ब्रिटेन की करंसी पर छप सकती है भारतवंशी नूर इनायत की फोटो, जाने कौन है वो

Tuesday, Oct 23, 2018 - 11:22 AM (IST)

लंदनः ब्रिटेन में इन दिनों बहस चल रही है कि ब्रेक्जिट के बाद 50 पाउंड के नोट पर किसकी फोटो छपनी चाहिए? यह ब्रिटिश करंसी का सबसे बड़ा नोट है और इसे 2020 में प्लास्टिक फॉर्म में री-इश्यू किया जाएगा। इस बहस के बीच वहां के इतिहासकारों ने भारतीय मूल की महिला नूर इनायत खान की फोटो छापने को लेकर कैम्पेन शुरू कर दिया है। सामाजिक कार्यकर्ता जेहरा जैदी की इस कैम्पेन का इतिहासकार डैन स्नो ने समर्थन किया है। वहीं संसद में विदेश समिति के चेयरमैन टॉम टुगेनडाट और बरौनेस सायीदा वारसी ने भी इस संबंध में अपील की है। 


जैदी ने द टेलीग्राफ से कहा, "नूर इनायत खान एक प्रेरणादायी महिला थीं. वह एक ब्रिटिश, सोल्जर, लेखिका, मुस्लिम, भारत की आजादी की समर्थक, सूफी, फासिस्म के खिलाफ फाइटर थीं और एक हीरोइन थीं।आज जिस दुनिया में हम रह रहे हैं वह उस जमाने में उसी दुनिया की बात करती थीं।" यदि खान की फोटो ब्रिटिश करंसी में छपती है तो वह यह सम्मान पाने वाली एथनिक माइनॉरिटी की पहली शख्स होंगी।

जानें कौन है नूर इनायत खान
भारतीय मूल की ब्रिटिश जासूस नूर इनायत खान ऐसी  एक हीरो थीं  जिन्होंने बिना किसी उम्मीद के चुपचाप अपना काम किया और इस दुनिया को विदा कह दिया. उन्हें कभी वो पहचान नहीं मिली जिसके वो हकदार थी। खान का जन्म 1914 में मॉस्को के क्रेमलिन में तब हुआ था जब उनके माता-पिता रूस के राजघराने में अतिथि के तौर पर पहुंचे थे। उनकी मां अमेरिकी थी और उनके पिता भारतीय थे। वह टीपू सुल्तान के वंशज भी थे। वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान खान ने फ्रेंच रेड क्रॉस में नर्स का काम किया । बाद में उन्होंने इंग्लैंड में महिलाओं की एयरफोर्स ज्वाइन कर ली। खान की फ्रेंच पर अच्छी पकड़ थी, इसे देखते हुए उन्हें स्पेशल ऑपरेशंस एग्जीक्यूटिव (SOE) ने रेडियो ऑपरेटर के तौर पर नियुक्त किया था।

जून 1943 में उन्हें SOE ने उन्हें फ्रांस के उस हिस्से में भेज दिया जहां नाजियों का प्रभाव था। यहां जाने वाली वह पहली महिला थीं। वह वहां पेरिस के प्रॉस्पर रेसिस्टेंस नेटवर्क में रेडियो प्रजेंटेटर बन गईं। वहां उनका कोडनेम था मेडलिन। नाजी शासन शुरू होने के बाद उनकी कंपनी आखिरी कंपनी रह गई जिसका संचालन पेरिस और लंदन के बीच हो रहा था।अक्तूबर 1943 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सितंबर 1944 में खान और तीन अन्य SOE एजेंट्स को दचाऊ कॉन्संट्रेशन कैम्प ले जाया गया। वहां 13 सितंबर को उन्हें गोली मार दी गई। खान का आखिरी शब्द था- लिबर्टी (आजादी)।

Tanuja

Advertising