150 रुपए की रिश्वत के केस में पुलिस ने फूंके 8 साल और 15 लाख

Tuesday, Dec 13, 2016 - 02:24 PM (IST)

बेंगलुरु : 150 रुपए की कथित रिश्वतखोरी का मामला 8 साल लंबा चला और इस केस की 72 तारीखें आ चुकी हैं। आरोपी का कहना था कि उसने रिश्वत नहीं ली है, बल्कि जिस पैसे की बात हो रही है वह उसने स्कूल की जरूरत के लिए चॉक खरीदने को लिया था। इतनी लंबी मशक्कत के बाद आखिरकार लोकायुक्त की विशेष अदालत ने प्रिंसिपल को बरी कर दिया। इस पूरे मामले में किसी की भूमिका सबसे दिलचस्प है, तो वह है कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस की। 150 रुपए की रिश्वत के मामले को न केवल उसने इतने साल तक अदालत में घसीटा, बल्कि इसके ऊपर सरकारी खजाने से 15 लाख का भारी-भरकम खर्च भी किया।

वर्ष 2015 तक लोकायुक्त अदालत में करीब 1,895 मामले लंबित थे लेकिन लोकायुक्त पुलिस इन सबको छोड़कर 150 रुपए की रिश्वत के मामले में उलझी रही। इसके पीछे सरकारी खजाने से कम से कम 15 लाख रुपए खर्च किए गए। हर 2 महीने में इस केस की औसतन एक सुनवाई होती थी। कुल मिलाकर इसकी 72 सुनवाइयां हुईं।

क्या था यह मामला
साल 2005 में 9वीं कक्षा के छात्र अनिल ने स्कूल से अपना नाम कटवा लिया। जुलाई 2008 में जब अनिल अपना ट्रांसफर सर्टिफिकेट लेने स्कूल गया, तो कथित तौर पर प्रिंसिपल चन्ना बायरेगौड़ा ने उससे 150 रुपए रिश्वत की मांग की। अनिल ने इसकी शिकायत लोकायुक्त पुलिस से की। पुलिस ने प्रिंसिपल को रंगे हाथों पकडऩे के लिए जाल बिछाया। प्रिंसिपल गौड़ा कथित तौर पर रिश्वत के 150 रुपयों के साथ पकड़े भी गए।

फिर उनके खिलाफ फरवरी 2010 में एक चार्जशीट दाखिल की गई। इस मामले में शिकायतकर्ता अनिल करीब 4 साल तक अदालत में आया ही नहीं। इसी कारण उससे पूछताछ नहीं की जा सकी। अदालत ने कहा कि अभियोजन यह साबित ही नहीं कर पाया कि रिश्वत की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि केवल पैसे बरामद करने से किसी को दोषी नहीं साबित किया जा सकता, बल्कि इसके लिए यह साबित करना पड़ता है कि रिश्वत की मांग हुई और रिश्वत को स्वीकार किया गया।

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