चुनौतियों के बावजूद रक्षा बजट में मामूली बढ़ोतरी, रक्षा हलकों में भारी निराशा

Thursday, Feb 01, 2018 - 04:51 PM (IST)

नई दिल्ली( रंजीत कुमार) : भारत को रक्षा क्षेत्र में बढ़ी हुई चुनौतियों के बावजूद सरकार ने इस साल के रक्षा बजट में केवल 7.4 प्रतिशत का ही मामूली इजाफा किया है जिससे तीनों सेनाओं के बढ़े हुए वेतन भत्तों का खर्च ही भुगतान किया जा सकेगा। इस मामूली बढ़ोतरी से रक्षा हलकों में भारी निराशा पैदा हुई है। वर्ष 2018-19  के लिए रक्षा क्षेत्र के लिए सरकार ने 2 लाख 94 हजार  करोड़ रुपए निर्धारित किए हैं जो पिछले साल के 2 लाख 74 हजार करोड़ रुपए से मामूली अधिक है। सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में यह बजट पिछले साल के 1.56 प्रतिशत की तुलना में इस साल और घट गया है। इस तरह जीडीपी के प्रतिशत के हिसाब से इस साल का रक्षा बजट न्यूनतम कहा जा सकता है। 

 हालाकि रक्षा मंत्री अरुण जेतली ने लोकसभा में 2018-19 का  बजट पेश करते हुए भरोसा दिलाया है कि  रक्षा क्षेत्र को समुचित बजटीय सहायता सरकार की प्राथमिकता होगी लेकिन ताजा बजट में यह परिलक्षित  नहीं होने से रक्षा हलकों में भारी निराशा है। उन्होंने दावा किया कि पिछले साढ़े तीन साल के एनडीए शासन काल के दौरान सेनाओं की लड़ाकू क्षमता बढ़ाने पर काफी जोर दिया गया है। उन्होंने तीनों सेनाओं की इस बात के लिए सराहना की कि जम्मू कश्मीर और उत्तर पूर्वी राज्यों में और सीमाओं पर सुरक्षा चुनौतियों का मुकाबला करने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र  के निवेश को खोला गया है और सैन्य साज सामान के उत्पादन के लिए रक्षा उत्पादन के दो गलियारे स्थापित करने के कदम उठाए जाएंगे ताकि रक्षा साज सामान के मामले में देश आत्मनिर्भर हो सके। उन्होंने कहा कि उद्योगों के अनुकूल सरकार रक्षा उत्पादन नीति भी जल्द लाएगी। 

इस साल के रक्षा बजट में मामूली बढ़ोतरी की वजह से तीनों सेनाओं के लिए पूंजीगत परिव्यय में भी मामूली बढोतरी हो सकी है जिससे तीनों सेनाओं के हथियारों की खरीद की योजनाओं पर भी असर पड़ेगा। इस साल तीनों सेनाओं का पूंजीगत परिव्यय मामूली बढ़कर 93,982 करोड़ रुपए ही हो सका है जो कि पिछले साल से करीब छह हजार करोड़ रुपए ही अधिक है।  रक्षा बजट में इस मामूली बढोतरी की वजह से तीनों सेनाओं के रखरखाव का खर्च ही निकला पाएगा। भारतीय सेनाओं के लिए जहां चीन और पाकिस्तान की ओर से बढ़ी हुई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है उसके मद्देनजर तीनों सेनाओं को नई शस्त्र प्रणालियों को तत्काल हासिल करने की जरुरत है।

जहां नौसेना को नई पनडुब्बियों की तत्काल जरुरत महसूस की जा रही है वहीं वायुसेना को नए लडाकू विमानों का स्क्वाड्रन को हासिल करने की जरुरत पिछले कई सालों से महसूस की जा रही है। थलसेना को भी चीन सीमा से लगे इलाकों में नई ढांचागत और लड़ाकू क्षमता विकसित करने के लिए भारी वित्तीय समर्थन की जरूरत है। रक्षा पर्यवेक्षकों का मानना है कि मौजूदा वित्तीय प्रावधान की वजह से तीनों सेनाओं के सामने अपने को आधुनिक बनाने का संकट बरकरार रहेगा।

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