निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। पाकिस्तान के बुध्दिजीवियों का मानना है कि वहां राजनीतिक इच्छाशक्ति की भारी कमी है। साथ ही, राष्ट्रीय शिक्षा मंत्रालय व प्रांतीय सरकारों के शिक्षा विभागों की उपेक्षापूर्ण प्रकृति व लापरवाही रही है।

गौरतलब है कि वर्ष 2000 में यूनेस्को के प्रयासों से दकार में 150 देशों के शिक्षा मंत्रियों और प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ था। इसमें जब शिक्षा प्रसार कार्यक्रमों की उपलब्धियों की समीक्षा की गई थी, तब पाकिस्तान ने बड़े उत्साह के साथ कहा था कि आने वाले समय में वह शिक्षा क्षेत्र की कमियों को पूरा करेगा। शिक्षा संबंधी योजना के कार्यान्वयन और प्रगति की मॉनिटरिंग करने के लिए एक विश्वस्तरीय कमेटी बनाई गई थी। कमेटी की रिपोर्ट में पाकिस्तान की निराशाजनक तस्वीर ही सामने आई। उसमें साफ कहा गया कि पाकिस्तान शिक्षा के क्षेत्र में किस तरह पिछड़ रहा है। यह विश्व के उन देशों में से एक है जो निर्धारित निम्न 6 लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं रहे।

तय किए गए ये छह लक्ष्य इस प्रकार थे। पहला,बच्चों की देख-रेख और निर्धन बच्चों की शिक्षा की तरफ विशेष ध्यान देना। दूसरा, वर्ष 2015 तक सभी बच्चों, विशेषकर लड़कियों व पिछड़े समुदाय के लिए अनिवार्य नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था करना। तीसरा, सभी युवा औा प्रौढ़ों की शिक्षा की जरूरतों को पूरा करना। चौथा, वर्ष 2015 तक 50 प्रतिशत प्रौढ़ों को साक्षर करना, महिलाओं को साक्षर करना और महिलाओं को शिक्षित करना। पांचवां, वर्ष 2015 तक प्राइमरी और हायर सेकेण्डरी स्तर तक लड़कियों और लड़कों के व्यापक अंतर को दूर किया जाएगा और छठा, शिक्षा और तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाया जाएगा।

पाकिस्तान के शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक 2015 तक 3.90 लाख शिक्षा केन्द्रों की स्थापना के साथ-साथ 86 प्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य निर्धारित था। सरकार ने कागजों में बड़ी-बड़ेी बातें कीं, लेकिन बड़ी मुश्किल से देश में 10 हजार शिक्षा केन्द्र खुल सके। इसमें बड़ी बाधा बने तालिबानियों ने स्कूलों की इमारतों का बहुत नुकसान पहुंचाया। इन इमारतों की पूरी तरह से मरम्मत नहीं हो पाई। जो इमारतें पूरी तरह ध्वस्त कर दी गई थीं, उनका पुन: निर्माण नहीं किया जा सका। एक खास बात और है कि पाकिस्तान में कई स्कूल प्राइवेट इमारतों में चल रहे हैं। उनमें से कई स्कूलों ऐसे हैं जहां अध्यापक हैं, परन्तु बच्चे नहीं। कहीं बच्चे हैं, अध्यापक उपलब्ध नहीं। कई स्कूल कच्ची इमारतों में चलाए जा रहे हैं। बच्चे खतरों के साए में पढ़ते हैं। वहां मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। पीने का पानी नहीं है। बच्चे प्यास लगने पर परेशान रहते हैं। 

उत्तरी वजीरीस्तान, खैबर पख्तूनखव्वा, पेशावर तथा आसपास के क्षेत्रों में सेना और आतंकवादियों में लगातार मुठभेड़ होने से कई-कई महीने स्कूल बंद पड़े रहे। ईसाई लोग जो प्राइवेट स्कूल चला रहे थे, धमकियां मिलने से वे भी बंद हो गए। ग्रामीण स्कूल सुनसान है, मानों वे बना कर छोड़ दिए गए हों। आर्थिक तंगी के कारण वहां अध्यापकों की भर्ती नहीं की गई। पंजाब प्रांत को छोड़ दें तो अन्य सभी राज्यों के 80 प्रतिशत स्कूलों में भवन, पानी, बिजली खेलों के मैदान, प्रयोगशाला जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। सरकारी स्कूलों की स्थिति दयनीय होने की वजह से बच्चों की संख्या में लगातार कम हो रही है। 

लड़कियों की शिक्षा की हालत भी कम खराब नहीं है। गांवों के खोले लड़कियों के स्कूल सुनसान हैं। कबीले की लड़कियों के स्कूल नहीं हैं। यदि कोई इक्का—दुक्का नजर भी आता है तो वहां पढ़ने वाली लड़कियों को संख्या गिनीचुनी है। एक अनुमान के अनुसार  पाकिस्तान में दस में से तो नौ लड़कियां अनपढ़ होंगी। माता—पिता चाहते ही नहीं कि उनकी लड़की घर के बाहर निकले। इस दिशा में कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं लड़कियों को पढ़ने के लिए उत्साहित करती हैं, लेकिन परिणाम बेहतर नहीं मिल रहे हैं। हालांकि यूनेस्को ने पाकिस्तान में अनपढ़ता को दूर के लिए सहायता के तौर पर मोटी राशि मंजूर की। सरकार की ओर से साक्षरता दर 95 प्रतिशत प्राप्त करने का भी लक्ष्य रखा गया है। ये इतना आसान नहीं है। विश्व में 8 सितंबर के साक्षरता दिवस मनाया जाता है,इस मौके पर पता चल जाएगा कि पाकिस्तान ने शिक्षा के क्षेत्र में क्या प्रगति की है। अभी जो हालात वहां हैं वे ​चिंता बढ़ाने वाले हैं।

 
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